कैसे कहें इन्हें धरती का ‘भगवान’. मरीजों के हित से खिलवाड़, दवा कंपनी से दोस्ती चिकित्सकों को आ रही रास
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मोटी कमीशन, ढेरों उपहार, गरीब बने रहें बीमार
कैसे कहें इन्हें धरती का ‘भगवान’. मरीजों के हित से खिलवाड़, दवा कंपनी से दोस्ती चिकित्सकों को आ रही रास पूर्णिया : कहते हैं कि चिकित्सक धरती पर ईश्वर के प्रतिनिधि होते हैं. लिहाजा उन्हें धरती का भगवान कहा जाता है. यह काफी हद तक सच भी है. लेकिन स्वास्थ्य नगरी लाइन बाजार में हाल […]
पूर्णिया : कहते हैं कि चिकित्सक धरती पर ईश्वर के प्रतिनिधि होते हैं. लिहाजा उन्हें धरती का भगवान कहा जाता है. यह काफी हद तक सच भी है. लेकिन स्वास्थ्य नगरी लाइन बाजार में हाल के दिनों में कई ऐसी घटनाएं घटित हुई है, जो इस बात को इंगित करता है कि धरती के भगवान भी अपने पेशे के प्रति प्रतिबद्ध नहीं रहे हैं. दुखों के निवारण की जो क्षमता उन्हें ईश्वर ने प्रदान की है, वह कहीं न कहीं कमीशनखोरी की वजह से अब हाशिये पर है. मनमानी फीस, पैथोलॉजी और जांच केंद्रों से कमीशन के अलावा दवा में भी कमीशनखोरी, चिकित्सकों के पेशे और सामाजिक सरोकार पर एक बड़ा सवालिया निशान है.
यह जगजाहिर है कि पैथोलॉजी और जांच केंद्रों से डॉक्टरों को 40 से 50 फीसदी तक कमीशन हासिल हो रहा है. वहीं दवा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है. दवा कंपनियां डॉक्टरों को 25 से 50 फीसदी तक कमीशन दवा लिखने के एवज में उपलब्ध कराती है. जाहिर है इस कमीशन की वसूली अप्रत्यक्ष रूप से मरीजों से ही की जाती है. इस प्रकार एक तरफ दवा कंपनी से दोस्ती चिकित्सकों को रास आ रही है तो दूसरी तरफ कमीशनखोरी के फेर में मरीजों के हित से खिलवाड़ हो रहा है.
50 से 70 फीसदी तक लिखी जाती हैं अनावश्यक दवाइयां. दवा का संसार भी बड़ा ही मायावी है. दवा मरीजों के स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से लिखा जाता है. लेकिन विडंबना यह है कि चिकित्सक स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से नहीं, बल्कि दवा कंपनियों के दृष्टिकोण से मरीजों को दवा लिखने में व्यस्त हैं. जानकार बतलाते हैं कि कोसी और सीमांचल के इलाके में सबसे अधिक दवा की बिक्री होती है और 50 से 70 फीसदी तक दवाइयां ऐसी होती है, जिसे मरीज की पर्ची पर लिखना आवश्यक नहीं होता है.
वह इसलिए लिखा जाता है कि डॉक्टर साहब को दवा कंपनी के टारगेट को पूरा करना होता है. दरअसल मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव जब चिकित्सक से मिल कर अपनी दवा लिखने के लिए राजी करते हैं तो उसी समय डील तय होता है और डॉक्टर को साल भर का टारगेट दिया जाता है, जिसके एवज में डॉक्टर को आर्थिक रूप से लाभान्वित किया जाता है.
लोगों की मानसिकता भी है जिम्मेवार . पौष्टिक आहार की कमी, स्वच्छता का अभाव, गरीबी, कुपोषण आदि कई कारण हैं, जो सीमांचल के लोगों को बीमार बनाने के लिए काफी हैं. शुद्ध पेयजल की अनुपलब्धता और स्वच्छ वातावरण का अभाव बीमारी का सबसे बड़ा कारण है. ऐसे में जब लोग बीमार होकर डॉक्टर के क्लिनिक तक पहुंचते हैं तो उनकी मानसिकता भी डॉक्टरों के हित में ही होता है. दरअसल कई बार ऐसा होता है कि डॉक्टर नहीं चाहते हुए भी मरीजों को अनावश्यक दवाईयां लिखते हैं.
हाल तो यह है कि कई बार मरीज भी डॉक्टर से कह कर अपने मन के मुताबिक दवा लिखवाते हैं. इस इलाके में यह भी भ्रांति मौजूद है कि कम दवा लिखने वाले डॉक्टर काबिल नहीं होते हैं. लिहाजा अधिक से अधिक दवा लिख कर डॉक्टर न केवल मरीजों की नजर में काबिल साबित होते हैं, बल्कि दवा कंपनियों की भी मुराद पूरी कर आर्थिक संबल प्राप्त करते हैं.
महंगे गिफ्ट और विदेश भ्रमण का मिलता है मौका
दवा कंपनियां डॉक्टरों की मुराद पूरी करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती है. हर खास मौके पर महंगे गिफ्ट उपलब्ध कराना दवा कंपनियों की व्यवसायिक रणनीति का हिस्सा होता है और मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव चिकित्सकों तक इन गिफ्टों को पहुंचाने का काम करते हैं. नामी-गिरामी डॉक्टरों की तो छोड़िये, छोटे-छोटे डॉक्टरों के घर भी दवा कंपनियों के गिफ्ट से भरे पड़े होते हैं.
इतना ही नहीं दवा कंपनियां विभिन्न मौके पर सेमिनार का भी आयोजन करती है. यह सेमिनार से अधिक डॉक्टरों के लिए पिकनिक होता है. अब जबकि ठंड दस्तक दे रही है, दवा कंपनियों और डॉक्टरों के लिए यह ‘ डल सीजन ‘ होगा. अचानक ही सेमिनार का दौर बढ़ जायेगा और देश-विदेश के भ्रमण पर डॉक्टर साहब निकल जायेंगे, जहां पांच सितारा सुविधा के बीच डॉक्टर साहब के ऐशो-आराम की हर सुविधा का ख्याल रखा जायेगा.
खुद भी बन बैठे हैं दवा के मैन्युफैक्चरर
सामाजिक सरोकार से दूर चिकित्सक अधिक से अधिक धन उपार्जन में लगे हुए हैं. जिन डॉक्टरों के क्लिनिक की उंचाई जितनी अधिक है, उन्होंने अर्थोपार्जन में किसी मोर्चे पर कभी कोई समझौता नहीं किया है. जब चिकित्सकों को लगा कि 25 से 50 फीसदी तक दवा कंपनियां कमीशन देने के बावजूद जब फायदे में रहती है तो जाहिर सी बात है
कि दवा का कारोबार चोखा धंधा है. नाम नहीं छापने की शर्त पर दवा कारोबार से जुड़े एक कारोबारी ने बताया कि यूं तो दवा के कमीशन के तौर पर ही डॉक्टरों को अच्छी-खासी रकम मिल जाती है, लेकिन कई ऐसे शहर के नामी-गिरामी डॉक्टर हैं, जो खुद ही किसी दवा कंपनी से जुड़ कर मैनुफैक्चरर बन बैठे हैं. ऐसे डॉक्टरों की प्रैक्टिस लंबी-चौड़ी है, अपना नर्सिंग होम है, दवा की खपत अधिक है. ऐसे में मैनुफैक्चरर बन कर अच्छी-खासी आमदनी कर पाने में सफल साबित हो रहे हैं.
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