पूर्णिया : ‘हे प्रभु, वास्तव में यह परिस्थिति की विडंबना है कि मुझे अपनी जीविका अनुसार लोगों को असहनीय कष्टों का सामना करते देखना पड़ता है. लेकिन फिर भी मेरा यह सौभाग्य है कि आपने मुझे उनके कष्टों का निवारण करने का उत्तम अवसर प्रदान किया है. आपने मुझे यह जिम्मेदारी पूरी करने की योग्यता […]
पूर्णिया : ‘हे प्रभु, वास्तव में यह परिस्थिति की विडंबना है कि मुझे अपनी जीविका अनुसार लोगों को असहनीय कष्टों का सामना करते देखना पड़ता है. लेकिन फिर भी मेरा यह सौभाग्य है कि आपने मुझे उनके कष्टों का निवारण करने का उत्तम अवसर प्रदान किया है. आपने मुझे यह जिम्मेदारी पूरी करने की योग्यता प्रदान की है. हे प्रभु, मुझे ऐसी शक्ति प्रदान करें कि मैं इस उद्देश्य को पूरी निष्ठा के साथ पूरी कर सकूं. वास्तव में आप ही कष्टों का निवारण करते हैं तथा सब सुखों के स्रोत हैं.
मैं तो केवल एक माध्यम मात्र हूं ’. यह वह प्रार्थना है जो अधिकांश डॉक्टरों के क्लिनिक में मोटे-मोटे अक्षरों में अंकित रहता है. इसे पढ़ कर आम लोगों को यही लगता है कि सचमुच धरती के डॉक्टर भगवान ही हैं और चूंकि ईश्वर सभी जगह मौजूद नहीं रह सकते हैं, इसलिए उन्होंने उन्हें अपना प्रतिनिधि बना कर भेजा है. लेकिन सच्चाई हकीकत से कोसों दूर है. धरती के भगवान के आदर्श बदल गये हैं और उनकी निष्ठा मरीजों द्वारा उपलब्ध करायी गयी फीस से तय होती है. विडंबना यह है कि अनाप-शनाप फीस से जब जी नहीं भरा तो पैथोलॉजी जांच से लेकर अल्ट्रासाउंड और एक्सरे तक में अपनी कमीशन तय कर ली.
बात यहीं नहीं रुकी, अपने आर्थिक कष्ट के निवारण के लिए दवाई में भी अपनी साझेदारी तय कर ली. कुल मिला कर मरीजों को लूटने की उत्तम व्यवस्था है और इस कार्य का पूरी निष्ठा के साथ निर्वहन भी हो रहा है.
िडग्री लेते ही देखने लगते हैं मरीज और देखते ही देखते धनकुबेर बन जाते हैं चिकित्सक
शहर के डॉक्टरों में अधिक से अधिक कमाने की होड़ मची हुई है. जिसके लिए डॉक्टरों ने कमाने का विभिन्न साधन भी जुटा लिया है. मरीज से जांच के नाम पर फीस लेना तो मामूली आय का स्रोत है. असली कमाई तो कुछ और है. जिसके माध्यम से देखते ही देखते डॉक्टर साहब धन कुबेर बन जाते हैं, जो डॉक्टर कल तक बाइक की सवारी करते थे. वे महज दो चार साल में ही लक्जरी वाहन से लेकर आलिशान बंगला और आधुनिक नर्सिंग होम के मालिक बन जाते हैं. यह तिलिस्मी जादू से कम नहीं होता है. ऐसा लगता है कि मानो इनके जेब में लक्ष्मी और जिन्न का एक साथ प्रवेश हो गया है. दरअसल इसका राज यह है कि चिकित्सकों की आमदनी का जरिया पैथो जांच के अलावा दवाई भी होती है.
निश्चित कंपनी की दवा लिखने से लाखों की कमाई
डॉक्टर साहब की चमचमाती कार का रहस्य उनकी अपनी मेहनत तो होती ही है, दवा कंपनियों की कृपा भी इन पर खूब बरसती है. बाजार में सैकड़ों दवा कंपनी है और उनके बीच अपने उत्पाद को बेचने की प्रतिस्पर्धा रहती है. यहीं से डॉक्टरों की मनमानी शुरू होती है. डॉक्टर और कंपनी के बीच मेडिकल रिप्रजेंटेटिव सूत्रधार की भूमिका में होता है, जो डील तय करता है. रिप्रजेंटेटिव ही संबंधित डॉक्टर को अपनी कंपनी का दवा लिखने के लिए तैयार करते हैं. इस एवज में एक निश्चित रकम तय होता है, जो टार्गेट पूरा करने पर डॉक्टरों को उपलब्ध कराया जाता है. इस मामले में डॉक्टर पूरी ईमानदारी बरतते हैं. इस प्रकार निश्चित कंपनी की दवा लिख कर प्रति वर्ष लाखों की कमाई की जाती है. जाहिर है कि इस तरह की समझौता वादी प्रवृत्ति की वजह से मरीज गुणवत्ता पूर्ण दवाई से वंचित रह जाते हैं.
25 से 40 फीसदी तक पाते हैं चिकित्सक कमीशन
दवा का बाजार पूरी तरह तिलिस्मी है. यूं कह लें कि जितना अधिक प्रचार प्रसार होता है, दवा की बिक्री उतनी अधिक होती है. कोई कंपनी जब एक निश्चित ऊंचाई तक पहुंच जाता है तो ब्रांडेड कहलाने लगता है. जबकि नयी कंपनियों को जगह बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है. ऐसे में बाजार में जगह बनाने के लिए डॉक्टरों को कमीशन देने का फंडा अपनाया जाता है. स्थापित कंपनियां 25 फीसदी तक चिकित्सकों को कमीशन देती है तो नयी कंपनियां 40 से 50 फीसदी तक कमीशन देने में गुरेज नहीं करती है. वहीं कई दवा कंपनियां तो 60 से 70 फीसदी तक कमीशन दे देती है. इतना अधिक कमीशन देने वाले दवा कंपनियों की दवा की गुणवत्ता का भी सहज अनुमान लगाया जा सकता है. जाहिर है दवा से मिले कमीशन से डॉक्टरों की दुनिया चकाचौंध है और गरीब मरीज चिकित्सक के नहीं भगवान के भरोसे जिंदा हैं.