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लाइट बुझाते, ट्रैक्टर पर बैठ फॉगिंग कराते थे रामकृपाल
अनिकेत त्रिवेदी पटना : राजनीति चाहे राज्य स्तर की हो या केंद्र स्तर की, दोनों ही जगहों पर पटना नगर निगम से निकले नेताओं ने अपनी धमक प्रस्तुत की है. राजनीति में पटना नगर निगम का इतिहास पुराना है. देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद हों या वर्तमान में केंद्रीय राज्यमंत्री रामकृपाल यादव, दोनों नगर […]
अनिकेत त्रिवेदी
पटना : राजनीति चाहे राज्य स्तर की हो या केंद्र स्तर की, दोनों ही जगहों पर पटना नगर निगम से निकले नेताओं ने अपनी धमक प्रस्तुत की है. राजनीति में पटना नगर निगम का इतिहास पुराना है.
देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद हों या वर्तमान में केंद्रीय राज्यमंत्री रामकृपाल यादव, दोनों नगर निगम की राजनीति से जुड़े रहे हैं. रामकृपाल यादव पटना नगर निगम में पार्षद रहे हैं. पार्षद के साथ उप महापौर का पद भी सुशोभित किया. रामकृपाल पहले एेसे निगम पार्षद हैं, जो केंद्र सरकार के मंत्री बने. नगर निगम के चुनाव को लेेकर पुराने इतिहास तक की चर्चा करते हुए रामकृपाल यादव बताते हैं कि वे 1984 में वार्ड 10 से निगम पार्षद चुने गये थे, जो वर्तमान में वार्ड 28 है.
इसके बाद ही वे पहली बार में ही उपमहापौर भी बन गये. उपमहापौर बनने के बाद हमने काम करना शुरू किया. उस समय साइकिल का दौर था. एक साल में नगर निगम की ओर से 50-60 बल्ब दिये जाते हैं. स्ट्रीट लाइट की जिम्मेवारी भी नगर निगम की होती थी. मैं खुद साइकिल पर लाइट चेक करने लगभग प्रतिदिन सड़कों पर घूमा करता था. साइकिल पर निगम का मिस्त्री रहता था. हम लोग मिल कर प्रतिदिन सुबह लाइट बुझाने का काम करते थे.
इसके बाद जब एक माह में फॉगिंग करनी होती, तो खुद ट्रैक्टर पर बैठ कर वार्ड में फॉगिंग कराता था. बतौर रामकृपाल उन्होंने पार्षद का पहला चुनाव अपने मामा के विरोध में लड़ा था. जब वे पार्षद बने, तो निगम के मेयर केएन सहाय का दौर हुआ करता था. उनके विरोध में कोई आवाज नहीं उठाता था. उन्होंने बैजनाथ गोप को उप महापौर का उम्मीदवार बनाया, लेकिन हमने अपने समर्थकों के साथ लोकतांत्रिक मोरचा बनाया. इसके बाद लड़ाई शुरू की और केएन सहाय के ग्रुप को तोड़ दिया गया और मेरा कब्जा उप महापौर के पद पर हो गया. लगभग आठ वर्षों तक निगम की राजनीति करते रहे. उस समय निगम की राजनीति मेरे इर्द-गिर्द घुमा करती थी.
निगम राजनीति से मिली पहचान, लेकिन आज वहां का स्तर ही गिर गया. रामकृपाल यादव बताते हैं कि उन्हें निगम राजनीति से ही राज्य स्तर की राजनीति की पहचान मिली.
निगम के काम के बदौलत ही मैंने विधान सभा का चुनाव लड़ा और जीता भी, लेकिन अब निगम की राजनीति का स्तर गिर गया है. कई बार सुनने में आता है कि बैठक में पार्षद आपस में लड़ जाते हैं. मैं नगर निगम का सदस्य हूं. मगर उनकी बैठकों में नहीं जाता. अच्छी नगर सरकार बने, तो फिर से जाना शुरू किया जायेगा.
रामकृपाल बताते हैं कि आज से दो दशक पहले नगर निगम में दो बड़ी समस्याएं थीं, जो आज भी बरकरार हैं.उस समय भी शहर में जल-जमाव होता था और लोगों को पेय जल की समस्या थी. अाज भी वही समस्याएं हैं, तब भी सफाई मजदूरों को अभाव है. आज भी सफाई मजदूर नहीं दिखते. वहीं निगम के नगर आयुक्त को पहले मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी कहा जाता था.
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