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नाम एम्स, पर सुविधाएं मेिडकल कॉलेजों जैसी भी नहीं

पटना: पटना एम्स को बने पांच साल हो गये हैं, पर यहां सुविधाओं का भारी टोटा है. अस्पताल के हालात मेडिकल कॉलेजों जैसी भी नहीं है. अगर एम्स की तुलना किसी पीएचसी से की जाये, तो गलत नहीं होगा. सबसे पहले तो मरीजों को यहां पहुंचने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है. जर्जर सड़क बारिश […]

पटना: पटना एम्स को बने पांच साल हो गये हैं, पर यहां सुविधाओं का भारी टोटा है. अस्पताल के हालात मेडिकल कॉलेजों जैसी भी नहीं है. अगर एम्स की तुलना किसी पीएचसी से की जाये, तो गलत नहीं होगा. सबसे पहले तो मरीजों को यहां पहुंचने में कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है. जर्जर सड़क बारिश के मौसम में चलने लायक नहीं रह जाती है. अनिसाबाद से फुलवारीशरीफ तक जाम से निकलकर अस्पताल तक पहुंचने में मरीजों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. कई बार मरीजों की स्थिति नाजुक भी हो जाती है. 960 करोड़ की लागत से बनाये जा रहे पटना एम्स अधिकारियों की आपसी खींचतान के कारण पहले से ही चार साल पिछड़ गया है. इसके बावजूद जिम्मेवार अधिकारियों की ओर से सुविधा के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है.
इमरजेंसी व ब्लड के अभाव में हो जाती है मौत : एम्स का नाम सुन यहां रोजाना हजारों की संख्या में मरीजों का आना-जाना होता है. कई गंभीर मरीज नाम सुनकर आ तो जाते हैं, लेकिन इमरजेंसी व ब्लड बैंक नहीं होने के कारण मरीज को रेफर कर दिया जाता है. इस कारण कई बार गंभीर मरीज की बीच रास्ते में ही उनकी मौत भी हो जाती है. जबकि, दो साल से इमरजेंसी का निर्माण चल रहा है. वर्तमान में यहां ब्लड स्टोरेज यूनिट ही काम कर रहा है.

डॉक्टरों के अभाव में शुरू नहीं हो पायी इमरजेंसी, 12 डॉक्टर भी छोड़ चुके हैं एम्स : एम्स अधिकारियों की मानें तो डॉक्टरों की कमी के कारण इमरजेंसी वार्ड व कई विभाग में ओपीडी सेवा नहीं शुरू हो पा रही है. वर्तमान में 70 से अधिक डॉक्टरों की कमी बतायी जा रही है. इतना ही नहीं अधिकारियों की आपसी खींचतान, शोध कार्य नहीं होने और विभागों की स्थिति जर्जर होने की वजह से पिछले दो साल में 12 डॉक्टर नौकरी छोड़ चुके हैं. अधिकतर नयी दिल्ली एम्स, केजीएमसी लखनऊ, पीजीआइ चंडीगढ़ जैसे संस्थानों में योगदान कर चुके हैं. वहीं, कुछ डॉक्टर बड़े पैकेज पर प्राइवेट हॉस्पिटल में अपनी सेवाएं दे रहे हैं.
ये विभाग अब तक नहीं शुरू हुए : गैस्ट्रो इंट्रोलॉजी, गैस्ट्रो इंट्रोलॉजी सर्जरी, न्यूक्लियर मेडिसिन, ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन, न्यू नेटोलॉजी, न्यूरोलॉजी, एरो स्पेस मेडिसिन, नेफ्रोलॉजी, यूरोलॉजी आदि विभाग नहीं शुरू हो पाये हैं.
2012 में ही बनकर होना था तैयार
2006 में एम्स का निर्माण कार्य शुरू हुआ था, जिसे 2012 तक पूरा होना था. 960 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले एम्स के लिए छह पैकेज निर्धारित थे. इसी के अनुसार बजट भी मुहैया हुआ. लेकिन, अधिकारियों में आपसी सामंजस्य नहीं होने से इसका विकास कार्य प्रभावित हुआ. इसे 950 बेडों का अस्पताल बनाया जाना है. जबकि, अब तक सिर्फ 200 बेडों पर ही सुविधाएं मिल रही हैं. अस्पताल में 500 बेड मेडिकल कॉलेज के छात्रों की पढ़ाई के लिए होंगे, 300 बेड सुपर स्पेशियलिटी विभागों के लिए, 100 बेड आइसीयू के लिए, 30 बेड आयुष विभाग और 30 बेड फिजियोथेरेपी के लिए होगा. एम्स को पूर्णत: तैयार होने में अभी दो साल और समय लगने का अनुमान है.
क्या कहते हैं अधिकारी
पटना एम्स में निर्माण कार्य बहुत धीमी गति से हुआ है यह सही बात है, लेकिन विगत कुछ महीनों से काम में तेजी भी आयी है. आनन-फानन में इमरजेंसी वार्ड को शुरू नहीं किया जा रहा है. क्योंकि, इमरजेंसी के लिए डॉक्टरों की भरती होने वाली है. पर्याप्त डॉक्टर जैसे ही मिल जायेंगे इमरजेंसी सेवा शुरू हो जायेगी.
डॉ उमेश भदानी, मेडिकल सु. एम्स

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