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निगरानी ब्यूरो पहल करके भ्रष्टाचार पर हमले क्यों नहीं करता!

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक बिहार निगरानी अन्वेषण ब्यूरो खुद अपनी पहल पर भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करता? पहले तो करता था. पुराने जानकार लोग बताते हैं कि निगरानी ब्यूरो के जब भी कोई ईमानदार अफसर प्रधान बने, उड़न दस्ते सक्रिय हो जाते थे. बिना किसी शिकायत के दस्ते छापामारी करते रहते थे. अब […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
बिहार निगरानी अन्वेषण ब्यूरो खुद अपनी पहल पर भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करता? पहले तो करता था. पुराने जानकार लोग बताते हैं कि निगरानी ब्यूरो के जब भी कोई ईमानदार अफसर प्रधान बने, उड़न दस्ते सक्रिय हो जाते थे. बिना किसी शिकायत के दस्ते छापामारी करते रहते थे. अब क्या हो गया? अब तो जो केस उसे सौंपे जाते हैं, उसी को ब्यूरो देखता है. यदि अपनी पहल पर निगरानी ब्यूरो कार्रवाई करता तो बिहार कर्मचारी चयन आयोग में जो कुछ हुआ, वह सब नहीं होता. पहले ही रोक लग जाती.
बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के अभूतपूर्व और शर्मनाक घोटालों का पर्दाफाश तभी हो सका जब एक टीवी चैनल ने प्रोटिकल गर्ल की योग्यता-क्षमता का पर्दाफाश किया. जिस लड़की को बोर्ड ने पूरे राज्य का टॉपर बना दिया था, उसे पालिटिकल साइंस के स्पेलिंग और उच्चारण भी मालूम नहीं थे. राज्य सरकार का यह तर्क सही हो सकता है कि बोर्ड के तब के अध्यक्ष की ललाट पर यह नहीं लिखा हुआ था कि वह घोटालेबाज है. पर क्या कर्मचारी चयन आयोग के कर्ताधर्ता के कारनामों के बारे में भी सरकार को कोई पूर्व सूचना नहीं थी? याद रहे कि इससे पहले भी गड़बड़ियों के कारण एक से अधिक बार आयोग की परीक्षाएं रद्द करनी पड़ी थीं.
तभी राज्य सरकार क्यों नहीं जग गयी? इस पर सरकार का यह तर्क हो सकता है कि सरकार के पास और भी बहुत सारे काम होते हैं. तब सवाल यह है कि निगरानी अन्वेषण ब्यूरो को सर्वव्यापी भ्रष्टाचार के अनुपात में सशक्त और प्रो एक्टिव क्यों नहीं बनाया जा सकता है? एक समय था जब गैर सरकारी व्यक्ति को भ्रष्टाचार निरोधक संगठन का प्रधान बनाया जाता था. संभवतः वह प्रयोग विफल रहा. पर किसी टाइम-टेस्टेड ईमानदार पूर्व उच्चाधिकारी को तो यह काम सौंपा ही जा सकता है. बिहार में कुछ रिटायर आइएएस और आइपीएस अफसरों की चर्चा होती रहती है जिन्होंने सरकार में रहते हुए कभी भी रिश्वतखोरी को बढ़ावा नहीं दिया. कम से कम ऐसे लोगों को शिक्षा और परीक्षा वाले सरकारी संगठनों के सर्वोच्च पदों पर तो बिठाकर स्थिति को सुधारने की कोशिश की ही जा सकती है.
प्रधानमंत्री भी अफसरों के भ्रष्टाचार से दुःखी
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई साल पहले लोगों से यह अपील की थी कि वे भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ स्टिंग आपरेशन चलाएं. इस पर बिहार प्रशासनिक सेवा संघ ने सख्त एतराज किया था.
उस एतराज से ही यह साबित हो गया था कि अफसर अपनी शैली बदलना नहीं चाहते. यही रवैया पूरे देश के अधिकतर अफसरों का भी है. दिल्ली से भी यह खबर मिलती रहती है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी महत्वपूर्ण पदों पर काबिज कुछ बड़े अफसरों के भ्रष्टाचार से दुःखी रहते हैं. मोदी ने अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को वेतन पर काम करने की आदत लगा दी, पर अफसरों की आदतें बदलने में विफल रहे. मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य जल की मछली की तरह कुछ पानी पी जा रहे होंगे तो बात कुछ और है.
हालांकि वैसी खबर अभी आम नहीं हुई है. घोटाले और महाघोटाले की खबर नहीं है जैसी खबरें मनमोहन सरकार के दौर में आती रहती थीं. पर सवाल है कि व्यक्तिगत ईमानदारी के लिए चर्चित नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार जैसे नेता भी भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक क्यों नहीं कर सकते? दरअसल गद्दी पर बैठे नेताओं को उनके कुछ शुभचिंतक यह सलाह देने लगते हैं कि ऐसा कोई खतरा मोल मत लीजिए, जिससे गद्दी पर ही खतरा आ जाए. क्योंकि आपको शासन में रहकर देश-प्रदेश के हित में अभी और भी बहुत सारे महत्वपूर्ण काम करने हैं.
पर वे नहीं जानते कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक से अधिक महत्वपूर्ण काम आज कुछ और नहीं है. अरविंद केजरीवाल ने अपने 49 दिन के प्रथम कार्यकाल में जब यह दिखा दिया कि भ्रष्टाचार के प्रति उनकी शून्य सहनशीलता है तो अगले चुनाव में दिल्ली की जनता ने आप को सत्तर में से 67 सीटें दे दीं. जानकार लोग बताते हैं कि यदि नरेंद्र मोदी भ्रष्टाचार से लड़ते हुए सरकार गंवा भी दें तो अगले लोकसभा चुनाव में उन्हें जनता इतनी सीटें दे देगी जिससे वे हर क्षेत्र के भ्रष्टाचारियों को ठंडा करने की ताकत पा लेंगे. यही बात किसी मुख्यमंत्री पर भी लागू होती है.
बिहार कर्मचारी चयन आयोग के शर्मनाक घोटालों को देखकर यही कहा जा सकता है कि जल्द कुछ कड़े कदम उठाने की सख्त जरूरत है. अन्यथा देर हो जाएगी. जिस राज्य व देश के लाखों प्रतिभाशाली और गरीब युवजन इस नतीजे पर पहुंच जाएंगे कि यहां हर पद बिकाऊ है, तो वहां कुछ भी अशुभ हो सकता है. इस आशंका को निर्मूल करने की कूबत नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार में मौजूद है, ऐसा अनेक लोगों को लगता है. बस हनुमान को उनकी शक्ति का एहसास कराने की जरूरत है.
ट्रम्प आखिर कैसे करें आतंकियों से अमेरिका की रक्षा : दुनिया के जो लोग अपने देश को भारत की तरह धर्मशाला नहीं बनाना चाहते हैं, उन्हें अमेरिका के राष्ट्रपति की तरह सोचने का पूरा हक है. पर डोनाल्ड ट्रम्प थोड़ा अतिवादी लगते हैं. पर आखिर अमेरिका के लोगों ने उन्हें ही चुना है. परिस्थितियों के अनुसार भारत सहित कोई भी देश अलग-अलग स्वभाव का नेता चुनता है. अमेरिकी जनता ने ट्रम्प के अतिवाद को पसंद करके ही तो उन्हें चुना है. खबर है कि कुछ अन्य देशों की जनता भी इस मामले में अमेरिका की राह पर है.
पर खुद ट्रम्प को अब एक जिम्मेदार नेता के रूप में व्यवहार करना चाहिए. कुछ देशों के लोगों को अमेरिका प्रवेश से रोकने से पहले उन्हें अंतरराष्ट्रीय फोरम पर अपनी आंतरिक सुरक्षा की समस्या रखनी चाहिए थी. उधर, जिन लोगों को ट्रम्प की इस रोक पर एतराज है, उन्हें इस बात का वैकल्पिक उपाय बताना चाहिए कि आखिर किसी देश का शासक अपने नागरिकों को आतंकी हमले से कैसे बचाये. यदि आप ट्रम्प की सिर्फ आलोचना करेंगे और उपाय नहीं सुझाएंगे तो आपकी मंशा पर अनेक लोगों को शक होगा.
आतंकवाद पर भारत में गंभीरता की कमी घुसपैठियों ने भारत को धर्मशाला समझ रखा है. बाहरी और भीतरी तत्वों की मदद से कई तरफ से विदेशी नागरिक भारत में प्रवेश करके बसते जा रहे हैं.
उनमें से कुछ शरणार्थी जरूर हैं, पर अधिकतर अतक्रिमणकारी है. उनमें कई आतंकी तत्वों को पनाह भी दे रहे हैं. पर वोट के लिए हमारे देश के अनेक नेता व दल उन घुसपैठियों के लिए राशन कार्ड का प्रबंध कर रहे हैं और मतदाता सूची में उनके नाम दर्ज करवा रहे हैं. इस मामले में पश्चिम बंगाल और असम की स्थिति बहुत खराब रही है. खबर है कि बंगाल में तो एक और कश्मीर पल रहा है. कुछ तथाकथित सेक्युलर दल भाजपा के बड़े विरोधी है. ठीक ही है. विरोध होना भी चाहिए. पर क्या ऐसी राष्ट्रद्रोही गतिविधियों का विरोध करने का काम सिर्फ भाजपा का है? यदि यह काम सिर्फ उसी के जिम्मे आप छोड़ देंगे तो भाजपा जनता में और मजबूत होगी. अब बताइए कि जाने-अनजाने भाजपा के मददगार आप बन रहे हैं या नहीं? देश की एकता-अखंडता की रक्षा करने की जिम्मेदारी हमारे संविधान ने सभी नागरिकों पर सौंपी है.
और अंत में : व्यापमं घोटाले की तरह का है ताजा बिहार कर्मचारी चयन आयोग घोटाला. इस घोटाले के आरोपी सचिव परमेश्वर राम हाल में एसआइटी के सामने थे. पूछताछ हो रही थी. पर परमेश्वर के जवाब में एक अजीब हेंकड़ी और ऐंठ थी. कोई डर-भय नहीं. साफ लगता था कि परमेश्वर को किन्हीं बड़ी हस्तियों का संरक्षण मिला हुआ है.

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