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बेरोजगारी दूर करने और लघु उद्याेगों को बढ़ावा देने के प्रयास होने चाहिए थे
सुनील रे निदेशक, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट, पटना तक कितने रोजगार के अवसर सृजित होंगे व आयकर में छूट मिलने का दावा किया जा रहा है, तो इसमें भी पेच है.आम बजट में देश की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी को दूर करने के लिए कोई उपाय नहीं किये गये हैं. केंद्रीय वित्त मंत्री से मैं पूछना […]
सुनील रे
निदेशक, एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट, पटना
तक कितने रोजगार के अवसर सृजित होंगे व आयकर में छूट मिलने का दावा किया जा रहा है, तो इसमें भी पेच है.आम बजट में देश की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी को दूर करने के लिए कोई उपाय नहीं किये गये हैं. केंद्रीय वित्त मंत्री से मैं पूछना चाहता हूं कि कृषि पैदावार बढाने, किसानों की समस्या दूर करने, क्लाइमेट बदलने से जो खेती किसानी पर असर पड़ रहा है उसके लिए आपकी बजट में क्या प्रावधान किये गये हैं. जो भी चर्चा हुई है उससे देश की इन विकराल समस्याओं का कोई समाधान नहीं निकल पायेगा. देश की सबसे बड़ा संकट बेराजेगारी दूर करना है. लाखों की संख्या में पढ़े लिखे युवा विवि से बाहर प्रति वर्ष निकल रहे हैं. उनके सामने रोजगार का संकट है.
आम लोग अपना पेट काट कर और बड़ी ही तकलीफ से बच्चों को इस उम्मीद में स्कूल कालेज भेजते हैं कि बड़ा होकर वह अच्छी नौकरी पायेगा. लेकिन, जब बेहतर शिक्षा के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिलती है लोग निराश और हताश हो रहे हैं. यह तो पढ़े लिखे युवाओं का संकट है.
उनसे कई गुना अधिक अनपढ़ युवाओं की संख्या है. इन्हें कोई रोजगार कैसे मिले इस पर बजट में कोई योजना नहीं दिख रही. बजट में खाद्य सुरक्षा और आधारभूत संरचना को विकसित करने पर भी कोई जोर नहीं दिया गया है. खास बात यह कि बिहार विधानसभा चुनाव के पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य के विकास के लिए सवा लाख करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की सार्वजनिक मंच से घोषणा की थी. लेकिन, इस बजट में उस ऐलान का नामोंनिशान तक नहीं दिखा. दूसरे राज्यों का विभाजन हुआ तो उन्हें भरपायी के तौर पर विशेष सुविधाएं दी गयीं. लेकिन, बिहार के मामले में ऐसा नहीं हुआ. बजट में कुछ भी नया नहीं है. मनरेगा के बजट में 10 हजार करोड़ रुपये बढ़ा दिया गया.
लेकिन, इसके क्रियान्वयन में कितना भ्रष्टाचार है उससे इस योजना का लाभ जरूरतमंदों को किस प्रकार मिल पायेगा, इसकी योजना नहीं है. सरकार को रोजगार पैदा करने के अवसर पर जोर देना चाहिए था. लेकिन, जो कुछ कहा गया उससे यह नहीं सामने आ रहा कि 2022 तक कितने रोजगार के अवसर सृजित होंगे. आयकर में छूट मिलने का दावा किया जा रहा है तो इसमें भी पेच है. कोई तीन लाख रुपये सालाना कमाने वाले आदमी को पचास हजार रुपये की छूट तभी मिलेगी जब वह पचास हजार रुपये की बचत कर सकेगा.
महंगाई के दौर में कोई तीन लाख रुपये कमाने वाला परिवार किस प्रकार पचास हजार रुपये जमा कर सकेगा, इस पर कोई चर्चा नहीं है. कैशलेस इकोनोमी पर जोर देने की बात कही गयी है. लेकिन, 70 प्रतिशत लोगों के पास खाता नहीं हैं, वहां कैशलेस की बात किस तरह सफल हो सकती है. लघु उद्योग और कृषि आधारित उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए बजटीय प्रावधान की कोई चर्चा नहीं की गयी है. बजट उत्साहित करनेवाला नहीं कहा जा सकता
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