हर साल बजट से उम्मीद रहती है कि किन्नरों को सुविधा दी जायेगी. आवासीय और शिक्षा की सुविधा मिलेगी, तो किन्नर समाज आगे बढ़ पायेगा. तीन साल से बजट में थर्ड जेंडर सुविधाओं का इंतजार कर रही थी. लेकिन, इस बार भी बजट ने हमें निराश कर दिया.
Advertisement
Discussion : टैक्स छूट से फायदा, स्किल डेवलपमेंट पर भी जोर
बुधवार को बजट 2017-18 पर प्रभात खबर द्वारा आयोजित परिचर्चा में शहर के कई नामी अर्थशास्त्री, शिक्षाविद और चार्टर अकाउंटेंट शामिल हुए और अपने विचार रखे. परिचर्चा में वित्तमंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत बजट को ज्यादातर विशेषज्ञों ने ठीक-ठाक बताया, जिसमें कुछ प्रस्ताव लोक लुभावन हैं तो कुछ ठोस आर्थिक कदम भी. विशेषज्ञों की नजर […]
बुधवार को बजट 2017-18 पर प्रभात खबर द्वारा आयोजित परिचर्चा में शहर के कई नामी अर्थशास्त्री, शिक्षाविद और चार्टर अकाउंटेंट शामिल हुए और अपने विचार रखे. परिचर्चा में वित्तमंत्री अरुण जेटली द्वारा प्रस्तुत बजट को ज्यादातर विशेषज्ञों ने ठीक-ठाक बताया, जिसमें कुछ प्रस्ताव लोक लुभावन हैं तो कुछ ठोस आर्थिक कदम भी.
विशेषज्ञों की नजर में इसमें नोटबंदी से प्राप्त डाटा बेस और उसके बाद बदले हालात का फायदा उठाने का प्रयास भी दिखता है. हालांकि वह कितना सफल होगा, इसमें सारे विशेषज्ञ एकमत नहीं थे. परिचर्चा में बजट में दी गयी टैक्स छूट से फायदा मिलने की उम्मीद जतायी गयी. साथ ही, स्किल डेवलपमेंट पर दिये गये जोर को भी बेहतर कदम बताया गया. वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने बजट में स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों पर कम ध्यान देने का मसला भी उठाया.
अलग बॉडी एग्जाम लेगी तो बेहतर होंगे परिणाम
बजट में सरकार ने जो पहल जेइइ व मेडिकल के क्षेत्रों में परीक्षा लेने को लेकर की है, उसे बेहतर कहा जा सकता है. अभी तक सीबीएसइ और एआइसीटीइ ही तमाम हायर एजुकेशन व टेक्नीकल एजुकेशन के परीक्षाएं को लेती रही है.
अब जब इन परीक्षाओं के लिए अलग बॉडी होगी, तो वह केवल और केवल इन पर ही फोकस करेगी. इससे यह फायदा होगा कि कस्टमाइज तरीके से इनको आयोजित किया जायेगा. इससे जेइइ और मेडिकल दोनों ही क्षेत्रों में अच्छी प्रतिभा सामने आ सकती है. विदेशी भाषाओं को स्टडी कराने के लिए भी सरकार की तरफ से पहल को अच्छा कहा जा सकता है. हालांकि यह स्टूडेंट्स के इच्छा पर निर्भर है. आमतौर पर हायर एजुकेशन के छात्र स्टडी करने के बाद दूसरे देशों में जाने को इच्छुक रहते हैं. अगर वह किसी देश में हायर स्टडी के लिए जायेंगे तो उनका बेस पहले से ही बेहतर हो सकता है.
डॉक्टर एम. रहमान, शिक्षाविद
नोटबंदी के असर से प्रभावित दिख रहा बजट
पिछले वर्ष की गयी नोटबंदी सरकार की एक अप्रत्याशित पहल थी. यह बजट भी नोटबंदी के असर से प्रभावित दिख रही है. नोटबंदी की घोषणा के समय सरकार के दावे बहुत कुछ थे.
उसका उतना लाभ नहीं मिला, लेकिन कुछ सेक्टर में असर दिख रहा है. कई क्षेत्र ऐसे भी हैं, जहां कुछ समय बाद बदलाव आने की संभावना है. सरकार के पास नोटबंदी के बाद काफी संख्या में डाटा एकत्रित हुए हैं. इसमें सामने आया है कि कितने लोगों ने अपनी राशि को छुपा रखा था. कितने लोगों की आय कितनी है. अब इसे प्रयोग में लाने के लिए सरकार के पास बेहतर मौका है. वित्तमंत्री के भाषण से ऐसा लग रहा है कि अगामी वित्तीय वर्ष में इस मामले में कुछ कड़ी कार्रवाई करेंगे. सरकार यदि मौके का बेहतर इस्तेमाल कर सकी तो भविष्य में और बेहतर परिणाम आ सकते हैं.
शशिमोहन, सीए
उद्यमिता विकास केंद्रों को खोलना बेहतर कदम
बजट में स्किल डेवलपमेंट पर जोर दिया गया है. इसके दूरगामी परिणाम निकलेंगे. सरकार सबको रोजगार नहीं दे पा रही है. ऐसे में प्रशिक्षण दे कर उन्हें स्व रोजगार के लायक बनाना एक बेहतर कदम है.
हालांकि इसके क्रियान्वयन पर भी ध्यान देना होगा. बजट में आधारभूत संरचना के विकास पर 3.96 लाख करोड़ का आवंटन भी एक बेहतर कदम है. मनरेगा पर बजट को बढ़ा कर 38,500 करोड़ से 48,000 करोड़ किया गया है. निश्चित रुप से इससे गांवों में सड़क, तालाब जैसे आधारभूत संरचना का निर्माण होगा और उसके विकास को बल मिलेगा. किसानों की आय को बढ़ा कर अगले पांच वर्षों में दुगुना करने की बात कही गयी है. जितनी बड़ी राशि निवेश की जा रही है, उससे इस लक्ष्य को पाने की दिशा में तेजी बढ़ा जा सकता है. किसानों के पास पैसा जायेगा तो उसका असर दिखेगा ही.
अभिषेक सिंह, महासचिव, बिहार उद्यमी संघ
कर में कमी का होगा सकारात्मक असर
50 करोड़ रुपये तक का कारोबार करनेवाली कंपनी पर लगनेवाले कर को 30 से घटा कर 25 फीसदी कर दिया गया है. इसका कारोबारियों पर अच्छा असर पड़ेगा. खासकर छोटे कारोबारियों में इससे अपनी खुद की कंपनी बनाने की प्रवृति को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे उनके कारोबार में वृद्धि होगी. नोटबंदी के बाद से यह वर्ग अधिक परेशान था और इस कदम के द्वारा उसे कुछ हद तक खुश करने का प्रयास किया गया है. आयकर स्लैब को 2.5 लाख से बढ़ा कर 3 लाख करने और पांच लाख तक लगनेवाले आयकर की दर को 10 फीसदी से घटा कर पांच फीसदी करने से मध्यमवर्ग खासकर वेतनभोगी वर्ग को भी थोड़ी राहत मिली है. इससे कर का आधार भी बढ़ेगा और लोग कम कर दरों के कारण कर वंचना की बजाये उसे चुकाना बेहतर समझेंगे.
राजेश खेतान, सीए
मूलभूत चीजों पर केंद्र सरकार ने नहीं की बात
सरकार के बजट में कई मूलभूत चीजों की चर्चा ही नहीं हुई है. दूसरी हरित क्रांति या श्वेत क्रांति का भी जिक्र होता तो बेहतर होता. बजट में उस 77 प्रतिशत आबादी का जिक्र ही नहीं किया गया जो कि हर रोज बीस रूपये की आमदनी पर निर्भर है. बजट में डिस्ट्रीब्यूशन क्षेत्र में रिफॉर्म करने की कहीं कोई चर्चा नहीं हुई. पीडीएस सिस्टम ग्रामीण क्षेत्रों की रीढ़ है.
इसे दुरूस्त करने को लेकर भी कोई बात नहीं हुई है. न्यूट्रिशन के मसले पर हम बांगलादेश और श्रीलंका जैसे देशों से भी पीछे हैं. राइट टू एजुकेशन की बात होती है लेकिन इसके पहले राइट टू हेल्थ और राइट टू फूड भी आता है. जब खायेंगे नहीं, स्वस्थ नहीं रहेंगे तो शिक्षा कैसे हासिल करेंगे? शुरूआत तो राइट टू फूड से होनी चाहिए थी. लेकिन उसका बजट में कोई उल्लेख नहीं दिखता.
प्रोफेसर नवल किशोर चौधरी, अर्थशास्त्री सह पूर्व प्रिंसिपल पटना कॉलेज
नोटबंदी से फायदा लेने का दिख रहा प्रयास
बजट में नोटबंदी से फायदा उठाने का प्रयास दिख रहा है. उससे प्राप्त आंकड़ों का जिस तरह वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में उल्लेख किया, उससे लग रहा है कि सरकार कालाधन पर नियंत्रण के लिए आगे भी इसका उपयोग करेगी. सरकार के पास बस एक ही वर्ष है, इस मामले में कुछ करने के लिए. यदि अगाामी वित्तीय वर्ष में कुछ खास नहीं हुआ तो आगे चाहकर भी सरकार बहुत कुछ नहीं कर पायेगी. पिछले दिनों मंहगाई नियंत्रित हुई है. कुछ वस्तुओं के दाम खासकर रीयल स्टेट और रीटेल सेक्टर में घटे हैं, लेकिन यह सरकार के नीतिगत प्रयासों का नतीजा नहीं है. नोटबंदी के बाद हुए तरलता की कमी की वजह से ऐसा हुआ है. यदि जरुरी कदम नहीं उठाये गये तो जहां अभी कमी आयी है, आगे जाकर उन्ही क्षेत्रों में आपूर्ति की कमी के कारण कीमत बढ़ भी सकते हैं.
मसेन्द्र कुमार मसि, सीए
किन्नर संगठन को सुप्रीम कोर्ट ने थर्ड जेंडर की मान्यता अप्रैल, 2014 में दिया था. अब तो जेंडर बजट पेश किया जाता है. लेकिन, बजट में थर्ड जेंडर नहीं होता है. किन्नर दोस्ताना सफर की सचिव रेशमा प्रसाद ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने हमें थर्ड जेंडर की मान्यता तो दे दी, पर हमें सरकार की ओर से कोई सुविधा नहीं मिलती है. हम हर चीजों के लिए संघर्ष करते हैं. कस्तूरबा गांधी विद्यालय और अांबेडकर विद्यालय जब दलितों की पढ़ाई के लिए खुल सकती है, तो हमारे लिए भी ऐसी जगह चिह्नित होनी चाहिए.
परिवार बेदखल कर देता है, कहां रहेंगे और कैसे करेंगे पढ़ाई पूरी : किन्नर वीरा यादव पटना विवि से सोशल वर्क में पीजी कर रही है. परिवारवालों ने इन्हें घर से बेदखल कर दिया है. इससे इन्हें किराये के मकान में रहना पड़ता है. घर में किराये और खाने पर होनेवाले खर्च को पूरा करने के लिए वीरा यादव हर शनिवार को ट्रेन में पैसे मांगने जाती है.
वीरा यादव ने बताया कि तीन या चार शनिवार ट्रेन में जाने से मुझे तीन से चार हजार रुपये की आमदनी हो जाती है. इससे मेरा खर्च निकल जाता है. कुछ ऐसी ही कहानी सैकड़ों किन्नर की है, जो पढ़ कर अपने पांव पर खड़ा हाेना चाहती है. रेशमा प्रसाद ने बताया कि आवासीय छात्रावास की सुविधा हमें मिलनी चाहिए. उन्होंने बताया कि लिंग परिवर्तन करने के लिए कम-से-कम पांच लाख रुपये हमें खर्च करने पड़ते हैं, सरकार की ओर से कोई छूट भी इस संबंध में हमें नहीं मिलता है.
बिहार बोर्ड ने दिया हमें थर्ड जेंडर का सम्मान, आगे मिलेगी मदद : किन्नर रागनी इस बार इंटरमीडिएट की परीक्षा में शामिल हो रही है. बिहार बोर्ड ने रागनी को थर्ड जेंडर के कॉलम में जगह दिया है. किन्नर रागिनी ने बताया कि काफी अच्छा लगा, जब स्कूल ने हमें हमारे थर्ड जेंडर के कॉलम वाले केटेगरी में भरा. हमें थर्ड जेंडर का एडमिट कार्ड मिलेगा.
इससे हमें आगे की पढ़ाई करने में भी सुविधा मिलेगी. रेशमा प्रसाद ने बताया कि बिहार बोर्ड का यह प्रयास काफी अच्छा है. इससे हायर एजुकेशन में हमें मदद मिलेगी.
आम बजट बिहार जैसे पिछड़े राज्य के लिए उम्मीद भरा है. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उम्मीदों वाला बजट बनाया है. मनरेगा में दस हजार करोड़ रुपये बजट की बढ़ोतरी की गयी है. निश्चित तौर पर बिहार को इसका लाभ मिल पायेगा. ग्रामीण स्तर पर बेरोजगारी की समस्या दूर करने में मनरेगा कारगर साबित हो सकता है. बशर्ते सरकार को इसके बेहतर तरीके से लागू करना होगा. केंद्र सरकार के इस बजट को पोपुलिस्ट बजट कहा जा सकता है.
रेल बजट को आम बजट के साथ पेश करने से रेलवे की बहुत सारी चीजें सामने नहीं दिख रही. जब रेल बजट की पूरी बातें सामने आयेंगी तभी इसका वास्तविक लाभ दिख पायेगा. जहां तक नये एम्स गुजरात और झारखंड में खोले जाने की चर्चा की गयी है तो बिहार में यह पहले से ही उपलब्ध है. हां, यह अलग बात है कि बिहार को अौर एम्स मिले तो भी आबादी के अनुरूप कम ही होगा. पीएमजीएसवाइ, नेशनल हाइवे के निर्माण में भी जो रकम खर्च होगी उसका कुछ हिस्सा बिहार आयेगा. कुल मिला कर यह उम्मीदों पर टिका बजट है. बिहार के लिए कुछ बेहतर होने की उम्मीद से देखा जाना चाहिए.
पीके पटनायक (अर्थशास्त्री)
केंद्र सरकार के आम बजट में बिहार को बड़ी निराशा हुई है. बजट भाषण में बिहार की कोई चर्चा नहीं की गयी. वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने भाषण में आंध्र प्रदेश, ओड़िसा, झारखंड और गुजरात का जिक्र किया. इन राज्यों के लिए बजट में खास घोषणा भी हुई. लेकिन बिहार का जिक्र भी नहीं किया गया. बिहार की चिर प्रतीक्षित मांग विशेष राज्य का दर्जा देने की रही है. इसके लिए बिहार लगातार उम्मीद भरी नजरों से केंद्र की ओर देखता रहा है. इस बार के बजट में उम्मीद बंधी थी कि केंद्र की ओर से इस दिशा में कोई संकेत या घोषणा की जाये.
लेकिन, बिहार को इससे निराशा ही हाथ लगी है. बिहार की जो अपनी मांगे रहीं हैं, उस परी भी बजट भाषण में कुद नहीं कहा गया. पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि बीआरजीएफ को लेकर राज्य लगातार केंद्र के समक्ष अपनी बात रखता रहा है. बिहार इस मद में अधिक मदद की उम्मीद कर रहा था, लेकिन इस पर भी कोई चर्चा नहीं की गयी. रेल बजट का कोई जिक्र नहीं किया गया. पहले रेल बजट अलग से पेश करने पर सीधे तौर पर नयी ट्रेनें, नयी लाइन और अन्य सारी चीजें दिख जाती थी. इस बार वह सब कुछ भी नहीं है. 35000 किलाेमीटर नयी रेल लाइन बिछाने का जिक्र किया गया है लेकिन इसमें बिहार की हिस्सेदारी कितनी होगी इसकी चर्चा नहीं की गयी है. 14वें वित्त आयाग की सिफारिश पर बिहार के साथ जो नाइंसाफी हुई उसकी भी भरपायी नहीं की गयी. बजट में बिहार के लिए कुछ भी नया नहीं है.
आरके शाही, अर्थशास्त्री
आम बजट में नोटबंदी से आम आदमी खास कर गरीब तबका किस प्रकार उबरेगा, इसकी चर्चा नहीं की गयी है. नोटबंदी से सबसे अधिक महिला और दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूरों पर असर पड़ा है. महिलाएं सभी तरह से इससे जूझ रही हैं. आम लोगों को उम्मीद थी कि सरकार बजट भाषण में इस संकट से बाहर निकलने के उपायों की चर्चा करेगी. लेकिन, बजट भाषण से निराशा हुई है. महिलाओं के लिए तो कुछ भी खास नहीं है.
रोजगार के अवसर कैसे बढ़े और जिन लोगों के रोजगार छिन गये उनका जीवन फिर से किस प्रकार पटरी पर आये सरकार को अपने बजट में इसकी चर्चा करनी चाहिए थी. विश्व बैंक और यूनाइटेड नेशन की संस्थाओं ने लड़कियों की शिक्षा और स्वास्थ्य को लेकर कई बार चिंता प्रकट की है. वित्त मंत्री ने अपने बजट भाषण में इस संकट की चर्चा नहीं की. वैसे बैंकिंग सेक्टर के लिए बजट उम्मीदों भरा है.
डाॅ नंदिनी मेहता (अर्थशास्त्री)
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement