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जिला पर्षद के सैरातों पर जिम्मेवारों की नजर नहीं
पटना : पटना जिला पर्षद के सैैरात (संपत्ति) एक तरह से खैरात बना हुआ है. पूरे जिले में जिला पर्षद की संपत्ति की बंदोबस्ती या मूल्यांकन तीन सालों से नहीं हुआ है. जिला पर्षद द्वारा न तो इस संबंध में कोई पहल की गयी है और न ही बैठकों में इस पर विचार ही किया […]
पटना : पटना जिला पर्षद के सैैरात (संपत्ति) एक तरह से खैरात बना हुआ है. पूरे जिले में जिला पर्षद की संपत्ति की बंदोबस्ती या मूल्यांकन तीन सालों से नहीं हुआ है. जिला पर्षद द्वारा न तो इस संबंध में कोई पहल की गयी है और न ही बैठकों में इस पर विचार ही किया गया है. इस कारण तीन सालों से इस संपत्ति का दुरुपयोग हो रहा है. जिला पर्षद को इस संबंध में पुनर्मूल्यांकन करने के अधिकार है. बैठक में प्रस्ताव पेश कर सदन इस मुद्दे पर बहस आयोजित कर प्रस्ताव को पास कर इसका मूल्यांकन कर सकता है. मूल्यांकन के दौरान संपत्ति की वर्तमान स्थिति का भी पता चलता है. हालांकि, ऐसी कोई पहल अब तक नहीं की गयी है.
तीन साल पर होती है पुन: बंदोबस्ती : सैरातों की बंदोबस्ती तीन साल पर होती है. जिला पर्षद अपने स्तर से रेट को पुन: तय करता है. फाइल का अनुमोदन जिला पर्षद के अध्यक्ष और मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी करते हैं. इसके बाद जिला पर्षद के परिसर में ही खुली डाक होती है. इसके पहले प्रसार माध्यमों में विज्ञापन भी देना होता है. पूरी प्रक्रिया में स्टाफ भाग नहीं लेते हैं. रेट तय करने का नियम यह होता है कि वर्तमान दर को तीन सालों में 10 फीसदी क्रमवार जोड़ कर उसे तीन से डिवाइड किया जाता है. इस प्रकार कुल दर में दो से लेकर पांच प्रतिशत और अधिकतम दस प्रतिशत तक की वृद्धि होती है.
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