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राष्ट्रीय बालिका दिवस : घटने के बदले 12 फीसदी बढ़ गयी बच्चियों की मृत्यु दर
पुष्यमित्र पटना : बालिका शिशुओं की प्राण रक्षा की तमाम कोशिशें बिहार में रंग नहीं ला रही हैं. हकीकत यह है कि पिछले तीन सालों में नवजात बालिका शिशुओं की मृत्यु दर में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हो गयी है. जहां एक हजार नवजात बच्चों में एक साल के अंदर 36 बालक शिशुओं की ही […]
पुष्यमित्र
पटना : बालिका शिशुओं की प्राण रक्षा की तमाम कोशिशें बिहार में रंग नहीं ला रही हैं. हकीकत यह है कि पिछले तीन सालों में नवजात बालिका शिशुओं की मृत्यु दर में 20 फीसदी की बढ़ोतरी हो गयी है. जहां एक हजार नवजात बच्चों में एक साल के अंदर 36 बालक शिशुओं की ही मौत हो रही है, बालिकाओं के मामले में यह फासला बढ़ कर 50 पहुंच गया है, जो देश में सर्वाधिक है.
ध्यान देने वाली बात यह है कि 2013 में बालिका शिशु मृत्यु दर प्रति एक हजार बच्चियों में सिर्फ 43 थी. विशेषज्ञों का मानना है कि बालिका शिशु मृत्यु दर के बढ़ने की वजह बच्चियों की सेहत को लेकर समाज में व्याप्त लापरवाही है. राज्य में 32 स्पेशल न्यूबोर्न केयर यूनिट होने के बावजूद इनमें बच्चियों भरती की दर बहुत कम है. यहां भरती होने वाले नवजात शिशुओं में बच्चियों का प्रतिशत आज भी महज 36 फीसदी है.
दिसंबर, 2016 में जारी एसआरएस बुलेटिन के आंकड़ों ने राज्य के स्वास्थ्य विभाग के माथे पर बल ला दिया है. इन आंकड़ों के मुताबिक नवजात बालकों की मृत्यु दर में तो कमी आ रही है, जबकि बालिकाओं की मृत्यु दर 2013 से लगातार बढ़ रही है. स्थिति यह है कि दोनों की मृत्यु दर का फासला बढ़ कर 14 पहुंच गया है, जो देश में सर्वाधिक है. इसके बाद दूसरे स्थान पर उत्तराखंड और राजस्थान है, जहां यह फासला सिर्फ 7 है. पड़ोसी राज्य झारखंड तीसरे स्थान पर है, जहां यह आंकड़ा महज 5 है. ये आंकड़े बच्चियों के सेहत को लेकर व्याप्त लापरवाही भरे रवैये की तरफ साफ-साफ संकेत कर रहे हैं.
इन आंकड़ों का एक और चिंताजनक पहलू यह है कि शहरों में यह वृद्धिदर अधिक तेज है. यहां प्रति हजार 52 बालिका शिशुओं की मौत हो जा रही है. शहरों में नवजात बालक और बालिकाओं की मृत्यु दर के बीच का फासला भी 15 है. विशेषज्ञ इस अनियंत्रित स्थिति की वजह स्पेशल न्यूबोर्न केयर यूनिट में लड़कियों के कम पहुंचने को मान रहे हैं. यूनिसेफ के हेल्थ ऑफिसर डॉ सैयद हुबे अली के मुताबिक राज्य में अब तक 32 ऐसे एसएनसीयू खोले जा चुके हैं, मगर इनमें बालिका शिशुओं के एडमिशन की दर बालकों के मुकाबले काफी कम है. साल 2016 में इन केंद्र में भरती नवजात शिशुओं में से लड़कियां सिर्फ 36 फीसदी थीं, शेष 64 फीसदी बालक थे.
जहां बालिकाओं के बीच मृत्यु दर तेजी से बढ़ रही है, इन सेंटर्स में बच्चियों का कम पहुंचना काफी चिंताजनक है. वे कहते हैं, दिक्कत यह है कि मुफ्त में इलाज की सुविधा होने के बावजूद ये केंद्र खाली रह जाते हैं. पिछले साल इन केंद्रों की 38 फीसदी सीटें खाली रह गयीं. अररिया, लखीसराय, सारन और सीतामढ़ी जेसे जिलों में तो 96 से 98 फीसदी सीटें खाली रह जा रही हैं.
उन्होंने कहा कि बक्सर, सुपौल, मधेपुरा, रोहतास, गया और सीवान जिलों में स्थित एसएनसीयू सेंटरों की 20 फीसदी सीटें ही किसी तरह भर पा रही हैं. जबकि पूर्णिया का एसएनसीयू ओवरक्राउडेड रहता है. यहां पिछले साल सीटों के मुकाबले 60 फीसदी अधिक बच्चे एडमिट हुए.
छह सालों में मृत्यु दर प्रति हजार शिशु में
साल बालक बालिका
2010 46 50
2011 44 45
2012 42 45
2013 40 43
2014 39 46
2015 36 50
(संदर्भ- एसआरएस, दिसंबर, 2016 बुलेटिन)
राज्यों में मृत्यु दर व उनके बीच का अंतर प्रति हजार शिशु
राज्य बालक बालिका अंतर
असम 47 47 00
बिहार 36 50 14
मध्य प्रदेश 51 48 -03
झारखंड 30 35 05
केरल 10 13 03
राजस्थान 40 47 07
तमिलनाडु 19 19 00
उत्तराखंड 31 38 07
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