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सिर्फ औद्योगिक क्षेत्र तय करने से निवेश नहीं आयेगा : खेतान

कार्यशाला. ऐसी नीति बने, जिससे निवेश लगातार बढ़े, रुके नहीं उद्योगपतियों ने कहा-सुविधाएं मिलनी चाहिए, जो उद्योग हैं उन्हें भी बचाने की पटना : राज्य में व्यापारियों को लुभाने को लेकर प्रयास करने होंगे. ऐसा नहीं है कि नीति नहीं है. लेकिन, नीति होने के बावजूद भी व्यापारी नहीं आ रहे हैं. इस पर सरकार […]

कार्यशाला. ऐसी नीति बने, जिससे निवेश लगातार बढ़े, रुके नहीं
उद्योगपतियों ने कहा-सुविधाएं मिलनी चाहिए, जो उद्योग हैं उन्हें भी बचाने की
पटना : राज्य में व्यापारियों को लुभाने को लेकर प्रयास करने होंगे. ऐसा नहीं है कि नीति नहीं है. लेकिन, नीति होने के बावजूद भी व्यापारी नहीं आ रहे हैं. इस पर सरकार को विचार करनी चाहिए.
ऐसी नीति बनानी चाहिए, जिससे निवेश लगातार बढ़े, रुके नहीं. ये बातें बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष रामलाल खेतान ने शुक्रवार को कहीं. वह आद्री की ओर से आयोजित कार्यशाला में बोल रहे थे. कार्यशाला में राज्य में औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के प्रोत्साहन करने की नीतियों पर चर्चा की गयी. चर्चा के दौरान पूर्व फिनांस कमिश्नर रामेश्वर सिंह ने कहा कि राजधानी का दायरा बढ़ाना चाहिए. पटना के आसपास के इलाकों के विकास की विस्तृत योजना बननी चाहिए. साथ ही शहर और विकास के लिए तय क्षेत्रों में सड़क, ड्रेनेज, ट्रैफिक व्यवस्था को भी दुरुस्त करने की जरूरत हैं. इन सभी के बगैर औद्योगिकीकरण कारगर नहीं हो सकती.
सिर्फ नीति बनाने से कुछ नहीं होगा : बीआइए के पूर्व अध्यक्ष केपीएस केसरी ने कहा कि शहरीकरण की राह औद्योगिकीकरण से ही होकर गुजरती है. राज्य की दो औद्योगिक नीति है, उसे बेहतर तरीके से लागू की जानी चाहिए. राज्य में औद्योगिकीकरण सिर्फ फाइलों तक सिमटी है.
जमीनी स्तर पर इस पर काम करने की जरूरत है. सिर्फ नीति बनाने से कुछ नहीं होगा, कोई भी निवेश परिणाम चाहता है. अवसर पर चंद्र प्रकाश सिंह ने कहा कि देश की कुल आबादी का 8 फीसदी हिस्सा बिहार में रहता है. लेकिन, मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की बात करें, तो हमारा योगदान महज 0.8 फीसदी ही है. इस पर गंभीरता से विचार करना होगा. हमारे वर्क फोर्स दूसरे राज्य की आमदनी बढ़ा रहे हैं. सरकार नये कलस्टर के विकास की बात करती है. लेकिन, जो पहले से शुरू हैं उसकी क्या स्थिति है, इस पर कभी विचार नहीं करती. सिंगल विंडो की मांग पिछले कई सालों से हो रही है.
लेकिन, यह आज तक संभवन नहीं हो पायी है. हमारे राज्य में एक भी उद्योग नहीं है, जो 5 से 6 हजार लोगों को रोजगार दे सकें. उद्योग लगे न लगे, सरकार को क्या, जनता वोट करेगी ही, एमएलए-एमपी बनेंगे ही. आज कामगार पलायन के मामले में यूपी के बाद बिहार का नंबर आता है. आजादी के बाद बिहार में कुल 29 चीनी मिल थीं. आज सिर्फ चार किसी तरह जिंदा हैं, जो उद्योग हैं, उसे बचाने के लिए क्या किया जा रहा है, इस पर भी विचार करना होगा.

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