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दो कुलों का उद्धार करती हैं बेटियां
रामकथा का सातवां िदन फुलवारीशरीफ : रामकथा के सातवें दिन त्रिपुष्कर महाराज ने कहा कि बेटियां दो कुलों का उद्धार करती हैं. अपने मायके और ससुराल दोनों परिवारों के मान-सम्मान की जिम्मेवारी बेटियों पर होती हैं. आज के वर्तमान माहौल में समाज में भ्रूण हत्या बड़ी समस्या है.महाराज ने कहा रामकथा से हमारा मकसद कन्या […]
रामकथा का सातवां िदन
फुलवारीशरीफ : रामकथा के सातवें दिन त्रिपुष्कर महाराज ने कहा कि बेटियां दो कुलों का उद्धार करती हैं. अपने मायके और ससुराल दोनों परिवारों के मान-सम्मान की जिम्मेवारी बेटियों पर होती हैं. आज के वर्तमान माहौल में समाज में भ्रूण हत्या बड़ी समस्या है.महाराज ने कहा रामकथा से हमारा मकसद कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के साथ ही इस बुराई के प्रति समाज में जागृति लाना भी है.
महाराज ने कहा कि राम जब वनवास जाने लगे, तो सीता भी साथ जाने लगीं. माता कौशल्या ने जब सीता को रोका, तो माता सीता ने कहा कि उसे पति धर्म का पालन भी करना है. भगवान राम से विवाह के बाद जब विदाई होने लगी, तो सीता की मां ने कहा था कि पति धर्म के साथ ही ससुराल के सभी लोगों का आदर और मान रखना उसका धर्म है. कथावाचक त्रिपुष्कर महाराज ने कहा कि आज अपनी बेटियों को ऐसे संस्कार दें कि ससुराल में सब लोगों का मान और सम्मान करें. इससे बेटी और उसके मायके के लोगों का मान-सम्मान बढ़ेगा.
उन्होंने कहा कि वन गमन के दौरान निषाद और केवट से भगवान राम की मुलाकत हुई. केवट ने गंगा पार कराया तब गंगा मईया ने प्रभु राम से वर मांगने को कहा . राम जी ने गंगा मईया से कहा कि आप को मेरे ही वंश के राजा भागीरथ ने लाया था, इसलिए आप भी मेरी बेटी हुईं और बेटी से मांगा नहीं जाता. कथा समाप्ति के बाद वेंकटेश रमण की मौजूदगी में प्रसाद वितरण किया गया.
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