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न कॉटन, न दवा, ट्रेनों में इलाज भगवान भरोसे

आलोक द्विवेदी पटना : राजेंद्र नगर निवासी धनेश कुमार घायल अवस्था में फरक्का एक्सप्रेस से लखनऊ वाया पटना आ रहे थे. लखनऊ से चलने के दौरान अचानक उनके पैरों में दर्द शुरू होने के साथ ही ब्लड निकलने लगा. उन्होंने टिकट चेकिंग कर रहे टीटीइ से कॉटन व दवा मांगी. टीटीइ ने ट्रेन में इस […]

आलोक द्विवेदी

पटना : राजेंद्र नगर निवासी धनेश कुमार घायल अवस्था में फरक्का एक्सप्रेस से लखनऊ वाया पटना आ रहे थे. लखनऊ से चलने के दौरान अचानक उनके पैरों में दर्द शुरू होने के साथ ही ब्लड निकलने लगा. उन्होंने टिकट चेकिंग कर रहे टीटीइ से कॉटन व दवा मांगी. टीटीइ ने ट्रेन में इस तरह के इंतजाम करने में अपनी असमर्थता दिखायी और अगले स्टेशन पर कॉटन लेने की बात की.

धनेश के परिजन गार्ड व ड्राइवर से संपर्क कर कॉटन व दवा लेने की कोशिश की. लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. धनेश लखनऊ से सोवाल तक ब्लड निकलने वाले स्थान को रूमाल के द्वारा हाथ से दबाये रखा.

133 किमी के बाद फैजाबाद स्टेशन पर जब गाड़ी पांच मिनट के लिए रुकी, तो स्टेशन पर स्थित दुकान से कॉटन व दवा की खरीदारी की. यह तो एक उदाहरण मात्र है, ट्रेनों में प्राथमिक उपचार की कोई व्यवस्था नहीं रहती है. यात्री परेशान हैं तो अपनी बला से.

संवेदनहीन बने रहते हैं रेलकर्मी :

सूत्रों के अनुसार, ट्रेनों में यात्रियों को आकस्मिक उपलब्ध कराने के लिए गार्ड व ड्राइवर को प्राथमिक चिकित्सा की जानकारी रखना अनिवार्य है, लेकिन चिकित्सकीय प्रशिक्षण के लिए गार्ड, ड्राइवर रुचि ही नहीं लेते हैं. इसकी वजह से जरूरत पड़ने पर उन्हें पट्टी बांधने तक नहीं आता है. श्रमजीवी एक्सप्रेस से गाजियाबाद से पटना आनेवाले सतेंद्र सिंह का कहना है कि दर्द व चोट लगने पर अक्सर अगले स्टेशन तक दवा के लिए इंतजार करना पड़ता है.

इस दौरान ड्राइवर व गार्ड यह कर मामले को टाल देते हैं कि अगले स्टेशन पर दवा ले लेना. कितना दर्द है या चोट के दौरान ब्लड निकल रहा है, इन सब चीजों से उनको कोई मतलब नहीं रहता है.

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