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‘हम तो ऐसे ही हैं’

पटना: प्रेमचंद रंगशाला में चल रहे पांच दिवसीय ‘रंग-ए-जमात’ के दूसरे दिन गुरुवार को दो नाटकों का मंचन हुआ. इनमें डिवाइन सोशल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन के ‘हम तो ऐसे ही हैं’ व सफरमैना के ‘खीरवाला राज्य’ का मंचन हुआ. इनमें कलाकार के दर्द व कमजोर शासन व्यवस्था को बखूबी पेश किया गया. एक रंगकर्मी, जो अपनी […]

पटना: प्रेमचंद रंगशाला में चल रहे पांच दिवसीय ‘रंग-ए-जमात’ के दूसरे दिन गुरुवार को दो नाटकों का मंचन हुआ. इनमें डिवाइन सोशल डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन के ‘हम तो ऐसे ही हैं’ व सफरमैना के ‘खीरवाला राज्य’ का मंचन हुआ. इनमें कलाकार के दर्द व कमजोर शासन व्यवस्था को बखूबी पेश किया गया. एक रंगकर्मी, जो अपनी कला के प्रति समर्पित व ईमानदार है, के जेहन में सैकड़ों नाटकों की योजना थी. कल्पना में हजारों संवादों के गूंज उसे अपने काम के प्रति प्रेरित करते, लेकिन समाज की अवहेलना के साथ ही उसे अपने अभिभावकों की भी बातें सुनने पड़ती हैं.

उसके मन में खुदकुशी करने का विचार आता है. लेकिन, तभी उसे अपनी प्रतिभा को और निखारने का ज्ञान भी होता है. वह खुदकुशी न कर अपनी प्रतिभा को निखारने में जुट जाता है. इसके निर्देशक डॉ शैलेंद्र व लेखक मनीष जोशी बिस्मिल्ल हैं.

खीरवाला राज्य : यह एक राजा की कहानी है. अजीर्ण रोगी राजा राज्य की कम अपने खाने के बारे में ज्यादा सोचता है. एक बार राजा ने ब्राह्नाण से शर्त लगायी कि अगर वह पूरा एक कड़ाहा खीर खा जायेगा, तो उसे पूरा राज्य सौंप दिया जायेगा. ब्राह्नाण शर्त जीत जाता है और वह राजा बन जाता है. नया राजा खीर प्रेमी होने के कारण राज्य में खीर से संबंधित कई कानून बनाता है. इससे वह खीरवाला राज्य कहलाने लगता है. इसके लेखक विजय दान देथा व निर्देशक वसुधा कुमारी व समीर कुमार हैं.

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