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214 गांवों में बिजली अब भी दूर की कौड़ी

दीपक कुमार मिश्रा पटना : राज्य के 214 ऑफग्रिड गांवों में बिजली अब भी दूर की कौड़ी है. इन गांवों को सोलर सिस्टम से रोशन किया जायेगा. ऑफग्रिड गांव उन्हें माना गया है जहां ग्रिड से पोल-तार के जरिये बिजली नहीं पहुंचायी जा सकती है. इसमें से अधिकांश गांव जंगल के भीतर अवस्थित हैं या […]

दीपक कुमार मिश्रा
पटना : राज्य के 214 ऑफग्रिड गांवों में बिजली अब भी दूर की कौड़ी है. इन गांवों को सोलर सिस्टम से रोशन किया जायेगा. ऑफग्रिड गांव उन्हें माना गया है जहां ग्रिड से पोल-तार के जरिये बिजली नहीं पहुंचायी जा सकती है. इसमें से अधिकांश गांव जंगल के भीतर अवस्थित हैं या फिर कोसी के पेट में हैं.
नॉर्थ बिहार बिजली वितरण कंपनी के अधीन 62 और दक्षिण बिहार बिजली वितरण कंपनी के अधीन 152 ऑफग्रिड गांव हैं. ऑफग्रिड गांव में दिसंबर तक बिजली पहुंचाने की योजना है लेकिन अबतक इस दिशा में कुछ खास नहीं हुआ है. बिजली कंपनी के अधिकारी इसपर कुछ भी बोलने से कतराते हैं. राज्य में बिजली पर मिशन मोड पर काम चल रहा है. अगले दो साल में राज्य के सभी घरों में बिजली पहुंचाने का टास्क मुख्यमंत्री ने ऊर्जा विभाग और बिजली कंपनी को दे रखा है. सरकार के सात निश्चयों में शामिल हर घर बिजली लगातार योजना में 50 लाख नये घरों में बिजली कनेक्शन देने का टारगेट है.
छपरा, पटना, सहरसा व खगड़िया के करीब 100 गांवों में टावर के जरिये बिजली पहुंचायी जा रही है. इस दिशा में काम भी शुरू हो गया है. राज्य के 200 से अधिक ऐसे गांव हैं जहां ऑफग्रिड बिजली पहुंचायी जायेगी. ये गांव एेसे हैं जहां ग्रिड से बिजली नहीं पहुंचायी जा सकती. इसके लिए सोलर सिस्टम का सहारा लिया जायेगा. बताया जा रहा है कि इस दिशा में अबतक कुछ खास नहीं हुआ है.
बिजली कंपनी अबतक यह भी तय नहीं कर पायी है कि किन गांवों को स्टैंड एलोन विधि से रोशन किया जायेगा और किन गांवों में सोलर स्टेशन के जरिये. एक स्टैंड एलोन पर 30 से 40 हजार का खर्च आता है. इसमें उपभोक्ता को सोलर प्लेट और बैट्री स्टैंड के साथ मिलेगी. सोलर स्टेशन पर उसकी क्षमता के अनुसार खर्च आता है. सोलर स्टेशन में एक ही जगह सोलर प्लेट लगेगा. दिसंबर तक ही इन गांवों को रोशन करने की योजना थी. नॉर्थ बिहार बिजली वितरण कंपनी वाले जिलों में ऑफग्रिड गांव हैं पश्चिम चंपारण में 25, सुपौल में 33, गोपालगंज में 2, खगड़िया में एक और समस्तीपुर में भी एक है.
दक्षिण बिहार में कैमूर- 120
रोहतास- 11
भागलपुर- 8
नवादा- 8
मुंगेर- 3
जमुई- 1
बांका- 1
नोटबंदी बड़ा कदम, तैयारी भी बड़ी होनी चाहिए थी
डॉ डीएम दिवाकर
आर्थिक भ्रष्टाचार और कालाधन क्या है? सामान्य अर्थों में संविधानत: लोकतांत्रिक सरकार द्वारा निर्धारित संपत्ति व करारोपण का नियमानुसार अनुपालन नहीं करनेवाला भ्रष्टाचारी और उससे अर्जित धन कालाधन कहलाता है. आर्थिक भ्रष्टाचार व कालेधन पर रोक लगाने के लिए संविधान सम्मत सरकारी तंत्र स्थापित किये गये हैं. पर भ्रष्टाचार और कालेधन के बढ़ते आकार से प्रमाणित होता है कि हमारी सरकार और सरकारी तंत्र कितना गंभीर है.
ऐसा लगता है कि नोटबंदी की योजना बिना पर्याप्त विचार व पूर्व तैयारी के एकाएक आठ नवंबर की रात से लागू कर दी गयी. नोटबंदी के आदेश के अनुपालन की तैयारी के लिये अगले दिन नौ नवंबर को बैंक और दो दिनों के लिए स्वचालित मुद्रा संयंत्र (एटीएम) को बंद रखा गया. शुरू के दो दिनों तक छुट्टी के दिन भी बैंक खोले गये. राष्ट्रीय राजमार्ग पर बिना पथकर के 24 नवबंर तक वाहनों को चलाने का आदेश दिया गया. इन कदमों को काले धन पर रोक का अब तक का सबसे बड़ा कदम कहा जा रहा है.
हमें जानना चाहिए कि सकल घरेलू उत्पाद का 12 प्रतिशत रुपये का चलन है. कुल मुद्रा में लगभग 86 फीसदी नोट 500 और 1000 के रहे हैं. केवल 14 फीसदी ही 100 या छोटे नोट चलन में हैं.
भारत में लगभग 120,000 बैंक शाखाएं हैं, 54 फीसदी परिवार के पास खाता है, 46 फीसदी परिवार बिना खाता के हैं और 27 फीसदी आबादी निरक्षर है. भारतीय अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा आज भी बैंक खाते की पहुंच से बाहर है. लगभग 70 फीसदी जीविका और कारोबार असंगठित क्षेत्र में होता है. लगभग 90 फीसदी कामगार महिलाएं असंगठित क्षेत्र में काम करती हैं और 47 फीसदी महिलाएं निरक्षर हैं. ऐसे में वित्तीय समावेशन एक बड़ी चुनौती रही है. जन साधारण के जीवन पर इस नोटबंदी का क्या असर है?
देश के बैंकों के अधिकांश एटीएम दस दिन बाद आज भी बंद पड़े हैं. प्रधानमंत्री जी के अनुसार इस कदम से गरीब और ईमानदार चैन की नींद सो रहे हैं और अमीरों को नींद की गोली खाने के बाद भी नींद नहीं आ रही है. जन साधारण की लंबी कतारें सभी बैंक शाखाओं में देखी जा रही है. जिनके पास पांच सौ के एक भी नोट हैं, बूढ़े, बीमार, गरीब, रिक्शा, ठेला, दिहाड़ी मजदूर, महिलाएं सभी बैंक में कतार में नोट बदलने के लिए खड़े हैं.
क्या ये लोग धनी और बेईमान हैं? इंतजार करते हुए देश भर में 10 दिन में 55 लोगों की मौत हो चुकी है. दूसरी तरफ काला धंधा करने वाले बट्टे पर 500 और 1000 के पुराने नोटों के बदले 400 या 300 और 800 या 700 या 600 रुपये का मनमाना नोट बदल कर मालामाल हो रहे हैं. मजदूरों को नोट बदलने के कतार में खड़ा करा कर बैंक से नये और छोटे नोट धड़ल्ले से निकलवा रहे हैं. नोट बदलने की रकम घटा कर 2000 कर दी गयी. अपना ही पैसा बैंक से निकालने में जितना प्रतिबंध लगाया जा रहा है, यह समझ से परे है कि लोकतंत्र में निजी संपत्ति का संवैधानिक अधिकार बिना किसी कानून के कैसे खत्म किया जा सकता है? पिछले पचास सालों में कोई बड़ा देश विमुद्रीकरण के राह पर नहीं चला है. सिर्फ दो छोटी आबादी के देश लिबिया और जिंबाब्वे में ही विमुद्रीकरण किया है.
सवाल यह है कि केंद्र सरकार के इस कदम से कालाधन पर क्या असर पड़ेगा? आज 500 और 1000 के नोट का चलन लगभग 86 फीसदी है. इसे चलन से हटाना या पुराने को नये में बदलने में एक बड़ी तैयारी की जरूरत थी. जनवरी 2014 में रिजर्व बैंक ने 2005 तक के 500 रुपये के पुराने नोटों को बदला था, कोई हाय तौबा नहीं मची. बड़े नोट भ्रटाचार और कालाधन को बढ़ाने में जरूर सहायक है.
फिर अगर बड़े नोट से भ्रष्टाचार और कालाधन बढ़ता है, तो दो हजार के बड़े मुद्रा का चलन से और भी बढ़ेगा. फिर दो हजार का नोट क्यों शुरू किया गया है? नोटबंदी को लेकर उठाये जा रहे कदमों से लगता है कि इस निर्णय के संदर्भ में विशेषज्ञों की राय नहीं ली गयी. हमें समझना होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा आज भी मुद्रा बाजार का हिस्सा नहीं हो पाया है. इसलिए शहरी संगठित क्षेत्र में कैशलेस की योजना चल सकती है, किंतु असंगठित क्षेत्र में संभव नहीं है.
(लेखक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर व एएन सिन्हा समाज अध्ययन संस्थान के पूर्वनिदेशक हैं. )

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