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सफलता शराबबंदी की कहानी औरंगाबाद से : शराब छूटी, तो किचन को हुआ रसोई गैस का दर्शन

सर, गलतियों से भी सीख तो मिलती ही है न. आज जब शराब दूर हुई है, तब पता चल रहा है कि नशे की लत कितनी बुरी होती है. पहले रोज करीब 300 की कमाई थी, पर घर आते-आते जेब में शायद ही कभी-कभार 100 रुपये बचते थे. राशन का खर्च, बच्चों की पढ़ाई और […]

सर, गलतियों से भी सीख तो मिलती ही है न. आज जब शराब दूर हुई है, तब पता चल रहा है कि नशे की लत कितनी बुरी होती है. पहले रोज करीब 300 की कमाई थी, पर घर आते-आते जेब में शायद ही कभी-कभार 100 रुपये बचते थे. राशन का खर्च, बच्चों की पढ़ाई और परिवार की अन्य जरूरतें तो पूरी होती ही नहीं थीं.’
ये बातें हैं 34 वर्षीय सूरज कुमार की, जो औरंगाबाद नगर पर्षद के लिए बतौर स्वीपर काम करते हैं. ऐसे सैकड़ों-हजारों सूरज हैं, जिनकी जिंदगी शराब की सोहबत में निरंतर तेजी से अस्त हो रही थी, पर शराबबंदी ने अचानक इनके भविष्य का रुख मोड़ दिया है. अब फिर से जीवन में चकाचौंध की गुंजाइश बढ़ती दिख रही है. औरंगाबाद के इस सूरज कुमार के जीवन से ही हम एक उदाहरण ले सकते हैं. उनके परिजन बताते हैं कि जब से सूरज और शराब एक-दूसरे से अलग हुए हैं, उनके किचन में संपन्नता झलकने लगी है. पहले जहां लकड़ी पर धुएं के बीच जैसे-तैसे रोटियां सेकी जाती थीं, अब रसोई गैस भी उपलब्ध होने लगी है. सूरज स्वयं बताते हैं कि पहले काम से लौट कर शराब के नशे में घर पहुंचते थे तो घर के चूल्हे से धुंआ उठ रहा होता था. बच्चे सड़क पर भटकते दिखते थे. कई बार भूखे भी रहते थे. कभी इस घर से तो कभी उस घर से राशन उधार मांगने का सिलसिला जारी रहताथा. काम के लिए पत्नी एकाध रुपये भी मांगते, तो बदले में उन्हें गालियां ही मिलती थीं. लेकिन शराबबंदी के बाद अब बदलाव आ गया है.
कर बड़ा अच्छा काम किया है.
वह कहते हैं, ‘शुरू-शुरू में तो सरकार पर बड़ा गुस्सा आया. तब सोच रहे थे कि हम गरीब की थकान तो शराब से ही दूर हो सकती है, जिसे सरकार छीन रही है. लेकिन आज समझ में आ रहा है कि हम कितने गलत थे.’
बदली है मुन्ना की भी दुनिया
सूरज कुमार की तरह ही मुन्ना भी शराब की गिरफ्त में था. आपबीती सुनाते हुए मुन्ना कहते हैं, ‘शराब के कारण मैं अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पा रहा था. बीएल इंडो स्कूल में स्वीपर का काम करता हूं. 7000 रुपये की तनख्वाह मिलती है. शराबबंदी के पहले जब ये रुपये मुझे मिलते थे, तो सबसे पहले शराब की भट्ठी का बकाया ही चुकाता था, ताकि आगे शराब मिलती रहे. इसी शराब में बैंक में पहले से बचा कर रखे कुछ रुपये भी बरबाद हो गये.
काम से वापस घर आते ही पत्नी 100 बात सुनाती थी. बच्चे डर से अपनी पढ़ाई के लिए जरूरत की चीजें भी नहीं मांगते थे. दिन-ब-दिन घर की स्थिति शराब के कारण बिगड़ती जा रही थी. लेकिन अब यह बीते दिनों की बात है. वैसे तो आज भी लोग मुझे शराबी ही कह रहे हैं, पर हकीकत यह है कि शराबबंदी के बाद मेरी दुनिया बदल गयी है. मेरे परिवार में पत्नी के अलावे छह बच्चे हैं. चार बेटियां और दो बेटे. इनकी पढ़ाई फिर से पटरी पर आ गयी है. घर की हालत भी पहले से सुधर गयी है.

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