पटना: करीब तीन साल तक राजनीतिक वनवास के बाद जदयू सांसद राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह की वापसी से जदयू के भीतर सियासी खलबली मची है. पार्टी का एक खेमा इसे मिशन 2014 की तैयारी मानता है, तो दूसरा खेमा ललन सिंह द्वारा तीन साल पहले उठाये सवालों का जवाब मांग रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, ललन सिंह की वापसी से नि:संदेह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ताकत मिलेगी. सोशल इंजीनियरिंग का फॉर्मूला भी मजबूत होगा.
पर,ललन ने कुशवाहा राजनीति, भूमि सुधार कानून और पार्टी से जुड़े जिन मसलों को लेकर मुख्यमंत्री को घेरने की कोशिश की थी, क्या उसके मायने खत्म हो गये, इस पर विवेचना जारी है. ललन सिंह के विरोधी नेताओं का मानना है कि जनता ने ललन सिंह के उठाये मुद्दों को खारिज कर दिया, तो उनके सामने जदयू में लौटने के सिवाय कोई दूसरा विकल्प नहीं था. 2010 के विधानसभा चुनाव के दौरान वह खुल कर जदयू और मुख्यमंत्री के विरोध में खड़े थे. उन्होंने कांग्रेस के मंच से सीधे मुख्यमंत्री पर निशाना साधा था. भूमि सुधार कानूनों को लेकर ललन समर्थक गुस्से में थे.
उनकी नाराजगी पार्टी के भीतर लोकतंत्र के नहीं होंने को लेकर थी. पर, अब वह कह रहे हैं-पार्टी और मुख्यमंत्री को लेकर उनका जो गिला-शिकवा था, वह सब दूर हो गया है. मुंगेर की सभा में उन्होंने यह सब खुल कर स्वीकार भी किया. मुख्यमंत्री की प्रशंसा में कसीदे भी गढ़े. जानकारों की नजर में लोकसभा चुनाव मेंअब एक साल से भी कम समय रह गया है. ललन सिंह मुंगेर से पार्टी के सांसद हैं. 2009 के चुनाव में उनका राजद के रामबदन राय से सीधा मुकाबला था. 20 उम्मीदवारों में 18 के जमानत जब्त हो गये थे.
हालांकि, वोट के मामले में ललन सिंह ने रामबदन राय को करीब एक लाख 89 हजार वोटों से पराजित किया था. लेकिन, इस बार जदयू से अलग रह कर उनके लिए उनके लिए संसद पहुंचने का रास्ता कठिन लग रहा था. कांग्रेस में उनकी दाल गलते नहीं दिख रही थी. राजद उनका विकल्प नहीं था. ऐसे में ललन समर्थक स्वीकारते हैं कि उनके लिए जदयू में लौटने से बेहतर विकल्प नहीं था.