पटना: लोक सेवा का अधिकार अधिनियम के तहत आरटीपीएस काउंटर से आवेदकों को सीधे सेवा उपलब्ध करानी है. लेकिन, पटना सदर प्रखंड में बने आरटीपीएस काउंटर का सच कुछ और ही है. आवेदक को काउंटर से प्रमाणपत्र मिलने के बाद भी सीओ कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ता है. कतार में खड़े होकर सीओ-कर्मचारी से हस्ताक्षर कराना पड़ता है. रजिस्टर पर नाम चढ़ाने के बाद ही प्रमाणपत्र को मान्यता मिलती है.
बोर्ड पर नहीं मिलती जानकारी
समय पर प्रमाणपत्र नहीं मिलने पर अपील में जाने का प्रावधान है. लेकिन, जानकारी और जागरूकता के अभाव में आवेदक अपील नहीं कर पाते. अधिनियम में स्पष्ट लिखा है कि आरटीपीएस काउंटर के बाहर प्रदान की जानेवाली सेवाएं और उनका निर्धारित समय नोटिस बोर्ड पर अंकित किया जाना है. साथ ही बोर्ड पर अपीलीय पदाधिकारी का नाम व नंबर भी दिया जाना है.
लेकिन, सदर प्रखंड कार्यालय के साथ ही अन्य प्रखंड कार्यालयों में भी इसका पालन नहीं किया जा रहा. आवेदकों को तय समय सीमा पर प्रमाणपत्र नहीं मिलने का कारण भी नहीं बताया जाता. प्रावधान के मुताबिक समय पर सेवा नहीं उपलब्ध कराने की स्थिति में आवेदक को उसका कारण बताना है. लेकिन, आवेदक को ऐसे ही टरका दिया जाता है. उनको बार-बार दौड़ाया जाता है. ऐसे में कई आवेदक आजिज होकर दलाल की शरण लेते हैं.
काउंटर कर्मी भी रहते हैं ताक में
आरटीपीएस काउंटर पर अनुबंध पर कार्यरत कर्मियों को लगाया गया है. इनको महज छह हजार रुपये मासिक वेतन मिलती है. ऐसे में इन कर्मियों द्वारा आवेदकों से उगाही का प्रयास किया जाता है. पैसे के लालच में उनकी बिचौलियों के साथ सांठगांठ भी हो जाती है.