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काशी से सीखें, कैसे साफ रहे गंगा

सबक. दशहरा में होता है गंगा में 500 से अधिक प्रतिमाओं का विसर्जन प्रदूषण बोर्ड जारी करता है गाइड लाइन, न प्रशासन ध्यान देता है, न निगम करता है कार्रवाई अनिकेत त्रिवेदी पटना : आस्था का पर्व दशहरा नजदीक है. शहर में पांच सौ से अधिक मूर्तियां रखी जायेंगी. और फिर अंत में सब का […]

सबक. दशहरा में होता है गंगा में 500 से अधिक प्रतिमाओं का विसर्जन
प्रदूषण बोर्ड जारी करता है गाइड लाइन, न प्रशासन ध्यान देता है, न निगम करता है कार्रवाई
अनिकेत त्रिवेदी
पटना : आस्था का पर्व दशहरा नजदीक है. शहर में पांच सौ से अधिक मूर्तियां रखी जायेंगी. और फिर अंत में सब का विसर्जन गंगा नदी में ही कर जायेगा. भले ही हमारी आस्था ऐसा करने की इजाजत देता हो, लेकिन मूर्ति के साथ प्लास्टर ऑफ पेरिस, हानिकारक कैमिकल से लेकर अन्य अघुलनशील पदार्थ हमारी गंगा को मैला कर देते हैं. विसर्जन के बाद इतना अधिक प्रदूषण होता है कि पानी के स्रोत से लेकर इसमें रहने वाले जल- जंतुओं को भी काफी नुकसान होता है.
बिहार प्रदूषण कंट्रोल पर्षद हर वर्ष इससे बचाव के लिए गाइड लाइन जारी करता है, लेकिन इस पर जिला प्रशासन न कोई ध्यान देता है और न नगर निगम इससे बचाव की कार्रवाई करता है. जबकि हमारे बगल के शहर काशी ने बीते वर्ष बचाव की शुरुआत दी थी. ऐसे में अगर इस बार अगर हम चेत जाएं और काशी से सीख ले लें, तो इस बार शायद हमारी गंगा मैली होने से बच जाये.
बीते वर्ष प्रदूषण बोर्ड नगर निगम के गाइड लाइन जारी किया था. इसमें गंगा में सीधे मूर्ति के विसर्जन पर रोक लगाने की बात कही गयी थी. सुझाव था कि गंगा के पास ही अस्थायी तालाब बनाया जाये. फिर इसमें मूर्ति का विसर्जन हो. जैसे ही मूर्ति पानी में घूले इसके अघुलनशील पदार्थ निकाल लिया जाये. हर तालाब पर निगम कर्मी मौजूद रहे. इससे अलावा मूर्ति निर्माण में कैमिकल और प्लास्टर ऑफ पेरिस के प्रयोग पर रोक लगे. प्रशासन मूर्तियों की संख्या को कम करने या निर्धारित करने का निर्णय ले.
क्या होता है नुकसान
मूर्ति के साथ हानिकारक कैमिकल लगे होते है. इसमें लेड पाया जाता है. लेड से पानी में पाये जाने वाले जीव- जंतु मर जाते है. इसके अलावा मूर्ति में प्लास्टर आॅफ पेरिस होता है.
जो जल श्रोत को नष्ट कर देता है. पानी में मिलने से पानी पीने योग्य नहीं रह जाता. वहीं बक्सर से पटना तक गंगा पहले से काफी मैली है. इसमें साबुन और गंदगी की मात्रा मानक से अधिक है औरआॅक्सीजन की मात्रा कम. गंगा में साबुन और झाग की मात्रा (पीएच मान) 6.5 से 8 होना, जबकि पूरे क्षेत्र में इसका मान नौ से अधिक है.
वाराणसी में कोर्ट के आदेश के बाद शुरू हुई थी पहल
बीते वर्ष वाराणसी नगर निगम ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के बाद के बाद गंगा में सीधे मूर्ति प्रवाह करने पर रोक लगा दिया था, लेकिन स्थानीय प्रशासन ने लोगों की आस्था का खयाल रखा गया.
वाराणसी नगर निगम ने विश्व सुंदरी पुल और खिड़किया घाट के पास अस्थाई तालाब बनाया गया था. इसमें गंगा के पानी हो भरा गया. एक तालाब में सौ से अधिक मूर्तियां प्रवाहित की गयी. तालाब में एक मूर्ति को घूलने में लगभग आधे घंटे का समय लगा रहा था. जैसे ही मूर्ति के पानी में घूलती निगम की टीम बचे अवशेष को निकाल लेती. और तालाब साफ रहता. इसके लिये वहां भी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने गाइड लाइन जारी किया था.
हानिकारक कैमिकलों के प्रवाह पर लगे रोक
जल-प्रदूषण से गंगा को बचाने के लिए इस तरह के पहल करने की जरूरत है. बिहार प्रदूषण नियंत्रण पर्षद मौके पर लगातार दिशा निर्देशन जारी करता रहता है. दशहरा में बीते वर्ष क्या निर्देश जारी किया गया था. अभी इसकी जानकारी नहीं है, लेकिन प्लास्टर ऑफ पेरिस और प्लास्टिक के उपयोग के साथ हानिकारक कैमिकलों के प्रयोग को रोकने के लिए सीधे गंगा में मूर्ति प्रवाहित करने पर रोक लगानी चाहिए. जानकारी लेकर इस वर्ष नगर निगम व प्रशासन को गाइड लाइन जारी होंगे.
एस चंद्रशेखर, सचिव, बिहार प्रदूषण नियंत्रण पर्षद

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