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दीजिए राय, तो बनेंगे स्मार्ट

पटना : शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाने के लिए निगम प्रयास कर रहा है. लेकिन, इसको सफल बनाने में आम लोगों की बड़ी भूमिका होगी. लोगों के फीडबैक पर ही स्मार्ट सिटी के लिए उपयोगी सुविधाओं व स्थल का चुनाव कर उसे लागू किया जायेगा. फिलहाल पब्लिसिटी कैंपेनिंग में पटना आगे चल रहा […]

पटना : शहर को स्मार्ट सिटी का दर्जा दिलाने के लिए निगम प्रयास कर रहा है. लेकिन, इसको सफल बनाने में आम लोगों की बड़ी भूमिका होगी. लोगों के फीडबैक पर ही स्मार्ट सिटी के लिए उपयोगी सुविधाओं व स्थल का चुनाव कर उसे लागू किया जायेगा. फिलहाल पब्लिसिटी कैंपेनिंग में पटना आगे चल रहा है.
वेबसाइट से 144, फेसबुक से 3500 व टि्वटर से 32 लोगों ने बात रखी. स्मार्ट सिटी कैंपेनिंग में आम लोगों को जोड़ने के लिए प्रभात खबर ने भी गुरुवार से नयी पहल की है. स्मार्ट सिटी के पैन सिटी ऑब्जेक्ट के तहत दी जाने वाली छह सुविधाओं में से चयनित शहर में दो सुविधाएं लागू की जानी हैं. पहले चरण में हम पैन सिटी के ऑब्जेक्ट के बारे में डिटेल जानकारी उपलब्ध करा रहे हैं.
इसके तहत पहले दिन ट्रैफिक-ट्रांसपोर्ट व वाटर सप्लाइ मैनेजमेंट के विषय में जानकारी दी गयी. दूसरे दिन ठोस कचरा प्रबंधन व ड्रेनेज सिस्टम और तीसरे व अंतिम दिन पावर सप्लाइ मैनेजमेंट व इ-गवर्नेंस के बारे में बतायेंगे. फिर हम शनिवार से अगले पांच दिनों तक आम लोगों की राय लेंगे. इसके लिए प्रभात खबर हर दिन दो जगहों पर कैंप लगायेगा. आम लोग यहां पर प्रभात खबर रिपोर्टरों के समक्ष अपनी बात रख सकेंगे. वहीं, इ-मेल आइडी sumit.kumar@prabhatkhabar.in व मोबइल नंबर 0612-3058357 पर शाम चार से छह बजे तक जानकारी दे सकते हैं.
वर्षा जल प्रबंधन
पटना शहर में वर्षा जल प्रबंधन की योजना पूरी तरह फेल है. हाल यह है कि 100 एमएम की बारिश में शहर डूब जाता है. इसकी सबसे बड़ी वजह ड्रेनेज सिस्टम फेल होना है. नगर विकास की कई एजेंसियां इसको लेकर काम करती हैं, इसलिए अब तक शहर का कोई विस्तृत ड्रेनेज प्लान नहीं बना. नगर निगम, बुडको, डूडा व डूडा टू एजेंसियां अपने हिसाब से योजनाएं तैयार करती हैं.
इनमें समन्वय की कमी सबसे बड़ी समस्या है, जिसके चलते इन एजेंसियों के बनाये गये नालों का एक-दूसरे से कनेक्शन नहीं हो पाता. पटना की जलनिकासी पुनपुन की बजाय गंगा को आधार रख कर बनायी गयी है, लेकिन शहर से गंगा का स्तर ऊंचा है.
इसलिए बरसात के दिनों में शहर का पानी नहीं निकल पाता. कई संप हाउस का लेवल ठीक नहीं है. इसके चलते कई बार पानी को लिफ्ट कर गंगा में फेंकना पड़ता है. अभी शहर के नौ बड़े नालों का पक्कीकरण कर सड़क बनाने की योजना है, जिसका फाइनल डीपीआर भी बुडको ने अब तक तैयार नहीं की है. आधे शहर के कई मोहल्लों में तो नाला दिखता ही नहीं है. संप हाउस से निकलने वाले पानी का ट्रीटमेंट कर एसटीपी के माध्यम से गंगा में डालने की योजना व शहर का नया सीवरेज कवरेज प्लान भी वर्ल्ड बैंक की सहमति के इंतजार में अटका है.
कैसे होगा सुधार : शहर की ड्रेनेज व सिवरेज व्यवस्था को इस तरह डेवलप किया जायेगा कि किसी भी जगह पानी न लगे. इसके लिए युद्धस्तर पर सर्वे कर वैज्ञानिक तरीके से नये ड्रेनेज-सीवरेज का इंतजाम किया जायेगा. संप हाउसों की स्थिति में सुधार होगा व गंगा नदी में ट्रीटमेंट किया हुआ पानी ही डाला जायेगा. प्रमुख स्थानों पर सेंसर लगाये जायेंगे. ड्रेनेज फुल होने या पानी का लेवल बढ़ने पर यह सेंसर खुद ब खुद कमांड देगा, जिससे संप हाउस मशीनें काम करेंगी. सक्शन के लिए पंप की जरूरत पड़ेगी. कंट्रोल रूम मॉनिटरिंग के साथ ही मोबाइल एप सहित अन्य टेक्नोलॉजी साूल्युशन भी होंगे. सिटी कमांड सेंटर के माध्यम से शहर के किसी भी भाग को गूगल मैप के माध्यम से देखा जा सकेगा.
ठोस कचरा प्रबंधन
2007-08 में जेएनआरयूएम के तहत 23 करोड़ रुपये मिले थे, जो बैंक में रखे-रखे ब्याज सहित बढ़ कर 41 करोड़ रुपये हो गये हैं. निगम ने इस राशि को 2015 से खर्च करना प्रारंभ किया. सात करोड़ रुपये से फिलहाल कचरे के ट्रांसपोर्टेशन के लिए उपकरणों की खरीद की गयी है.
20 करोड़ के उपकरण अभी और खरीदे जाने हैं. ठोस कचरा प्रबंधन के तीन प्वाइंट हैं. पहला कचरे का उठाव यानी डोर-टू-डोर कलेक्शन. डोर-टू-डोर में निगम 2010 से लेकर अब तक फेल होता आया है. कचरा निष्पादन के लिए 2014 में बुडको के माध्यम से कंपनी का चयन हुआ. बैरिया में कचरे से खाद व बिजली बनायी जानी थी. लेकिन, अब कंपनी केवल आइवॉश कर रही है. कुछ भी ठोस काम नहीं हुआ है. तीसरा कचरे के ट्रांसपोर्टेशन की स्थिति भी सही नहीं है.
कैसे होगा सुधार : निर्धारित समय के भीतर हर घर से ठोस कचरे का उठाव सुनिश्चित होगा. कचरे के उठाव से लेकर उसके निपटारे की समुचित व्यवस्था की जायेगी. कचरा निपटान की मूल व्यवस्था को लागू करने के साथ ही टेक्नोलॉजी सॉल्यूशन लागू होगा. पूरे शहर की सफाई व्यवस्था की मॉनिटरिंग को कंट्रोल रूम होगा, जहां से इसकी मॉनिटरिंग होगी.
गारबेज बिन (कचरा बॉक्स) में जीपीएस व ट्रांसमीटर लगाया जायेगा. इससे बॉक्स में कचरा फुल होते ही नजदीक की कचरा उठाने वाली मशीन को पता चल जायेगा कि बॉक्स फुल हो गया है. कंट्रोल में दिखेगा कौन सी कचरा गाड़ी कहां खड़ी है. समूची व्यवस्था ऑनलाइन होगी.
कम से कम 60 अंक मिलना जरूरी
शहर को 100 में 60 अंक मिलना जरूरी हैं. हमारी प्रतियोगिता बेंगलुरू, इंटानगर, एजोल से है. हम आगे चल रहे हैं. सबसे पहले ड्राफ्ट प्रोपोजल बनाया जाना है, जो सितंबर के अंत तक तैयार होगा. स्मार्ट सिटी में केवल केंद्र और राज्य से एक हजार करोड़ के अलावा पीपीपी मोड व निजी भागीदारी से भी प्रोजेक्ट लाये जाने हैं.
शीर्षत कपिल अशोक, नोडल पदाधिकारी, स्मार्ट सिटी

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