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यह एक भाषा या विषय की पढ़ाई बंद होना भर नहीं है

वीर कुंवर सिंह विवि में भोजपुरी का मामला अजय कुमार पटना : 2014 के संसदीय चुनाव को याद करिए. आरा में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की सभा थी. सभा में जब वह भोजपुरी में बोले, तो भीड़ उछल पड़ी. याद करिए कि जब हास्य कलाकार कपिल शर्मा अपने कार्यक्रम में भोजपुरी बोलते हैं, […]

वीर कुंवर सिंह विवि में भोजपुरी का मामला
अजय कुमार
पटना : 2014 के संसदीय चुनाव को याद करिए. आरा में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की सभा थी. सभा में जब वह भोजपुरी में बोले, तो भीड़ उछल पड़ी. याद करिए कि जब हास्य कलाकार कपिल शर्मा अपने कार्यक्रम में भोजपुरी बोलते हैं, तो यह जुबान बोलनेवाले कैसा महसूस करते हैं. पर, जरा ठहरिए. आरा के वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय में भोजपुरी भाषा की पढ़ाई बंद हो गयी. यह न केवल गंभीर चिंता का विषय है, बल्कि यह कई सवाल भी खड़े करता है. यह सिर्फ एक भाषा या एक विषय की पढ़ाई का बंद हो जाना भर नहीं है.
इसकी गंभीरता इस रूप में है कि भोजपुरी की पढ़ाई जहां बंद हुई है, वह जगह देश-विदेश के लिए भोजपुरी का प्रतीक और पहचान है. आखिर भोजपुरी भाषा की पहचान तो भोजपुर (आरा) जिले से ही हैं. दूसरा यह ऐसे समय में बंद हुआ है, जब भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए पुरानी मांग जोर पकड़ रही है. भोजपुरी के बारे में मोटा-मोटी अनुमान लगाया जाता है कि यह करीब 20 करोड़ लोगों की मातृभाषा है.
गर्व करने के लिए कई महान विभूतियां हैं, जिन्होंने भोजपुरी में गीत, कविताएं, कहानी, गद्य, नाटक आदि दिये हैं. यह अलग बहस और शोध का विषय हो सकताहै कि अवधी की तरह भोजपुरी को हिंदी साहित्य में उस तरह प्रतिष्ठा नहीं मिली. इसकी बड़ी वजह यह रही होगी कि भोजपुरी का विस्तार अमूमन आम जनों के बीच रहा, जिन्होंने इसे सिंचित किया और अपने-अपने तरीके से इसका प्रचार-प्रसार किया. 18 वीं शताब्दी में बिहार व पूर्वी उत्तरप्रदेश के गिरमिटिया मजदूरों ने भोजपुरी को कई देशों में फैलाया. अपनी भाषा से उनका मोह ही था, जो फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम, गुयाना, ट्रिनिडाड और टोबैगो, सिंगापुर दक्षिण अफ्रीका,
मलेशिया,थाईलैंड आदि देशों में भोजपुरी को ले गया. आज इनमें से कई देशों में भोजपुरी को सरकारी स्तर पर मान्यता हासिल है.
मॉरीशस सरकार ने तीन साल पहले ही भोजपुरी को सरकारी भाषा का दर्जा दे दिया है. हाल में पटना आये न्यूयाॅर्क के सिटी यूनिवर्सिटी के पूर्व फैकल्टी डॉ विष्णु विश्राम ने बताया कि भोजपुरी के कई शब्दों को हमने सहेज कर रखा है. ये शब्द उनकी जड़ों की याद दिलाते हैं. नेपाल में तो भोजपुरी को वहां की 14 मान्यताप्राप्त भाषाओं की सूची में स्थान दिया गया है.
पिछले दिनों नेपाल के राष्ट्रपति ने भोजपुरी में शपथ ली. यानी पूरी दुनिया में करीब 44 करोड़ भारतवंशियों की मातृभाषा किसी-न-किसी रूप में भोजपुरी है. अपने देश में उत्तर प्रदेश के बलिया, गाजीपुर व गोरखपुर से लेकर वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही और इलाहाबाद और बिहार के भोजपुर, रोहतास, गोपालगंज, सारण, सीवान, रोहतास और झारखंड के पलामू, रांची और छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में इसकी जड़ें फैली हुई हैं. भोजपुरी में गर्व करने लायक बहुत कुछ है. भिखारी ठाकुर से लेकर कई गीतकार पैदा हुए, जिन्होंने इस भाषा को राष्ट्रीय पहचान दी. आधुनिक तौर पर कई सघर्षशील लोग इंटरनेट, ब्लॉग व पोर्टल के जरिये भोजपुरी को फैला रहे हैं. ऐसे में यदि भोजपुरी भाषा और बोली की पहचान रहे आरा के विश्वविद्यालय में भोजपुरी की पढ़ाई बंद करना सचमुच अफसोसजनक है.
लंबे समय से उठ रही आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग
भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग लंबे समय से उठती रही है. 14वीं लोकसभा में तत्कालीन सरकार ने आश्वासन भी दिया था. 15वीं लोकसभा में कम-से-कम पांच बार आश्‍वासन दिये गये. इसी माह लोकसभा में बिहार के ही एक सांसद ने यह मांग उठायी. सरकार ने स्वीकार किया कि 38 भाषाओं को संवाधानिक दर्जा दिये जाने की मांग लंबित है, लेकिन अब तक बिल तक पेश नहीं किया गया है. पिछली सरकारें अब तक 22 भारतीय भाषाओं को आठवीं अनुसूची में शामिल कर चुकी हैं.

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