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इपीएफ खाते में बिहारियों के 3360 करोड़ रुपये फंसे

3.36 करोड़ बिहारी कर्मियों के खाते अनलिंक कौशिक रंजन पटना : निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए भविष्य निधि खाता (इपीएफ) एक तरह से रिटायरमेंट के बाद पेंशन या अन्य आर्थिक सहायता प्रदान करने का एकमात्र आधार होता है. लेकिन, निजी सेक्टर की नौकरी में निश्चिंतता नहीं होने से कर्मचारी इसे बदलते रहते हैं. इस […]

3.36 करोड़ बिहारी कर्मियों के खाते अनलिंक
कौशिक रंजन
पटना : निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए भविष्य निधि खाता (इपीएफ) एक तरह से रिटायरमेंट के बाद पेंशन या अन्य आर्थिक सहायता प्रदान करने का एकमात्र आधार होता है. लेकिन, निजी सेक्टर की नौकरी में निश्चिंतता नहीं होने से कर्मचारी इसे बदलते रहते हैं. इस चक्कर में इपीएफ का बड़ा नुकसान निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को होता है. पूरे देश में निजी क्षेत्र के करीब 24 करोड़ कर्मचारी ऐसे हैं, जिनके पीएफ खाते लिंक ही नहीं हैं. ये खाते इनके किसी बैंक एकाउंट से भी नहीं जुड़े हुए हैं.
इसकी वजह से बैंकों में इनकी कमाई के करीब 28 हजार करोड़ रुपये पड़े हुए हैं. इनमें बिहार के ऐसे कर्मचारियों की संख्या करीब 14% यानी 3.36 करोड़ हैं. इनके 3360 करोड़ रुपये इपीएफ खातों में पड़े हुए हैं. इनमें वैसे कर्मचारी भी शामिल हैं, जो बिहार के बाहर दूसरे राज्यों में काम करते हैं.
केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की पहल और सलाह पर निजी क्षेत्र के कर्मचारियों के खाते लिंक करने का काम शुरू भी हुआ है. लेकिन, छह-सात माह में महज दो करोड़ के ही खाते लिंक हो पाये हैं. अब भी 24 करोड़ खाते अनलिंक पड़े हुए हैं.
इस तरह के कर्मचारियों की संख्या ज्यादा
ऐसे तो निजी क्षेत्र के सभी तबकों के कर्मचारी इपीएफ खाते लिंक नहीं होने की समस्या से परेशान हैं. लेकिन, जो कर्मचारी ठेके पर या चतुर्थवर्गीय श्रेणी या ठेके पर मिस्त्री या मजदूर, पॉटर, मैकेनिक के रूप में किसी निजी कंपनी, फर्म या संस्थान में काम करते हैं.
इन्हें सबसे ज्यादा नुकसान होता है, खासकर निर्माण क्षेत्र से जुड़े कर्मचारियों को. किसी बड़ी निर्माण कंपनी में मजदूर, मिस्त्री या अन्य निचले स्तर पर काम करनेवाले तमाम कर्मचारियों का पेमेंट कंपनी इपीएफ काट कर करती है, लेकिन कुछ समय बाद जब ये नौकरी छोड़ देते या इन्हें निकाल दिया जाता है, तब इनका कटा हुआ पीएफ वैसा ही पड़ा रह जाता है.
जब ये किसी दूसरी कंपनी को ज्वाइन कर लेते हैं, तो पुराना खाता लिंक नहीं होने से इनका पुराना खाता कुछ समय बाद बंद हो जाता है और फिर से नये पीएफ एकाउंट में रुपये जमा होने लगता है. इस तरह पुराने रुपये बिना किसी हिसाब के सरकारी खाते में पड़े रह जाते हैं. काफी समय तक ये रुपये बैंकों के सरकारी खातों में पड़े रहने से इसका सीधा फायदा बैंकों को होता है.
उनकी वित्तीय सेहत अच्छी बनी रहती है. विशेषज्ञ बताते हैं कि बैंकों में काफी मात्रा में लोन के एनपीए में बदलने पर भी इस तरह के अनएकाउंटेड रुपये की वजह से ही उनकी वित्तीय सेहत बहुत प्रभावित नहीं हो पाती है. ये बैंकों को दिवालिया होने से बचाने में अहम भूमिका निभाते हैं. लंबे समय तक अनएकाउंटेड रुपये पड़े रहने से सरकार इनका उपयोग इन्फ्रास्ट्रक्टर बांड बना कर डाल देती है. खाते लिंक नहीं होने से बैंकों में बेकार पड़े हैं करीब 28 हजार करोड़
इपीएफ एकाउंट के माध्यम से निजी सेक्टर में काम करनेवाले लोगों के रुपये अटके
पूरे देश में 24 करोड़ निजी कर्मचारियों के इपीएफ खाते नहीं हैं लिंक केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की पहल पर अभी महज दो करोड़ कर्मचारियों के ही खाते हो पाये हैं लिंक

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