पटना / नयी दिल्ली : किसानों को मिलने वाली प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को लेकर इन दिनों केंद्र सरकार और बिहार सरकार में खींचतान मची हुई है. राज्य में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू करने की मांग को लेकर विपक्षी दल भाजपा कई बार सवाल खड़े कर चुकी है. वहीं बीमा योजना बिहार में लागू नहीं हो पा रही है. जानकारी के मुताबिक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस योजना को लेकर आपत्ति है. नीतीश कुमार के मुताबिक इस योजना की खामी यह है कि योजना की प्रीमियम दर हर राज्य के लिये अलग-अलग रखी गयी है. इस योजना के तहत राज्य और केंद्र को 50-50 के अनुपात में अंशदान की राशि देनी है. वैसे में यह सवाल उठ रहा है कि आखिर इस योजना का नाम प्रधानमंत्री के नाम से क्यों हो.
केंद्र राज्य के झगड़े में किसानों को नुकसान
बिहार सरकार इस योजना को लेकर कई सुझाव दे रही है. राज्य सरकार का मानना है कि बीमा दर के प्रीमियम में बराबरी होनी चाहिए. सभी राज्यों को बराबर प्रीमियम देना पड़े, ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए. वहीं दूसरी ओर यह भी मांग है कि इस योजना का नब्बे फीसदी केंद्र को वहन करना चाहिये. राज्य और केंद्र के बीच इस खींचतान में आम किसानों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. दूसरी ओर मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बिहार के समस्तीपुर के कुछ किसानों ने फसल की बीमा राशि नहीं मिलने पर आत्महत्या करने की धमकी दी है.
बिहार सरकार ने योजना को नकारा
बिहार के मुख्यमंत्री ने योजना पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह योजना किसानों के लिये नहीं बल्कि बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिये लायी गयी है. नीतीश कुमार के मुताबिक बीमा के प्रीमियम की राशि में समानता जरूरी है. ऐसा नहीं हो कि उत्तर प्रदेश में चुनाव है तो वहां के किसानों को कम प्रीमियम भुगतान करना पड़े. बिहार सरकार को इस योजना के अनुसार साढ़े छह सौ करोड़ रुपये देने पड़ेंगे. बिहार सरकार इस पूरी राशि को सीधे किसानों को देना चाहती है ना कि बीमा कंपनियों को.
केंद्रीय कृषि मंत्री का बिहार सरकार पर आरोप
वहीं दूसरी ओर केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने एक बयान में कहा है कि बिहार में राजनीतिक कारणों से इस योजना को जान बूझकर लागू नहीं किया जा रहा है.राधामोहन सिंह के मुताबिक नीतीश कुमार ऐसे तर्क दे रहे हैं जैसे बिहार देश से अलग हो. राधामोहन सिंह के मुताबिक सभी राज्य तैयार हैं तो बिहार को आपत्ति क्यों. वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार अभी भी 90 फीसदी राशि केंद्र को देने और 10 फीसदी राज्य को निर्धारित करने पर अड़ी हुई है. वहीं इस खींचतान का सीधा असर किसानों की सेहत पर पड़ रहा है.