गांधी शांति प्रतिष्ठान केंद्र में कार्यक्रम का हुआ आयोजन
नयी दिल्ली : नशा मुक्ति-शराब बंदी पर जनसंगठनों का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी हिस्सा लिया. गांधी शांति प्रतिष्ठान केंद्र में जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय की ओर से आयोजित इस सम्मेलन में देश के अलग-अलग क्षेत्रों से आये लोगों ने शिरकत की.
सभी ने शराब बंदी को लेकर नीतीश कुमार की प्रशंसा की तथा ऐसे काम पूरे देश में हो इसकी जरूरत भी बतायी. राष्ट्रीय समन्वय ने पूरे देश में शराब के खिलाफ मुहिम चलाने की आवश्यकता बतायी है, जिससे समाज को इसका लाभ मिल सके. क्योंकि शराबबंदी राजनीतिक मुददा नहीं रहा, बल्कि अब यह एक सामाजिक मुददा बन गया है. लोगों के मन में कानून के भय के साथ ही समाज का भय भी हो, तो लक्ष्य को पाना आसान हो जाता है.
सम्मेलन को संबोधित करते हुए जदयू अध्यक्ष व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने शराब बंदी के विषय में कहा कि सरकार और समाज जब मिल कर कोई काम करती है, तो उसका परिणाम हमेशा अच्छा होता है.
इसलिए सरकार की ओर से तो बिहार में शराब बंदी कर दिया गया, इसके परिणाम भी अच्छे आ रहे हैं, लेकिन अब इसे पूरे देश में ले जाने की जिम्मेवारी जनसंगठनों की है. जिन कामों को करने में सरकार को दिक्कत आती है, उन कामों को जनसंगठन अासानी से कर पाते हैं. इसलिए सभी लोग इस दिशा में सोचे व इसे देशव्यापी मुहिम बनाकर शराब के खिलाफ देश भर में एक माहौल बनायें. बिना माहौल के किसी काम को लागू करना कठिन हो जाता है.
बिहार में एक माहौल बनाया गया. बच्चों ने अभिभावकों से लिखाया कि वह न शराब पियेंगे, ना ही दूसरे को पीने के लिए प्रोत्साहित करेंगे. विधानसभा और विधान परिषद में अध्यक्ष समेत सभी विधायकों ने शपथ खायी की वह शराब को नहीं पियेंगे. विभिन्न विभागों के कर्मचारी से लेकर आला अधिकारियों ने शराब न पीने की शपथ ली. इससे एक माहौल बना और एक अप्रैल से पूर्ण शराबबंदी में मदद मिली.
सरकारी स्तर पर जो काम उन्हें करना चाहिए था, उसे उन्होंने पूरा किया है अब बारी जन संगठनों का है, विभिन्न संस्थानों का है, देश के बुद्धिजीवियों और उन तबकों का है जो जनजागरण फैला सकते हैं.
लोगों को इससे होने वाली हानि के विषय में बता सकते हैं. लोगों को जागरूक कर इस संबंध में बताना होगा.
यह बताना होगा के शराब से कैसे पीढ़ी की पीढ़ी बर्बाद हो जा रही है. कम से कम वह अपनी आने वाली पीढ़ी का तो ध्यान रखें.
श्रमिक कानूनों में बदलाव का विरोध करेगा जदयू
जदयू ने केंद्र सरकार के द्वारा श्रम कानूनों में बदलाव का विरोध किया है. पार्टी ने सरकार की श्रमिक विरोधी नीतियों की कड़े शब्दों में निंदा की है. राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार ने दिल्ली में कहा कि जदयू देश के श्रमजीवी वर्ग के अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. पार्टी उनके आंदोलनों का समर्थन करती है.
राष्ट्रीय अध्यक्ष की हैसियत से उन्होंने विभिन्न राजनीतिक दलों से जनसाधारण से जुड़ी तमाम समस्याओं पर शुरू किये जा रहे संघर्ष के समर्थन में एकजुटता का सभी दलों से अनुरोध भी किया. श्रमिक संगठनों ने केंद्र सरकार के खिलाफ नौ अगस्त को सभी प्रदेशों के राजधानियों में धरना प्रदर्शन और नौ सितंबर को हड़ताल का आह्वान किया है. जदयू इस आंदोलन को समर्थन देगा. पार्टी के राष्ट्रीय कार्यालय से जारी नीतीश कुमार के बयान में कहा गया है कि सत्ता में आने के बाद एनडीए सरकार द्वारा विभिन्न श्रम कानूनों में संशोधन की प्रक्रिया तेज हो गई है.
विभिन्न श्रम कानूनों में हितकारी प्रावधानों जिन्हें कामगारों ने लंबे संघर्ष के बाद प्राप्त किया था, उसमें अब एकतरफा संशोधन होने शुरू हो गये हैं. उन्होंने कहा कि भारत आइएलओ का संस्थापक सदस्य है.
आइएलओ द्वारा पारित प्रस्ताव में व्यवस्था है कि श्रम कानूनों में संशोधन त्रिपक्षीय चर्चा से सहमति बनाकर किया जायेगा. बावजूद इसके मोदी सरकार ने घरेलू व बहुराष्ट्रीय पूंजीपतियों के दबाव में एक ओर जहां सभी प्रमुख श्रम कानूनों में श्रमिक विरोधी संशोधन प्रारंभ किये. सरकार लघु कारखाना विधेयक लेकर आयी है जो 40 से कम श्रमिक वाले प्रतिष्ठानों पर लागू होगा. उन प्रतिष्ठानों में 14 प्रमुख श्रम कानून लागू नहीं होने से नियोजकों को मनमानी करने का पूरा अवसर मिलेगा. जदयू ने कहा कि मॉडल शाप एंड इस्टेवलिशमेंट विधेयक लागू कर व्यापारियों के हितों की रक्षा का प्रयास किया गया है.
इन नये कानूनों और संशोधनों के लागू हो जाने पर देश के 48 करोड़ श्रमिकों में से 60 प्रतिशत से अधिक श्रमिक बंधुआ मजदूर की दशा में जीने को बाध्य हो जायेंगे. इन्हें श्रम अधिकार प्राप्त नहीं होगा. वे अब यूनियन बनाने, कार्य के घंटे निर्धारित करने आदि की स्थिति में भी नहीं होंगे.
उन्होंने कहा कि सरकार निश्चित अवधि रोजगार प्रारंभ कर अनौपचारिक श्रम शक्ति को बढ़ावा देने का प्रयास कर रही है. इससे निर्धारित अवधि अथवा कार्य समाप्ति हो जाने की दशा में कामगर को किसी तरह की क्षति-पूर्ति अथवा सामाजिक सुरक्षा दिये बगैर ही उनकी सेवाएं समाप्त कर दी जायेंगी. औद्योगिक विवाद अधिनियम में संशोधन के बाद 300 कर्मचारी नियोजित करने वाले नियोजक को अब बिना सरकार की अनुमति के ही कारखाने में छंटनी तथा कारखाने बंदी की आजादी प्राप्त हो गयी है.
वर्तमान में यह संख्या सौ ही है. इसी तरह से 50 ठेका श्रमिक नियोजित करने वाले ठेकेदार पर ठेका कामगार कानून 1970 लागू नहीं होगा. वर्तमान में यह संख्या 20 है. महिलाओं को शाम सात बजे से प्रात: छह बजे तक रात्रिपाली में काम पर बुलाया जाना मना था. अब उन्हें रात्रिपाली में भी काम पर बुलाया जा सकता है. तीन माह में अधिकतम ओवर टाइम 50 घंटे को बढ़ाकर 125 घंटे तक कर दिया गया है. इससे कर्मचारियों पर अतिरिक्त दबाव भी पड़ेगा.