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राजनीतिक कारणों से बिहार में उत्तर प्रदेश दुहराने का प्रयास

सुरेंद्र किशोर राजनीतिक िवश्लेषक बिहार के कई प्रमुख प्रतिपक्षी नेतागण रूबी कुमारी की गिरफ्तारी का इन दिनों सार्वजनिक रूप से सख्त विरोध कर रहे हैं. याद रहे कि टॉपर घोटाले में वह जेल में है. इसी तरह का विरोध करके मुलायम सिंह यादव ने 1993 के यूपी विधान सभा चुनाव में भाजपा को पराजित कर […]

सुरेंद्र किशोर
राजनीतिक िवश्लेषक
बिहार के कई प्रमुख प्रतिपक्षी नेतागण रूबी कुमारी की गिरफ्तारी का इन दिनों सार्वजनिक रूप से सख्त विरोध कर रहे हैं. याद रहे कि टॉपर घोटाले में वह जेल में है. इसी तरह का विरोध करके मुलायम सिंह यादव ने 1993 के यूपी विधान सभा चुनाव में भाजपा को पराजित कर दिया था. सन 1993 में मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बन गए थे.
1992 में बाबरी मस्जिद के टूटने की पृष्ठभूमि में 1993 में विधान सभा चुनाव हुआ था. उसमें भाजपा जीत की उम्मीद कर रही थी. पर,उस चुनाव में मंदिर मुददे की अपेक्षा कदाचार में लगे छात्र-छात्राओं की गिरफ्तारी का मुददा अधिक हावी रहा. याद रहे कि परीक्षाओं में भीषण कदाचार से ऊबी कल्याण सिंह सरकार ने 1992 में सख्त नकल विरोधी कानून बनाया था. उस कानून के जरिये कदाचार को संज्ञेय अपराध बना दिया गया था.
कल्याण सरकार के कार्यकाल में इस कानून के तहत बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं को जेल जाना पड़ा था. मुलायम सिंह यादव और कुछ अन्य विरोधी नेताओं ने छात्राओंं को जेल भेजे जाने को एक बड़ा चुनावी मुद्दा बना दिया. कुछ नेतागण तब लोगों से पूछते थे, क्या अब लड़कियां भी जेल जाएंगी?
इस तरह राजनीतिक लाभ के लिए कदाचारपक्षी अभिभावकों की भावनाओं से खिलवाड़ किया गया. कल्याण सिंह की पार्टी चुनाव हार गयी. बसपा की मदद से 1993 में मुलायम मुख्यमंत्री बने. मुलायम सरकार ने नकल विरोधी कानून को रद कर दिया. क्या बिहार के कुछ विरोधी नेतागण मुलायम सिंह यादव की राह पर हैं? क्या उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं कि परीक्षाओं में भीषण कदाचार और टॉपर घोटाले से पीढ़ियां बर्बाद हो रही हैं? राज्य बदनाम हो रहा है. क्या इन्हें ऐसे ही जारी रखा जाना चाहिए?
क्या भ्रष्टाचार, कदाचार और अपराध के लिए लिंग भेद के आधार पर कानून बनेगा? यदि राजग के जो लोग रूबी की गिरफ्तारी का विरोध कर रहे हैं, वे लिंग भेद के आधार पर कानून बनाने की सलाह प्रधानमंत्री को देंगे ? यदि इस बार रूबी को सजा नहीं होगी तो क्या कोई अन्य पिता भविष्य में अपनी बेटी को अपनी महत्वाकांक्षा का शिकार नहीं बनायेगा? दोनों राज्यों की परिस्थितियों में फर्क है. यूपी में 1992 में नकल विरोधी कानून बना और 1993 में ही विधान सभा का चुनाव हो गया था.
पर बिहार विधानसभा का अगला चुनाव तो 2020 में है. लोकसभा चुनाव में भी अभी देर है.इस बीच यदि बिहार सरकार अगले तीन-चार साल तक कदाचार के खिलाफ यूं ही कड़ा अभियान जारी रख सके तो उसका स्थायी लाभ आम लोग भी समझ जाएंगे. फिर तो यूपी दुहराने का कुछ नेताओं का सपना धरा का धरा रह जायेगा. पर यदि उल्टा हुआ तो रूबी की गिरफ्तारी महंगा पड़ सकती है.
दल से अधिक देश के लिए डॉ स्वामी जरूरी
किसी भी जीवंत लोकतंत्र में डॉ सुब्रमण्यम स्वामी जैसे निडर और अभियानी नेता की उपस्थिति जरूरी मानी जाती है. क्योंकि सरकारें तो आम तौर पर मध्यमार्गी होती हैं. मध्यमार्गी सरकारों के तहत घोटालेबाज कमोवेश फलते-फूलते रहते हैं. यदि स्वामी न होते तो टू-जी घोटाले के साथ-साथ अन्य कई महा घोटालों की जांच अपनी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच पाती.
इन घोटालों का भी वही हश्र होता जैसा चर्चित हवाला कांड और बोफर्स घोटाले का हुआ था. खबर है कि अभी तो स्वामी ऐसी कई भंडाफोड़ योजनाओं पर काम कर रहे हैं. पर,उनके साथ दिक्कत यह है कि वह एक साथ कई मोर्चे पर लड़ते रहते हैं. लगता है कि वह जल्दबाजी में हैं. वह कई बार अपने ही नेता, सरकार या पार्टी से टकराव की मुद्रा में आ जाते हैं.
स्वामी के ताजा बयान से भी यह संकेत मिलता है कि भाजपा उन्हें बहुत दिनों तक अपने पास नहीं रख पायेगी. डॉ स्वामी और जेठमलानी ऐसे चर्चित व कारगर नेता हैं जो किसी दल के अनुशासन में रहने वाले व्यक्ति नहीं हैं. उनका स्वभाव ही कुछ ऐसा है. ये खुद ‘वन मैन आर्मी’ हैं. स्वामी ने यदि अपनी ही सरकार के एक हिस्से पर हमला जारी रखा तो उन्हें भी देर-सवेर भाजपा से निकाला जा सकता है. भाजपा ने ऐसी ही परिस्थिति में 2013 में राम जेठमलानी को दल से निकाल दिया था. यदि स्वामी पार्टी से निकाले गए तो फिर उन्हें अपनी पुरानी भूमिका में आना ही पड़ेगा.
बड़े-बड़े भ्रष्ट लोगों के खिलाफ सबूत एकत्र करके मुकदमे करते रहने की उनकी भूमिका रही है. यदि कोई बड़ा नेता सिर्फ आरटीआइ और पीआइएल को अभियान के रूप में देश भर में चलाने के लिए कोई ढीला-ढाला संगठन बनाये तो वह संगठन कुछ ही समय में काफी लोकप्रिय बन सकता है. कुछ साल के बाद तो उसे अच्छी-खासी चुनावी सफलता भी मिल सकती है. क्योंकि देश के बहुत सारे लोग तरह-तरह के अत्याचार तथा सरकारी-गैर सरकारी भ्रष्टाचारों से अत्यंत पीड़ित और चिंतित हैं.
आपातकाल की पांच मुख्य बातें
इस 26 जून को भाजपा ने 1975 की इमरजेंसी की चर्चा की. यह कांग्रेस को अच्छा नहीं लगा. कांग्रेस के एक नेता ने कहा कि आजकल तो भाजपा ने देश में अघोषित इमरजेंसी लगा रखी है.
सवाल है कि क्या आज 1975-77 की तरह इमरजेंसी है? कत्तई नहीं. ऐसे आधारहीन आरोप लगाकर कांग्रेस या कोई अन्य दल अपनी ही साख खराब करेंगे. 1975-1977 की इमरजेंसी के मुख्यत: पांच लक्षण थे. एक-देश के करीब एक लाख राजनीतिक नेता और कार्यकर्ता जेलों में बंद कर दिए गए थे. उन्हें अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ अदालत की शरण लेने की भी मनाही थी. दो-कोई प्रतिपक्षी दल जुलूस-प्रदर्शन नहीं कर सकते थे. तीन- कठोर प्रेस सेंसरशिप लागू था. सरकार, सत्ताधारी दल और उसके नेताओं के खिलाफ बयान नहीं छप सकते थे.
चार-आपातकाल के दौरान एटॉर्नी जनरल नीरेन डे ने सुप्रीम कोर्ट में कह दिया था कि यदि शासन किसी नागरिक की जान भी ले ले तौ भी उस हत्या के खिलाफ कोई अदालत की शरण में नहीं जा सकता है. पांच-जबरन नसबंदी जारी थी. इन पांच में से कौन सी स्थिति आज इस देश में मौजूद है? यदि ऐसे ही आधारहीन आरोप लगाओगे तो मोदी सरकार के खिलाफ आपके किसी ठोस और सच्चे आरोप पर भी कौन विश्वास करेगा?
कूड़ा-करकट से सड़क निर्माण !
क्या कूड़ा-करकट का सड़क निर्माण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है? यदि ऐसा हो जाए तो उससे देश में स्वच्छता कायम करने में सुविधा होगी. सड़क निर्माण के काम में धातु मल और फ्लाई ऐश का इस्तेमाल पहले से ही जारी है. अब बारी कूड़ा-करकट की है. राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने इस संबंध में पर्यावरण मंत्रालय और अन्य विशेषज्ञों से राय मांगी है.
हरी झंडी मिल जाने पर यह काम शुरू हो जाएगा. जिस दिन शहरों से निकलने वाले ठोस कूड़े का इस्तेमाल सड़कों के निर्माण में होने लगेगा,उस दिन प्रधानमंत्री के स्वच्छता अभियान को भी गति मिल जाएगी. अभी तो मोदी के इस महत्वाकांक्षी अभियान को कुल मिलाकर विफल ही माना जा रहा है. सड़कों के निर्माण में अभी बड़े पैमाने पर मिट्टी का इस्तेमाल होता है. इससे न सिर्फ पर्यावरण बिगड़ता है,बल्कि खेती का दायरा भी घटता है. क्योंकि बहुत सारी खेती लायक अच्छी मिट्टी सड़कों में लग जाती है.
और अंत में खबर आई थी कि टॉपर घोटाले के लिए चर्चित बच्चा राय एक केंद्रीय मंत्री के साथ मिलकर मेडिकल कॉलेज खोलना चाहता था. इंटर टॉपर रूबी को देख कर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि वह अपने संस्थान में किस तरह के डॉक्टर बनाता! धन्य है वह मंत्री जिसे बच्चा ही मिले थे!

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