पटना: बिहार में बैंकों का कार्यकलाप संतोषजनक नहीं है. राज्य के अपेक्षित विकास के लिए बैंकिंग प्रणाली में सुधार की जरूरत है. संयोग है कि भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर मंगलवार व बुधवार को बिहार में के दौर पर रहेंगे. आरबीआइ के गवर्नर से राज्य की अपेक्षा बढ़ गयी है. वित्त मंत्री पी चिदंबरम राज्य के विकास की स्थिति देख कर गये हैं.
सूबे में बैंकों की स्थिति गंभीर
राज्य में साख-जमा अनुपात राष्ट्रीय औसत से काफी कम है. राष्ट्रीय औसत 76, तो बिहार में यह 40.52 प्रतिशत है. यहां जमा हो रहे पैसे से राज्य के लोगों को ऋण नहीं मिलता है. 1,69,772 करोड़ रुपये जमा की तुलना में 75,352 करोड़ रुपये ऋण दिये गये. कई जगहों पर बैंक की शाखाएंनहीं है. राज्य की आबादी 10.41 करोड़ (2011 के अनुसार) है और यहां बैंकों की कुल शाखाएं 5454 हैं. जबकि, केंद्र सरकार व आरबीआइ की गाइड लाइन के मुताबिक प्रति 2000 की आबादी पर एक बैंक शाखा का होना जरूरी है.
सूबे में ग्रामीण क्षेत्रों में आठ करोड़ लोग रहते हैं, जबकि उन इलाकों में 3238 बैंक शाखाएं हैं.
वर्ष 2013-14 में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को 571 बैंक शाखाएं खोलनी थीं, लेकिन 30 सितंबर 13 तक मात्र 122 शाखाएं ही खुलीं.
वर्ष 2013-14 में निजी बैंकों ने 67 की तुलना में महज 24 शाखाएं ही खोलीं.
सूबे में सभी बैंकों को कुल 750 बैंक शाखाएं खोलनी थीं, लेकिन 184 शाखाएं ही खुलीं.
15000 की आबादी पर भी एक बैंक शाखा माना जाये, तो ग्रामीण इलाकों में 5333 शाखाएं होनी चाहिए, लेकिन इसकी संख्या महज 3238 है.
ग्रामीण क्षेत्रों पर इनकी नजर नहीं
30 सितंबर, 2013 के अनुसार स्टेट बैंक ऑफ पटियाला, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, आइसीआइसीआइ बैंक, फेडरल बैंक, जम्मू कश्मीर बैंक, साउथ इंडियन बैंक, आइएनजी वैश्य बैंक लि, एचडीएफसी बैंक, कर्नाटका बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक की एक भी ग्रामीण शाखा नहीं है. वहीं पंजाब एंड सिंध बैंक और स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर की एक-एक शाखाएं हैं.