पटना सिटी:पिछले दिन हुई बारिश के बाद ठंड और बढ़ गयी है. इस स्थिति में सड़कों पर ही बेसहारों व गरीबों की रातें गुजर रही हैं. ठंड के तेवर को देखते हुए आम शहरी ने, तो इससे बचाव के सारे जतन शुरू कर दिये, लेकिन निराश्रितों की सुधि लेने को कोई तैयार नहीं है.
नतीजतन ढलती उम्र और लुढ़कते पारे ने ठंड में निराश्रितों का जीना दूभर कर दिया है. सवाल यह है कि वे जायें, तो जायें कहां, क्योंकि शहर में रैन बसेरा नहीं होने के कारण निराश्रितों के लिए ठंड मुसीबत बन कर खड़ी है. शहर में पांच सौ से अधिक ऐसे श्रमिक हैं, जिनकी रातें या तो स्टेशन पर या फिर फुटपाथ पर गुजरती हैं या फिर किसी दुकान की शेड के नीचे. रैन बसेरा नहीं होने से निराश्रितों के लिए ठंड मुसीबत बन कर खड़ी है.
ऐसे लोग सहारा लें, तो कहां लें. ऐसे निराश्रितों के लिए कुछ स्वयंसेवी संगठन रात को कंबल की तपिश, तो कभी-कभार कुछ एक लोगों को दे देते हैं, लेकिन अधिकतर निराश्रितों की रातें यूं ही गुजर जाती हैं. ऐसे लोगों के लिए प्रशासन की ओर महज नौ जगहों पर अलाव जलाया जा रहा है, पर अलाव की लकड़ी कुछ देर जेलने के बाद ठंडी हो जाती हैं. अभी सर्द हवा के झोंकों के बीच रात सितम ढा रही है. इधर, कई दिनों से धूप खूल कर नहीं निकल रही है. इस कारण परेशानी और बढ़ गयी है.
बस नाम का है रैन बसेरा
जिंदगी की ढलती सांझ को सुकून से गुजार सकें, ऐसे निराश्रितों के लिए पटना नगर निगम सिटी अंचल में अस्थायी रैन बसेरा बनाया गया है. इसमें कंबल, दरी व बिछावन की व्यवस्था की गयी है. यह कहना है सिटी अंचल के कार्यपालक पदाधिकारी नरेंद्रनाथ का, जबकि सच्चई यह है कि रैन बसेरा का बोर्ड लगा कर ही इतिश्री कर दी गयी है. निगम के रैन बसेरा में कितने निराश्रितों ने आश्रय ले रखा है, इस पर अधिकारी स्पष्ट नहीं बता पाते. निगम के पटना सिटी अंचल में स्थायी रैन बसेरा की व्यवस्था नहीं है. आपदा के समय में कार्यालय में ही अस्थायी रैन बसेरा बनाया जाता है ताकि सड़कों पर रात गुजारनेवाले यहां रह सकें, लेकिन अधिकतर निराश्रित जानकारी के अभाव में सड़कों पर ही रातें गुजार रहे हैं.
निगम के कार्यपालक पदाधिकारी से बात निराश्रितों के लिए सुविधा उपलब्ध करायी जायेगी. सड़क पर कोई नहीं सोये, इसके लिए भी व्यवस्था होगी. अनुमंडल प्रशासन गरीबों के लिए संवेदनशील है.
त्याग राजन एसएम , अनुमंडल पदाधिकारी