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कोई बताये, क्यों चलती रही काउंसिल में धंधेबाजी

इंटर काउंसिल यानी धतकरम कथा अजय कुमार पटना : बिहार की यह ऐसी संस्था है, जो जन्म के साथ ही भ्रष्टाचार, धंधेबाजी और फर्जी कारनामों से बाहर नहीं आ सकी. बिहार इंटर काउंसिल नाम है इसका. 11 अगस्त, 1980 को राज्य की तत्कालीन डॉ जगन्नाथ मिश्र की सरकार ने इसे बनाया था. इन 36 सालों […]

इंटर काउंसिल यानी धतकरम कथा
अजय कुमार
पटना : बिहार की यह ऐसी संस्था है, जो जन्म के साथ ही भ्रष्टाचार, धंधेबाजी और फर्जी कारनामों से बाहर नहीं आ सकी. बिहार इंटर काउंसिल नाम है इसका. 11 अगस्त, 1980 को राज्य की तत्कालीन डॉ जगन्नाथ मिश्र की सरकार ने इसे बनाया था. इन 36 सालों में काउंसिल के काले कारनामे अबाधित रहे.
दीगर यह कि इस दौरान हुकूमत में पहुंची 15 सरकारों ने ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे काउंसिल की माफियागिरी खत्म होती. अगर ऐसा हुआ रहता, तो लालकेश्वर से लेकर बच्चा राय जैसे खल-पात्र सामने नहीं आते. 2007 में कौंसिल को बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के साथ मिला कर बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (माध्यमिक व उच्च माध्यमिक) नाम दिया गया. जानकार मानते हैं कि शिक्षा से जुड़े संस्थानों में इंटर काउंसिल एक बदनाम संस्था रही है. अवैध नियुक्तियां, वित्तीय घोटाले, यहां के कर्मचारियों की उदंडता, परीक्षाफल की हेराफेरी, हर स्तर पर भ्रष्टाचार, इसके परिसर में स्थायी रूप से तैनात दलालों की सेवा का मिलना इसकी खास पहचान है.
पैसे के जोर पर लिये जाते हैं नंबर
थोड़ा पीछे चलें. इंटर की अंक तालिकाओं के फर्जी होने पर जब संदेह बढ़ने लगा तो राजस्थान से शिक्षा विभाग की एक टीम यहां पहुंची. उसने छानबीन के बाद पाया: कौंसिल की परीक्षा व्यवस्था भरोसे लायक नहीं है. परीक्षा निजी कॉलेजों में होती है और उसमें वास्तविक छात्र के बदले किसी दूसरे को बैठा देना आम है. टीम ने यह भी रेकॉर्ड किया कि काउंसिल की ओर से पैसे लेकर फर्जी अंक पत्र जारी करना सामान्य बात है. टीम ने रजिस्ट्रेशन से लेकर रिजल्ट जारी होने तक की प्रक्रिया को बेहद अविश्वसनीय माना था. यह टीम 1995 में यहां आयी थी.
सवाल: अगर ऐसा था तो शिक्षा विभाग ने क्या कदम उठाये?
2005 में ही सामने आया था वीआर कॉलेज का कारनामा
उस साल वैशाली के विशुन राय कॉलेज की कॉपियां गया कॉलेज में मूल्यांकन के लिए गयी थीं. पैसों के लेन-देन के बाद इसके 477 छात्रों में 473 को प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण तथा चार को द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण किया गया. यही नहीं, मेरिट लिस्ट में एक से बीस तक स्थान पाने वाले परीक्षार्थी इसी कॉलेज के थे. हैरान करने वाला रिजल्ट आने पर काउंसिल के तत्कालीन अध्यक्ष नागेश्वर शर्मा ने उसकी जांच करायी. उन कॉपियों का दोबारा मूल्यांकन कराया गया. उसके बाद जो रिजल्ट आया, वह इस तरह था:
प्रथम श्रेणी 3
द्वितीय श्रेणी 411
तृतीय श्रेणी 54
फेल 09
दोबारा मूल्यांकन के पहले का रिजल्ट
कुल परीक्षार्थी 477
प्रथम श्रेणी 473
द्वितीय श्रेणी 4
सवाल: वीआर कॉलेज की कारस्तानी तभी सामने आ गयी थी. फिर उसका कारोबार कैसे चलता रहा?
तब भी परीक्षकों ने नहीं जांची थीं कॉपियां
इस मामले के सामने आने के बाद काउंसिल ने इसकी जांच के लिए एक समिति बनायी. उसकी रिपोर्ट में कहा गया कि केंद्राधीक्षक की ओर से परीक्षकों की जो सूची दी गयी थी, उनमें से अनेक परीक्षकों ने यह नकार दिया कि गया कॉलेज की उत्तरपुस्तिकाओं की उन्होंने जांच की है.
समिति ने यह भी माना था कि मूल्यांकन प्रक्रिया पूरी तरह अविश्वसनीय थी. बहरहाल, काउंसिल ने समिति की अंतरिम रिपोर्ट के आधार पर गया कॉलेज के तत्कालीन प्रिंसिपल डॉ मदन मुरारी को दोषी मानते हुए उनके खिलाफ बिहार परीक्षा संचालन अधिनियम (1981) के तहत कार्रवाई करने को कहा.
सवाल: काउंसिल की सिफारिशों को देखते हुए क्या कदम उठाये?
हाइकोर्ट की टिप्पणी
डीएड में दाखिले के वक्त बिहार इंटर काउंसिल के अंक पत्र व प्रमाणत्रों की जांच से पता चला कि वे सभी जाली व बनावटी थे. इससे बिहार इंटर काउंसिल की खराब हो चुकी कार्य प्रणाली को उजागर होती है. कोर्ट ने कहा कि काउंसिल में भ्रष्ट तरीके से अंक दिलाने का काम होता है. ऐसी संस्थाओं से प्राप्त अंक पत्रों और प्रमाण पत्र की मान्यता ही समाप्त कर देनी चाहिए. 1994 में अदालत की यह टिप्पणी आज के संदर्भ में सच्चाई से दूर नहीं है.
पटना हाइकोर्ट की टिप्पणी: शिक्षा माफिया ने शिक्षा को व्यवसाय बना डाला है. जो इस व्यवसाय में लगे हैं उन्हें आमतौर पर शिक्षा माफिया के तौर पर जाना जाता है. काउंसिल में एक सेक्शन ऑफिसर इस हद तक चीजों को तोड़-मरोड़ सकता है कि पूरी शिक्षा व्यवस्था ही एक भद्दा मजाक बन जाती है. ऐसे में शिक्षा तंत्र को प्रभावी तरीके से दुरुस्त करने की जरूरत है. इंटर कौंसिल के बारे में अगर ऐसी धारणा है कि वहां शिक्षा माफियाओं का वर्चस्व है तो उसका खुलासा भी किया जाना चाहिए.
सवाल: हाइकोर्ट की इन टिप्पणियों पर क्या कार्रवाई की गयी?
(नोट: यह रिपोर्ट डॉ नागेश्वर शर्मा की पुस्तक बिहार के सिसकता शिक्षा तंत्र पर आधारित है.)

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