वैसी गाड़ियों को भी फ्री पॉल्यूशन का सर्टिफिकेट मिल जा रहा है, जो सड़कों पर खुलेआम धुआं छोड़ते हुए चल रही हैं. पिछले दिनों खुद ट्रैफिक एसपी के सामने ऐसे ही वाहनों को छोड़ा गया था, क्योंकि उन वाहनों के पास कंप्लीट डॉक्यूमेंट थे. अब ऐसे सेंटरों की जांच होगी और उसकी मॉनीटरिंग कमिश्नर खुद करेंगे.
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गोरखधंधा: ‘पैसे के इंजन’ पर दौड़ रहीं खटारा गाड़ियां
पटना : आपकी गाड़ी कंडम रहे अथवा धुआं छोड़ती हो, इसके बाद भी फिटनेस का सर्टिफिकेट बन जायेगा. प्रदूषण मुक्त के कागजात मिल जायेंगे. बस आपको केंद्र पर जाकर पैसा जमा कर देना है. राजधानी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 65 प्रदूषण जांच केंद्र खोले गये हैं. वहां पर हाथोंहाथ सर्टिफिकेट दिये जाते हैं. […]
पटना : आपकी गाड़ी कंडम रहे अथवा धुआं छोड़ती हो, इसके बाद भी फिटनेस का सर्टिफिकेट बन जायेगा. प्रदूषण मुक्त के कागजात मिल जायेंगे. बस आपको केंद्र पर जाकर पैसा जमा कर देना है. राजधानी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए 65 प्रदूषण जांच केंद्र खोले गये हैं. वहां पर हाथोंहाथ सर्टिफिकेट दिये जाते हैं. लेकिन, तीन दिनों से चल रहे अभियान के दौरान अब यह बात
सामने आ रही है कि बहुत से जांच सेंटर गलत ढंग से या गाड़ी को सेंटर में बिना देखे ही प्रदूषण जांच के सर्टिफिकेट बांट रहे हैं.
वैसी गाड़ियों को भी फ्री पॉल्यूशन का सर्टिफिकेट मिल जा रहा है, जो सड़कों पर खुलेआम धुआं छोड़ते हुए चल रही हैं. पिछले दिनों खुद ट्रैफिक एसपी के सामने ऐसे ही वाहनों को छोड़ा गया था, क्योंकि उन वाहनों के पास कंप्लीट डॉक्यूमेंट थे. अब ऐसे सेंटरों की जांच होगी और उसकी मॉनीटरिंग कमिश्नर खुद करेंगे.
नियम में सूराख
पेपर देख दे देते हैं फिटनेस
किसी गाड़ी को फिटनेस देने के पहले एमवीआइ की पूरी जिम्मेवारी है कि उस गाड़ी का वह फिजिकल वेरिफिकेशन करे, लेकिन यहां ऐसा होता नहीं है. गाड़ी मालिक या चालक पहुंचते हैं और उनका पेपर चेक हो जाता है. ऐसे में एमवीआइ ने कौन-सी कंडम गाड़ी को फिटनेस दिया है, इसकी जानकारी उनके पास भी नहीं होती है. यही वजह है कि इन दिनों सड़क पर धुआं उड़ाने के बाद भी ऐसी अनफिट गाड़ियां दौड़ रही हैं और डॉक्यूमेंट रहने के बाद भी अधिकारी उन्हें पकड़ नहीं पा रहे हैं.
विभाग की मजबूरी: जांच के लिए मशीन तक नहीं
कमिश्नर व डीएम के आदेश पर यातायात पुलिस व डीटीओ पटना प्रदूषण जांच अभियान चलाते हैं, जोकि महज दिखावे के लिये होता है. क्योंकि सच्चाई यह है कि इनके पास पेट्रोल गाड़ियों का प्रदूषण जांच करने के लिये गैस एनालाइजर व डीजल गाड़ियों की जांच के लिए स्मोक मीटर तक नहीं है. फिर भी यह जांच करते हैं और उसमें बस उन्हीं गाड़ियों को पकड़ पाते हैं, जिनके पास सर्टिफिकेट नहीं होता है. बाकी गाड़ी को छोड़ देते हैं. क्योंकि प्रदूषण प्रमाण पत्र को काउंटर करने वाली मशीन परिवहन कार्यालय के पास नहीं है.
फिटनेस के लिए ये जांच जरूरी
गाड़ी कब की है, उसकी क्या है स्थिति
गाड़ी धुआं दे रही है या नहीं
ब्रेक ठीक से काम कर रहा है
गाड़ी का टायर ज्यादा पुराना तो नहीं
सीट बैठने लायक हो
लाइट, कलर, शीशा की जांच देख कर ही संभव
ड्राइवर का मेडिकल सर्टिफिकेट
ये हैं गाड़ियों की जांच के मानक
डीजल गाड़ी की जब जांच होती है, तो उसमें डेनसिटी ऑफ स्मोक की माप होती है. यानी जिस गाड़ी का धुआं पतला होगा वह गाड़ी सही है और जिस गाड़ी का धुआं मोटा होगा वह सर्टिफिकेट देने लायक नहीं है. मानक के मुताबिक डीजल गाड़ी में 65 हटर्ज से कम होना चाहिए. यह मानक अंतिम पायदान का है. अगर राजधानी का प्रदूषण बिल्कुल सही रखना है वहां बस में 45 हटर्ज व ऑटो में 25-35 हटर्ज से कम होना चाहिये. जो मानक के अंदर हो उसी को सर्टिफिकेट मिलना चाहिए.
पेट्रोल गाड़ियों में कार्बन मोनोऑक्साइड, कार्बन, ऑक्सीजन व नाइट्रोजोन आक्साइड चार पार्टिकल की जांच होती है और मानक के मुताबिक यह पार्टिकल .5 से कम होने चाहिए. वहीं आरपीएम यानी चक्करों की संख्या प्रति मिनट 750 आरपीएम होना चाहिए. प्रदूषण सर्टिफिकेट इसी गाड़ी को मिलना चाहिए. क्योंकि चक्करों की संख्या प्रति मिनट अधिक होगी यानी गाड़ी पेट्रोल अधिक खा रहा है, तो वह धुआं भी अधिक देगा. ऐसे में यह जरूरी है कि प्रमाण पत्र देने के पूर्व इसकी पूर्ण जांच हो.
राजधानी में चलनेवाली सभी गाड़ियों के पास प्रदूषण जांच केंद्र का प्रमाणपत्र है. ऐसे में यहां का प्रदूषण कम होना चाहिए, जबकि यह हर दिन बढ़ ही रहा है. यानी जांच सेंटर की अब जांच बहुत जरूरी हो गयी है. इसको लेकर परिवहन विभाग को पत्र लिखा जा रहा है. इस खेल को बंद किया जायेगा, वरना यहां इसी तरह से धुआं फैलाने वाली गाड़ियां दौड़ती रहेंगी और अधिकारी उन्हें जब्त नहीं कर पायेंगे और न ही उन पर जुर्माना ही लगा पायेंगे.
– आनंद किशोर, प्रमंडलीय आयुक्त, पटना
पटना में प्रदूषण जांच सेंटर अधिक खुल गये हैं, जो पूरी तरह बिना जांच किये ही गाड़ियों को सर्टिफिकेट दे रहे हैं. यही वजह है कि सर्टिफिकेट लेकर धुआं उड़ाते हुए गाड़ियां दौड़ रही हैं. इससे आशंका रहती है कि केवल पैसा लेकर ही वाहनों को पॉल्यूशन फ्री का सर्टिफिकेट दिया जा रहा है. सेंटरों पर चल रहे गोरखधंधे को खुलासा करने की जरूरत है. वरना इससे पॉल्यूशन घटने के बजाय शहर में बढ़ता ही जायेगा.
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