तब लाचार पिता ने पटना में रिश्तेदारों से कर्ज लेकर किसी तरह 20 हजार रुपये दिये. इसके बाद भी अस्पताल प्रबंधन ने मरीज को नहीं छोड़ा. परिजन मरीज को सरकारी अस्पताल में ले जाना चाहते थे. पिता ने अगमकुआं थाने में इसकी शिकायत की, पर उसकी नहीं सुनी गयी. परिजनों के हंगामे के बाद छोड़ा गया.
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आइजीआइएमएस के बदले 108 के चालक ने मरीज को भरती करा दिया प्राइवेट अस्पताल में
पटना : शहर के प्राइवेट अस्पतालों का सरकारी एंबुलेंस चालकों के साथ सांठ-गांठ का नया मामला सामने आया है. सरकारी एंबुलेंस सेवा 108 के चालक ने झाझा की हार्ट पेशेंट युवती को आइजीआइएमएस की जगह निजी अस्पताल में पहुंचा दिया. मामले का खुलासा तब हुआ, जब उस निजी अस्पताल ने मरीज को तत्काल आइसीयू में […]
पटना : शहर के प्राइवेट अस्पतालों का सरकारी एंबुलेंस चालकों के साथ सांठ-गांठ का नया मामला सामने आया है. सरकारी एंबुलेंस सेवा 108 के चालक ने झाझा की हार्ट पेशेंट युवती को आइजीआइएमएस की जगह निजी अस्पताल में पहुंचा दिया. मामले का खुलासा तब हुआ, जब उस निजी अस्पताल ने मरीज को तत्काल आइसीयू में भरती कर दो दिनों में ही 40 हजार रुपये का बिल थमा दिया. काफी जुगाड़ कर 20 हजार रुपये जमा करने के बाद भी जब मरीज को अस्पताल से डिस्चार्ज नहीं किया गया, तो परिजनों ने हंगामा किया. इसके बाद शुक्रवार को अस्पताल ने लिखित रूप से मरीज को छोड़ा.
जीवन ज्योति अस्पताल में करा दिया भरती
झाझा के रहनेवाले किराना व्यवसायी मदन मोहन प्रसाद अपनी बेटी ईशा सिन्हा (15 साल) के हार्ट की तकलीफ दिखाने पटना आये थे. राजेंद्र नगर के हार्ट हॉस्पिटल में दिखाने के बाद डॉक्टर ने 31 मई को घर जाने की इजाजत दे दी.
ऑटो में बैठते ही फूलने लगी थी सांस
अस्पताल से बाहर निकलने के बाद ऑटो में घर जाने को बैठते ही उसकी सांस फूलने लगी. इसके बाद परिजनों ने 108 नंबर पर फोन कर एंबुलेंस मंगाया. फोन के बाद एंबुलेंस आया और आइजीआइएमएस में सीट फुल होने की बात कह उसे भूतनाथ रोड स्थित जीवन ज्योति अस्पताल लेकर चला गया. यहां पर उसे एक जून को भरती किया किया.
मरीज की बुआ कमला सिन्हा ने बतायी कि जीवन ज्योति अस्पताल में पहुंचते ही डॉक्टर ने उसे सीधे आइसीयू में भरती करा दिया. दो दिनों में उन्हें 40 हजार रुपये का बिल दे दिया. इसे देखते ही घरवालों के होश उड़ गये. बिना पैसे जमा कराये अस्पताल प्रबंधन मरीज को छोड़ने को तैयार नहीं था.
तब लाचार पिता ने पटना में रिश्तेदारों से कर्ज लेकर किसी तरह 20 हजार रुपये दिये. इसके बाद भी अस्पताल प्रबंधन ने मरीज को नहीं छोड़ा. परिजन मरीज को सरकारी अस्पताल में ले जाना चाहते थे. पिता ने अगमकुआं थाने में इसकी शिकायत की, पर उसकी नहीं सुनी गयी. परिजनों के हंगामे के बाद छोड़ा गया.
मेरे पास इतना पैसा नहीं है कि हम प्राइवेट अस्पताल में भरती कराते. यहां से हम जाना चाहते थे, लेकिन डॉक्टर जाने से मना कर रहे थे. रोजाना पैसों की डिमांड कर रहे थे. हम लोगों ने इसकी शिकायत थाने में भी की, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. हमने एंबुलेंस वाले को आइजीआइएमएस अस्पताल ले जाने के लिए कहा था, लेकिन वह हमें झांसा देकर इस प्राइवेट अस्पताल में ले आया.
मदन मोहन प्रसाद, मरीज के पिता
ड्राइवर ने कहा, आइजीएमएस में सीट फुल है
जब 108 नंबर एंबुलेंस पर फोन किया गया, तो वह राजेंद्र नगर में आया. हम लोगों ने आइजीआइएमएस में जाने को कहा, लेकिन एंबुलेंस चालक ने वहां पर सीट फुल होने की बात कह जीवन ज्योति अस्पताल में भरती करा दिया.
कमला सिन्हा, मरीज की बूआ
अब तक नहीं मिली है कोई सूचना
इसकी सूचना अब तक मेरे पास नहीं आयी है. लेकिन, एंबुलेंस चालक का गाड़ी नंबर या फिर नाम मिल जाये, तो तुरंत कार्रवाई करुंगा. हालांकि 108 काल सेंटर से भी इसका पता लगा रहा हूं.
डॉ जीएस सिंह, सिविल सर्जन
चालक से संबंध नहीं
मेरा एंबुलेंस चालक से कोई संबंध नहीं और न ही मैं उसे रुपये देता हूं. हां, यह सच है कि चालक का फोन आया था. मरीज की स्थिति अधिक गंभीर बतायी गयी, तो मैं यहां लाने को कहा. कुल 38 हजार रुपये का बिल दिया गया, लेकिन उन लोगों ने 20 हजार रुपये ही दिये. मरीजों के लिखित आश्वासन के बाद हमलोगों ने मरीज को डिस्चार्ज कर दिया.
डॉ ज्योति रंजन, एमडी जीवन ज्योति अस्पताल
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