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डाक और इ-मेल से भी दर्ज कराएं शिकायत
लोक शिकायत निवारण अधिनियम पटना : बिहार में लोक शिकायत निवारण अधिनियम के लागू हो जानेके बाद लोगों को अपनी शिकायतों को सुलझाने के लिए दर दर नहीं भटकना पड़ेगा. शिकायतों को दर्ज करने केलिए उन्हें अनुमंडल में बने सेंटर तक आने की जहमत भी नहीं उठानी पड़ेगी, बल्कि पत्र लिखकर, मोबाइल से एसएमएस कर, […]
लोक शिकायत निवारण अधिनियम
पटना : बिहार में लोक शिकायत निवारण अधिनियम के लागू हो जानेके बाद लोगों को अपनी शिकायतों को सुलझाने के लिए दर दर नहीं भटकना पड़ेगा. शिकायतों को दर्ज करने केलिए उन्हें अनुमंडल में बने सेंटर तक आने की जहमत भी नहीं उठानी पड़ेगी, बल्कि पत्र लिखकर, मोबाइल से एसएमएस कर, इ-मेल के जरिये व ऑनलाइन पाेर्टल के साथ कॉल सेंटर पर भी शिकायत दर्ज कराने की सुविधा मिलने जा रही है. यानी ऑनलाइन ही कहीं से कभी भी अपनी शिकायत दर्ज करायी जा सकती है, जिस पर समय सीमा के अंदर समाधान मिलने की गारंटी होगी.
हर शिकायत पर आपको शिकायत का रीसिविंग नंबर दिया जायेगा. अनुमंडल में बने लोक शिकायत निवारण केंद्रके काउंटर पर आवेदन की रीसिविंग मिलेगी. साथ ही बाकी माध्यमों में प्राप्त शिकायतों को उसी माध्यम के जरिये रीसिविंग दी जायेगी. जैसे डाक, एसएमएस, इ-मेल और ऑनलाइन की शिकायत इन्हीं माध्यमों के जरिये मिलेगी.
60 दिनों में समस्याएं दूर
लाेक सेवाओं का अधिकार अधिनियम के तहत 60 दिनों के अंदर शिकायतों को निबटारा किया जायेगा. यदि एेसा नहीं हुआ तो फिर संबंधित अधिकारी को पांच सौ रुपये से पांच हजार रुपये तक का जुर्माना अपनी जेब से देना होगा. आपकी शिकायत मिलने के बाद संबंधित लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी को ट्रांसफर कर दिया जायेगा.
इसके बाद सात दिनों के अंदर इसकी सूचना आपको मिल जायेगी. प्रत्येक लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी इस अधिनियम के तहत मिलनेवाली शिकायतों पर सप्ताह में एक दिन सुनवाई के लिए निश्चित करेेंगे और इसकी सूचना भी सार्वजनिक की जायेगी. आपको अपने दावे के समर्थन में कागजात प्रस्तुत करना होगा. इसके बाद 60 दिनों के अंदर निर्णय दिया जायेगा. निर्णय नहीं होने पर पहली अपील और फिर दूसरी अपील में जाने की भी आजादी रहेगी.
इसका रखें ध्यान
लोक शिकायत निवारण अधिनियम के तहत चार मामलों में किसी प्रकार की शिकायत नहीं दर्ज की जायेगी. इसमें पहले से बने कानून के तहत आनेवाली शिकायतें शामिल हैं. इसमें सूचना का अधिकार अधिनियम, लोक सेवाओं का अधिकार अधिनियम, सरकारी नौकरी और कोर्ट से संबंधित मामले शामिल हैं. आरटीआइ और आरटीपीएस में पहले से सजा का प्रावधान रहने के कारण वह इस श्रेणी से पूरी तरह बाहर है.
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