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यूपीएससी में दिखी ”बिहारी प्रतिभा” की धमक

हाल के वर्षों में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा के पैटर्न में बदलाव के कारण इसमें सफल होनेवालों में बिहार के छात्रों की संख्या कम होती गयी. लेकिन, इस बार के रिजल्ट में एक बार फिर बिहार के छात्रों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. टॉप 10 में दो बिहार के छात्र हैं. इसके […]

हाल के वर्षों में यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा के पैटर्न में बदलाव के कारण इसमें सफल होनेवालों में बिहार के छात्रों की संख्या कम होती गयी. लेकिन, इस बार के रिजल्ट में एक बार फिर बिहार के छात्रों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है. टॉप 10 में दो बिहार के छात्र हैं. इसके अलावा कई ने 100 के अंदर रैंक हासिल किये हैं.
बचपन से ही लगन से करता था स्टडी
बचपन से ही जब वह स्टडी करता था तो पूरे लगन से करता था. स्कूल हो या कॉलेज या फिर आइआइटी हर जगह उसने अपनी सफलता को हासिल किया. यह कहना है यूपीएससी में 35वां रैंक हासिल करने वाले कुमार आशीर्वाद के पिता अरुण कुमार मिश्रा का. मूल रूप से बिहार के गोपालगंज जिले के रहने वाले अरुण रांची में चीफ इंस्टपेक्टर ऑफ फैक्टरीज के पद पर कार्यरत हैं, जबकि मां संगीता मिश्रा हाउसवाइफ हैं. बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा आशीर्वाद के बड़े पापा हैं.
अरुण कहते हैं, 10वीं व 12वीं जमशेदपुर के लिटिल फ्लावर स्कूल से पूरी की और उसके बाद आइआइटी की तैयारी की. 2012 में आइआइटी से स्टडी पूरी करने के बाद वह मुंबई चला गया. वह बताते हैं, आशीर्वाद का एक भाई आइआइटी खडगपुर से ही बीटेक कर रहा है जबकि बहन सिंबायोसिस कॉलेज, पुणे से लॉ कर रही है. वह कहते हैं, कोचिंग देने के बाद वह केवल अपनी स्टडी पर ध्यान देता था. रिजल्ट आने के पहले ही आशीर्वाद को यकीन था कि वह टॉप सौ में आयेगा और उसने इस बात को पूरा कर दिखाया.
कोचिंग नहीं, घर पर ही रह कर पढ़ाई की
कर्ण सत्यार्थी ने सिविल सर्विसेज मुख्य परीक्षा 2015 का नौवां रैंक हासिल किया है. श्री सत्यार्थी आइआइटी खड़गपुर से माइनिंग इंजीनियरिंग में बीटेक हैं. इन्होंने दूसरे प्रयास में यह सफलता हासिल की. वर्ष 2014 की परीक्षा में 19 अंक से पीछे रह जाने के कारण सफलता नहीं मिली थी. कर्ण सत्यार्थी के पिता प्रफुल्ल शर्मा बीआइटी सिंदरी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं.
माता तनुजा शर्मा, पिता प्रफुल्ल व बहन डॉ आकांक्षा शर्मा खुशी से फूले नहीं समा रहे थे. कर्ण कहते हैं, ‘मुझे अपनी प्रतिभा व मेहनत पर पूरा विश्वास था. दोबारा कोशिश से वह सफलता मिली, जो अपेक्षा से कहीं अधिक है. जब दूसरी बार परीक्षा में बैठा तो यह विश्वास था कि सौ रैंक तक हासिल हो जायेगा, लेकिन नौवां रैंक मिलेगा, इसकी उम्मीद नही थी.’ कर्ण सत्यार्थी की बहन आकांक्षा शर्मा डेंटल चिकित्सक हैं. आकांक्षा उनकी रोल मॉडल हैं. कर्ण कहते हैं, ‘अपनी इस सफलता का श्रेय सबसे पहले अपने माता-पिता के साथ बड़ी बहन को देना चाहता हूं, जिन्होंने पढ़ाई में हमेशा मेरा साथ दिया.
आगे बढ़ने का जज्बा पैदा किया. बहन ने मणिपाल से मेडिकल किया है. मेहनत व लगन के साथ पढ़ाई करने की मुझमें सीख डाली. यह याद नहीं कि कभी इस बारे में बोलने का किसी को अवसर दिया हो. कर्ण की प्रारंभिक पढ़ाई डी-नोबिली स्कूल डिगवाडीह से हुई. वर्ष 2007 में दसवीं यहीं से की. 12वीं सिंदरी के लायंस पब्लिक स्कूल से की. आइआइटी खड़गपुर से वर्ष 2014 में से पासआउट हुए. कहीं नौकरी करने की बजाय घर से ही यूपीएससी की तैयारी में जुट गये. कहते हैं, ‘यूपीएससी ही नहीं, ज्वाइंट इंट्रेंस के समय से मैंने कभी कोचिंग नहीं ली. घर पर ही रहकर नियमित पढ़ाई की.
हर रोज करता था 12-13 घंटे तक पढ़ाई
पहले प्रयास में जब इंटरव्यू तक पहुंचा और उसके बाद निराशा हाथ लगी तभी सोच लिया था कि अगली बार और बेहतर तरीके से प्रयास करूंगा और अपने परिवार को गर्व की अनुभूति दिलाऊंगा. यह कहना यूनियन पब्लिक सर्विस कमीशन में 392वां रैंक को हासिल करने वाले अभिषेक नारायण सिन्हा का. प्रभात खबर से बातें करते हुए अभिषेक कहते हैं कि मैं अपने घर का पहला ऐसा सदस्य हूं, जिसे यूपीएससी में सफलता हासिल करने में कामयाबी मिली है.
मूल रूप से गया जिले के खिजरसराय के रोहनियां के रहने वाले अभिषेक कहते हैं, 2004 तक दसवीं तक की स्टडी उन्होंने खिजरसराय में ही की. इसके बाद आगे की स्टडी के लिए 2006 में बीएन कॉलेज पटना में एडमिशन लिया और यहीं से जेइइ को क्रैक करने के बाद आइआइटी गुवाहाटी चले गये जहां उन्होंने 2011 में बीटेक की डिग्री को हासिल किया. अभिषेक के पिता जयराम शर्मा हाइस्कूल के रिटायर्ड टीचर है जबकि मां पुष्पा कुमारी गृहिणी हैं. तीन भाई-बहनों वाले अभिषेक कहते हैं, हर रोज करीब 12-13 घंटे तक की स्टडी की. उसी में प्रैक्टिस भी करता था.
चौथी बार में मिली सफलता
दरभंगा जिले के रनबे गांव के मूल निवासी सौरभ दास को यूपीएससी की परीक्षा में 123वां स्थान मिला है. रिजल्ट पर संतोष व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा कि इसका पूरा श्रेय मेरी मां रंजना दास और पिताजी प्रमोद कुमार दास को जाता है. सौरभ के पिता नेशनल इंश्योरेंस में कलर्क के पद पर काम करते हुए सेवानिवृत हो चुके हैं. सौरभ को यह उपलब्धि चौथी बार में मिली है.
दूसरी बार में मिली सफलता
पटना निवासी अनीस दासगुप्ता को यूपीएससी की परीक्षा में 74वां रैंक मिला है. यह उपलब्धि दूसरी बार में ही मिल गयी. अनिश आइआइटी कानपुर से इंजीनियरिग की पढ़ाई पूरी करने के बाद एंथ्रोपोलोजी विषय से आइएएस की परीक्षा में सफलता प्राप्त की है. श्री दास गुप्ता के पिता जयंत दास गुप्ता बिहार के कैडर में आइएएस थे.
तीसरे प्रयास में आया सुखद परिणाम
यूपीएससी में 492वां रैंक हासिल कर के अंकित ने कामयाबी की इबारत काे लिखा है. पटना के बेली रोड स्थित सीडीए कॉलोनी के निवासी अंकित कहते हैं, पहले और दूसरे प्रयास में इंटरव्यू राउंड तक ही पहुंच पाया था. तीसरे प्रयास के लिए नये सिरे से फिर तैयारी की और सुखद परिणाम सामने आ गया. मंगलवार को रिजल्ट जारी होने के बाद ही अंकित के घर में हर्ष का माहौल हो गया. अंकित ने सफलता का श्रेय अपने पैरेंट्स और टीचर्स को दिया.
अपनी स्टडी के बारे में जानकारी देते हुए अंकित कहते हैं, 2005 में डीएवी खगौल से दसवीं को क्लियर करने के बाद 2007 में पटना साइंस कॉलेज में एडमिशन लिया. आइआइटी कानपुर में बीटेक में एडमिशन मिला. शुरू से ही मैथ को अपने प्रिय विषय के रूप में पसंद करने वाले अंकित कहते हैं, तब यूपीएससी की तैयारी शुरू किया तभी सोच लिया था कि मुख्य विषय के रूप में मैथ को रखूंगा. हर रोज करीब छह से आठ घंटे तक स्टडी करता था. अंकित के पिता विद्याकांत अमर बिजनेसमैन हैं और मां बीना दास गृहिणी हैं. अंकित के एक भाई आइएसबी हैदराबाद से एमबीए कर रहे हैं.
कड़ी मेहनत से कभी पीछे नहीं हटें
यूपीएससी में पटना के अनुपम शुक्ला को 10वां रैंक हासिल हुआ है. उन्हें यह सफलता तीसरे प्रयास में मिली है. ज्ञात हो कि अनुपम के पिता पीके शुक्ला वर्तमान में राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक हैं और प्रतिभा शुक्ला हाउसवाइफ हैं. अपनी सफलता के बारे में प्रभात खबर के साथ विशेष बातें करते हुए अनुपम ने बताया कि मूल रूप से वह यूपी के रहने वाले हैं लेकिन उनके पिता बिहार कैडर के आइएएस हैं. सफलता की बात पर कहते हैं कि अनुपम बताते हैं, चूंकि 2013 में वह यूपीएससी के तहत वन सेवा के लिये चुने गये थे लिहाजा उनको लखनऊ में ही पोस्टिंग मिली थी. एक तरफ सेवा और दूसरे तरफ आइएएस की तैयारी थी, क्योंकि वन सेवा मिलने के बाद भी वह और बेहतर के लिये उम्मीद करते थे.
वह कहते हैं, आम दिनों में ड्यूटी करने के बाद जो समय मिलता था, उसके बाद मिलने वाले समय और छुट्टी के दिनों को वह स्टडी के लिये रखते थे.10वीं रैंक हासिल करके वे आइएएस च्वॉइस मिलने के प्रति आश्वस्त अनुपम कहते हैं इस बार के प्रयास में उन्होंने अपने विकल्प में केवल आइएएस को ही दिया था. उन्होंने बताया कि दसवीं की स्टडी उन्होंने डीएवी मुजफ्फरपुर और बारहवीं को केंद्रीय विद्यालय, पटना से पूरा किया और उसके बाद ग्रेजुएशन को हिंदू कॉलेज, नयी दिल्ली से पूरा किया. यूपीएससी की तैयारी करने वाले अभ्यर्थियों को अनुपम की सलाह देते हुये कहते हैं कि वह कड़ी मेहनत करने से कभी भी पीछे नहीं हटे.
पहली बार में ही चखा सफलता का स्वाद
पटना के पोस्टल पार्क में रहने वाले निशांत कांत ने पहली बार में ही यूपीएससी में सफलता हुए. भाई के नक्शे कदम पर चलते हुए इन्होंने भी जॉब छोड़ कर यूपीएससी की तैयारी की. निशांत कहते हैं कि भाई से प्रेरणा लिया और उसमें भईया ने काफी मदद की. वह अभी नागालैंड कैडर में है. वह वहां असिस्टेंट कमिश्नर हैं. निशांत ने कहा कि पिता उमाकांत प्रसाद व माता वीणा देवी काफी खुश हैं. उनका दोनों बेटा यूपीएससी परीक्षा में सफल हुआ है. 2014 में बड़े भाई और 2016 में मेरी सफलता पर घर के लोग काफी खुश है.
मैंने एंथ्रोपॉलोजी विषय का चुनाव किया.
किसी भी काम के लिए लग्न होना चाहिए. पढ़ाई करने के लिए कोई समय नहीं है. जब समय मिले पढ़ाई करें. बेहतर रैंक के लिए अगले साल भी यूपीएससी की परीक्षा में बैठनी है. मैंने 2013 में इशन इंटरनेशनल स्कूल से 10वीं और 2005 में सायंस कॉलेज से इंटर की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद मैंने बायोटेक्नोलॉजी की पढ़ाई पूरी कर पूणे के एक आइटी कंपनी में जॉब किया. 2013 में मैंने जॉब छोड़ कर यूपीएससी की तैयारी में जुट गया. लगातार पढ़ाई जारी रही. जब मुझे लगा

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