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बच्चों ने लिख डाली राष्ट्रीय बाल नीति की बाल सुलभ किताब

पटना के कुछ बच्चों ने मिल कर एक किताब लिखी है. रोचक बात यह है कि यह किताब किस्से-कहानियों, कविताओं की नहीं है. यह राष्ट्रीय बाल नीति का सरल रूप है. जटिल कानूनी भाषा में तैयार की गयी इस सरकारी नीति को बच्चों ने ऐसा रूप दिया है कि इसे दूसरे बच्चे भी आसानी से […]

पटना के कुछ बच्चों ने मिल कर एक किताब लिखी है. रोचक बात यह है कि यह किताब किस्से-कहानियों, कविताओं की नहीं है. यह राष्ट्रीय बाल नीति का सरल रूप है. जटिल कानूनी भाषा में तैयार की गयी इस सरकारी नीति को बच्चों ने ऐसा रूप दिया है कि इसे दूसरे बच्चे भी आसानी से समझ सकें. यह किताब छप चुकी है और बहुत जल्द इसका विमोचन होनेवाला है.
पुष्यमित्र
पटना : pushyamitra@prabhatkhabar.in
दो-तीन साल पहले की बात है. एक कार्यशाला में कुछ संस्थाओं के लोग बच्चों से जानना चाह रहे थे कि आम जीवन में उन्हें क्या-क्या परेशानियां आती हैं? इसी बातचीत के दौरान राष्ट्रीय बाल नीति, 2012 का भी जिक्र आया. बच्चे ने उस ड्राफ्ट को देखना चाहा. ड्राफ्ट की कानूनी भाषा इतनी जटिल थी कि बच्चों को कुछ भी ठीक से समझ नहीं आ रहा था.
वहां मौजूद एक बच्चे ने पूछ ही डाला कि ऐसी बाल नीति का क्या फायदा, जिसे हम बच्चे समझ ही न सकें. कार्यशाला में मौजूद एक सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, तो आप लोग ही क्यों नहीं इसे सरल बना लेते हैं. वहां मौजूद बच्चों ने इसे चुनौती के रूप में लिया और आज दो-ढाई साल की मेहनत के बाद यह किताब तैयार हो गयी है.
इस किताब को तैयार करनेवाले बच्चे बताते हैं कि यह सब करना आसान नहीं था. उन्हें न कानूनी शब्दों का ज्ञान था और न ही मालूम था कि ऐसी किताब कैसे लिखी जा सकती है.
मगर चूंकि उन्होंने तय कर लिया था, तो ऐसा करके दिखाना चाहते थे. इसके लिए सबसे पहले एक टीम बनी. इस टीम में कुछ ऐसे बच्चे शामिल किये गये, जिनकी लेखन शैली अच्छी थी और कुछ ऐसे बच्चे भी रखे गये, जिन्हें चित्र बनाता आता है. कुल मिला कर 21 बच्चों की टीम बनी. इनमें 17 बच्चे ऐसे हैं, जिनका भाषा ज्ञान बेहतर है, शेष चार बच्चे अच्छे चित्र बनानेवाले हैं.
ये तमाम बच्चे छठी कक्षा से 12वीं कक्षा तक के हैं. फिर इन्होंने कानूनी शब्दों की एक डिक्शनरी खरीदी और लगातार बैठकें कर राष्ट्रीय बाल नीति के ड्राफ्ट को समझने की कोशिश की. मगर जल्द ही उन्हें समझ में आ गया कि सिर्फ डिक्शनरी से बाल नीति को समझना आसान नहीं है. ऐसे में उनकी मदद यूनिसेफ और किलकारी संस्था के लोगों ने की. जहां-जहां जो बात समझ नहीं आ रही थी, वह उन्हें समझाया. साथ ही इस बात के टिप्स भी दिये कि ऐसी किताब कैसे लिखी जाती है.
डिक्शनरी की मदद और संस्थाओं के सहयोग से धीरे-धीरे बच्चों को बाल नीति समझ में आ गयी. और फिर उन्होंने झट से उसकी महत्वपूर्ण बातें लिख भी डालीं. मगर जब वे लिखित ड्राफ्ट को लेकर यूनिसेफ और किलकारी के सदस्यों को दिखाने ले गये, तो पता चला कि इसमें कई बातें नहीं लिखी गयी थीं, जो तकनीकी तौर पर तो जरूरी थीं, मगर बच्चों के लिए गैर जरूरी थीं. फिर संस्था के लोगों ने उन्हें समझाया कि जब हम कानून की जानकारी देते हैं, तो उसमें ऐसी चीजों को रखना जरूरी होता है.
इसके बाद बच्चों ने दुबारा कोशिश की और आखिरकार किताब तैयार हो ही गयी. यूनिसेफ की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता कहती हैं कि अब जो किताब तैयार हुई है, वह पढ़ने में भी सहज है और तकनीकी तौर पर भी सही है. यह किताब न सिर्फ बच्चों के समझने के लिए जरूरी है, बल्कि बड़े लोगों के लिए भी मददगार है, क्योंकि कानूनी भाषा को समझने में हर किसी को परेशानी आती है. बिहार के बच्चों ने जो यह किताब तैयार की है, उससे पूरे देश के बच्चे लाभ उठा सकते हैं.
रोचक बात यह है कि इस बाल नीति के आधार पर जो बिहार राज्य की बाल नीति को तैयार किया जा रहा था, उसमें इस टीम के कुछ बच्चों को भी सुझाव देने के लिए बुलाया गया. इन बच्चों ने कई सुझाव दिये और वह नीति भी अब बन कर तैयार है.
इस किताब को लिखनेवाली टीम
सरिता रानी, प्रियंवदा भारती, प्रियस्वरा भारती, रानी कुमारी, नाज़नीन खातून, यश रंजन, पवन राज, आकाश, मुनटुन राज, अभिनंदन गोपाल, आनंद राज, ऋषि राज, तुलसी लवली, वैष्णवी, प्रियंतरा भारती, सम्राट समीर, घुंघरू आनंद, चित्रण: रंजीत कुमार, मनीष मयंक, मो अमजद, सिद्धार्थ राज वर्मा.
राष्ट्रीय बाल नीति, 2012
2013 में केंद्र सरकार द्वारा पारित इस बाल नीति में ऐसे दिशा-निर्देश हैं, जिनके आधार पर सरकारों और संस्थाओं को बच्चों के मामलों को हैंडल करना है. इसमें ऐसे प्रावधान हैं, जिनके आधार पर बच्चों का बचपन सुरक्षित रखा जा सकता है. उन्हें बेहतर नागरिक बनने की दिशा में जो-जो सुविधाएं मिलनी चाहिए, उनका भी जिक्र है. इसके आधार पर हर राज्य को अपनी बाल नीति बनानी है, बिहार सरकार की बाल नीति का ड्राफ्ट भी बन कर तैयार है.

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