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यहां आग लगी, तो बुझाना होगा मुश्किल
अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, जिला प्रशासन व िनगम कार्यालयांे में आग से निबटने की व्यवस्था नाकाफी 44 डिग्री तापमान में निकली छोटी सी चिनगारी पल भर में बड़े-से-बड़े आशियाने को तबाह कर दे रही है. अगलगी की घटनाओं के चलते हर दिन लाखों-करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान हो रहा है. इस आकस्मिक तबाही से सुरक्षा […]
अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों, जिला प्रशासन व िनगम कार्यालयांे में आग से निबटने की व्यवस्था नाकाफी
44 डिग्री तापमान में निकली छोटी सी चिनगारी पल भर में बड़े-से-बड़े आशियाने को तबाह कर दे रही है. अगलगी की घटनाओं के चलते हर दिन लाखों-करोड़ों रुपये की संपत्ति का नुकसान हो रहा है. इस आकस्मिक तबाही से सुरक्षा और बचाव को लेकर राज्य सरकार ने आवश्यक निर्देश दिये हैं. इससे संबंधित चेतावनियां भी जारी की गयी हैं. मगर, सरकारी तंत्र ही इन चेतावनियों और निर्देशों से अनजान है.
बुधवार को प्रभात खबर टीम ने जिला प्रशासन और नगर निगम के दफ्तरों से लेकर सूबे के सबसे बड़े अस्पताल पीएमसीएच व पटना जंकशन रेलवे स्टेशन पर अग्निशमन सुरक्षा उपायों का जायजा लिया. इस दौरान हर जगह खामियां-ही-खामियां दिखाई पड़ीं. कहीं बिजली के खुले तार दुर्घटनाओं को आमंत्रण दे रहे हैं, तो कहीं आग लगने पर उससे बचाव को लेकर अग्निशामक उपकरणों की कमी दिखाई पड़ रही है. ऐसी व्यवस्था तब है, जब इन जगहों पर अगलगी की घटनाएं हो चुकी हैं. पढ़िए सुरक्षा से जुड़े इस मुद्दे पर प्रभात खबर टीम की यह रिपोर्ट.
कलेक्ट्रेट : फायर फाइटिंग सिस्टम का अभाव
कलेक्ट्रेट में फायर फाइटिंग सिस्टम का अभाव दिखाई देता है. कलेक्ट्रेट के एक हिस्से में जहां पर विकास भवन है, वहां अग्निरोधी सिलिंडर खूब दिखाई देते हैं, जबकि एक हिस्सा पूरी तरह इससे वर्जित है. यह हिस्सा पुरानी बिल्डिंग वाला है. इस बिल्डिंग में अभिलेखागार है. यहीं पर जिला नजारत, निर्वाचन कार्यालय, अनुभाजन के साथ आपूर्ति शाखा भी है. लेकिन, इस हिस्से में न तो पर्याप्त संख्या में सिलिंडर है और न ही कोई वैकल्पिक व्यवस्था. अभिलेखागार के पास तो एक छोटा सिलिंडर दिखाई देता है, लेकिन बाकी सब जगहों पर उसका भी अभाव है.
रेलवे स्टेशन : न फायर फाइटर, न अलार्म सिस्टम
रेलवे खुद के प्लेटफाॅर्म और स्टेशन को आग से बचाने के लिए तैयार नहीं है. पटना जंकशन, दानापुर स्टेशन, राजेंद्र नगर और पाटलिपुत्र स्टेशन पर आग लग जाये, तो उसे बुझाने के लिए रेलवे के पास कोई यंत्र या टीम नहीं है. इन स्टेशनों पर ऐसी कई मालगाड़ी आती-जाती है, जो तेल से भरी होती है. किसी भी प्लेटफॉर्म पर फायर फाइटर व अलार्म सिस्टम नहीं है. अधिकारियों के कमरे में लगे अग्निशमन यंत्र को ट्रेनिंग के अभाव में कोई चलाने वाला कोई नहीं है. यहां पानी की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गयी है, जोकि आग बुझाने के काम में लाया जा सके. कोई ऐसी टीम नहीं है, जोकि आग लगने के बाद उसपर कैसे नियंत्रण करें और तुरंत काम करें.
जिला निबंधन कार्यालय: ट्रेनिंग भी नहीं मिली
जिला निबंधन कार्यालय में न तो अग्नि से सुरक्षा के लिए समुचित यंत्र की सुविधा है और न ही इस संबंध में किसी को ट्रेनिंग दी गयी है. जिला निबंधन कार्यालय में 1795 से अबतक के 50 से 55 लाख दस्तावेज रिकॉर्ड रूम में रखे हैं. दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए बिजली कनेक्शन तक काट दिये गये हैं. कार्यालय में सात अग्निशमन यंत्र हैं. मगर इनमें कितने सही और कितने खराब हैं, इसकी पहचान कर पाना मुश्किल है. साथ ही इसके संचालन के लिए न कोई ट्रेनिंग दी गयी है और न ही यंत्रों की जांच की गयी है.
पीएमसीएच : अग्निशमन यंत्र हैं एक्सपायर
पटना मेडिकल काॅलेज अस्पताल में अगर आग लग जाये जान-माल की बड़ी हानि हो सकती है. यहां आग पर काबू पाने के सभी उपकरणों की स्थिति जर्जर हो चुकी है. पीएमसीएच के इमरजेंसी, स्टोर रूम, प्रसव कक्ष, आॅपरेशन थियेटर सहित अन्य जगहों पर अग्निशमन यंत्र लगाये गये हैं, लेकिन इनका रखरखाव ठीक नहीं है.
इनमें अधिकतर यंत्र या तो एक्सपायर डेट के हो गये हैं या फिर खराब हो चुके हैं. अस्पताल में इन सिस्टम को चलाने का प्रशिक्षण भी पिछले कई सालों से किसी को नहीं दिया गया है. दूसरी सबसे बड़ी परेशानी यहां बिजली के शॉर्ट सर्किट का बना हुआ है.
जिला शिक्षा कार्यालय : अग्निशमन यंत्र भी नहीं
वर्ष 1956 से संचालित जिला शिक्षा कार्यालय में दस्तावेजों से पूरा कार्यालय भरा पड़ा है. एक कमरे में सिर्फ दस्तावेज ही रखे हुए हैं. पर बंद कमरे में उन दस्तावेजों को सुरक्षित रखने के लिए एक अग्निशमन यंत्र भी नहीं है. एक यंत्र है भी तो वह भी ऐसे कोने में पड़ा है, जहां से आग लगने पर निकाला भी नहीं जा सकता है. अधिकारियों व कर्मियों से बात करने पर पता चला कि वहां पर किसी भी व्यक्ति को फायर एक्सिंगग्विशर चलाने का अनुभव तक नहीं है. उनको इसकी ट्रेनिंग तक नहीं मिली है. जिला शिक्षा कार्यालय का भवन भी काफी पुराना है.
नगर निगम ऑफिस: आग लगी,तो खोदेंगे कुआं
मौर्यालोक काॅम्प्लेक्स स्थित नगर निगम कार्यालय में रोज एक हजार से ज्यादा लोगों की आवाजाही होती है. यहां बायोमीट्रिक अटेंडेंस की मशीन तो मिल जाएगी, लेकिन अग्निशमन यंत्र काफी ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगा. सेकेंड फ्लोर, जहां मेयर और कमिश्नर का चैंबर है, उस पूरे गलियारे में दो ही छोटे सिलिंडर दिखाई पड़ते हैं.
वो भी काफी ढूंढ़ने के बाद. यदि दुर्घटना की आशंका बनी, तो फिर कुआं खोदने वाली स्थिति ही आएगी. क्योंकि हर ऑफिस परिसर में इतने सारे दस्तावेज हैं कि उनके लिए ज्यादा सिलिंडरों की आवश्यकता पड़ेगी. निगम में हर बार बजट बनाने को मशक्कत होती है, लेकिन परिसर की सुरक्षा को लेकर गंभीरता नहीं दिखती है.
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