पटना: एक स्वामी जो, 42 साल बाद पटना आया. सन 1971-72 का साल. राष्ट्रीय मानचित्र पर भारत और पाकिस्तान के बीच लड़ाई और बांग्लादेश का उदय. इसी दौरान अमेरिका के शिकागो का एक युवक अध्यात्म की खोज में ग्रीस क्रीक को पार कर पाटलिपुत्र की धरती पर आया था. पटना पहुंचने पर उसकी मुलाकात कलेक्ट्रियट घाट पर साधु रामसेवक स्वामी जी से होती है. दोनों एक दूसरे की भाषा से अनजान.
अमेरिका से आया युवक और ठेठ गंवई अंदाज के साधु रामसेवक स्वामी. पर, भाषा दोनों के बीच दीवार नहीं बनी. दोनों ने एक-दूसरे को मन से पहचाना और फिर चल उठा संवादों का दौर. संवाद की इस कड़ी में साथ दिया पटना के ही नारायण पसाद अंबष्ठ ने. नारायण, साधु रामसेवक दास और राधानाथ के बीच ट्रांसलेटर की भूमिका निभाते रहे. उसी जगह पर शुक्रवार को राधानाथ स्वामी करीब साढ़े 42 वर्ष बाद अपने अतीत को याद कर रहे थे. सामने उस पुराने मंदिर को देख स्वामी अपने को रोक नहीं पाये.
दंडवत प्रणाम किया
गुरु रामसेवक स्वामी को याद कर उन्होंने उस स्थान को दंडवत प्रणाम किया, जिसे वह 42 वर्ष पूर्व छोड़ गये थे. घंटों मंदिर को निहारते रहे. स्वामी ने कहा, उस समय मिट्टी और रेत से भरे घाट थे. अब पक्का चबुतरा बन गया है. सामने चबुतरे पर खड़े उत्तर की ओर मुंह कर घंटों गंगा नदी को निहारते रहे. गंदगी ही सही, पर स्वामी की नजरों में यह वही गंगा है, जिसके तट पर वह घंटों अपनी अध्यात्मिक भूख मिटाया करते थे.
वर्षो पुरानी डायरी निकाली
राधानाथ स्वामी ने गुरुवार की रात अपनी वर्षों पुरानी डायरी निकाली, जिसमें उनके गुरु भाई नारायण प्रसाद का पता इंगित था. स्वामी स्थानीय लोगों से रामसेवक स्वामी और नारायण प्रसाद के बारे में जानकारी चाहते थे. उनकी नजरें मंदिर में अपने गुरु को खोज रही थी. स्मृतियों में खोये राधानाथ स्वामी के साथ उनके चुनिंदा शिष्य थे. स्वामी ने मद्बिम स्वर में शिष्यों के संग जब हरे राम-हरे कृष्ण गाना प्रारंभ किया तो ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानो हम पटना में नहीं बल्कि बनारस और वृंदावन में बैठे हों. कलेक्ट्रियट घाट पर विचरने वाले आवारा लड़कों, उन्मुक्त घूमते छोटे बच्चों और रोजाना काम के सिलसिले में आये लोगों के लिए यह अद्भुत दृश्य था. एक विदेशी, जिस भक्ति भाव में डूब कर हरे राम और हरे कृष्णा के गायन में रमा था, वैसे बोल तो अब मंदिर में नहीं गूंजते.
42 वर्षो में सब कुछ बदला
इन 42 वर्षों में कलेक्ट्रियट घाट पर सब कुछ बदल चुका था. जिस मंदिर के चबुतरे के उपर कभी घंटों अध्यात्म पर बातें हुआ करती थी, उसके आकार बदल चुके थे. मंदिर में स्थापित देवताओं की मूर्ति बदल चुकी थी. गंगा के वे घाट बदल गये थे. स्वामी के मन में उथल-पुथल चल रही थी. 42 वर्ष पहले 1971-72 का साल. यहां सौ लोग गंगा स्नान करने आते थे. पर, अब वह लोग कहां हैं, वह भीड़ कहां है. गंगा की वह तेज धार भी नहीं दिख रही.
नाइस ड्रेनेज
एक वरिष्ठ पत्रकार ने कहा- नदी तो ड्रेन बन गयी है. स्वामी जी ने छूटते ही कहा – नाइस ड्रेनेज. यानी सुंदर नाला. स्वामी जी ने गंगा के प्रति उस आस्था को देखा था, जब कोई अनायास गंगा तट तक आता, तो स्नान किये बिना नहीं लौटता. आज सब कुछ बदल चुका था. बढ़ती आबादी, आम आदमी पार्टी और कुछ चर्चित स्वामियों पर भी चर्चा चली. अंत में स्वामी जी ने कहा -पटना सुंदर जगह है, यहां के लोग भी सुंदर हैं.