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ऐतिहासिक फैसला : होटल से रेस्टोरेंट-बार तक शराब बंद

पटना : राज्य सरकार ने पूर्ण शराबबंदी का ऐतिहासिक फैसला लिया है. राज्य में देशी, मसालेदार और विदेशी शराब के उत्पादन और बिक्री और पीने -पिलाने पर अब पूरी तरह रोक लगा दी गयी है.यह निर्णय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में मंगलवार को कैबिनेट की हुई बैठक में लिया गया. बैठक के बाद मुख्यमंत्री […]

पटना : राज्य सरकार ने पूर्ण शराबबंदी का ऐतिहासिक फैसला लिया है. राज्य में देशी, मसालेदार और विदेशी शराब के उत्पादन और बिक्री और पीने -पिलाने पर अब पूरी तरह रोक लगा दी गयी है.यह निर्णय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अध्यक्षता में मंगलवार को कैबिनेट की हुई बैठक में लिया गया. बैठक के बाद मुख्यमंत्री ने खुद मीडिया को इसकी जानकारी दी. उन्होंने कहा कि सरकार ने एक अप्रैल से ग्रामीण इलाके में विदेशी समेत देशी और मसालेदार शराब पर प्रतिबंध लगा दी थी और शहरी इलाके में सिर्फ विदेशी शराब की बिक्री की अनुमति दी थी.

लेकिन, चार दिनों में ही शराब के खिलाफ पूरे प्रदेश में जिस प्रकार वातावरण बन गया, उससे सरकार ने पूर्ण शराबबंदी का फैसला लिया है. कैबिनेट की बैठक के तत्काल बाद उत्पाद विभाग ने इसकी अधिसूचना भी जारी कर दी. मुख्यमंत्री ने कहा कि किसी भी जगह, नगर निगम हो या नगर पर्षद, कहीं भी बिवरेज कारपोरेशन की ओर से खुलनेवाली दुकानें अब नहीं खोली जायेंगी. जो दुकानें खुल गयी थीं, उन्हें भी बंद कर दिया गया है.
सिर्फ मिलिट्री कैंटीन को इससे मुक्त रखा गया है नीतीश कुमार ने बताया कि किसी हाेटल, बार या रेस्टोरेंट में भी शराब नहीं बिकेगी और किसी को इसका लाइसेंस नहीं दिया जायेगा. संपूर्ण राज्य में शराब की थोक और खुदरा बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया है.
इसे मंगलवार से ही ततकाल प्रभाव से लागू कर दिया गया. मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार को बिहार उत्पाद संशोधन अधिनियम 2016 की संपूर्ण प्रदेश में विदेशी शराब का कारोबार, बोतल बंदी, बिक्री और उपयोग करने पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार प्राप्त है. इसी अधिनियम के तहत पूर्ण शराबबंदी लागू की गयी है.
एक अप्रैल से विदेशी शराब की थोक और खुदरा कारोबार करनेवाली सरकार की एजेंसी बिहार राज्य बिवरेज काॅरपोरेशन के पास उपलब्ब्ध शराब की बोतलों को नष्ट करने के लिए एक समेकित योजना बनायी गयी है. फिलहाल काॅरपोरेशन के पास 36 हजार लीटर विदेशी शराब है. मुख्यमंत्री ने कहा कि आम लोगों के पास रखी विदेशी शराब की बोतलों को नष्ट करने के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह गया है. उत्पाद विभाग को इन शराबों को नष्ट करने की रूपरेखा तैयार करने को कहा गया है.
उन्होंने कहा कि शराब कोई अार्काइब में रखने की चीज तो है नहीं, किसी इंडिविजुअल (व्यक्ति) के पास भी है, तो उन्हें नष्ट कर देना चाहिए. मुख्यमंत्री ने कहा कि शराब निर्माण करनेवाली कंपनियों के बिहार में फैक्ट्री खोलने के किसी भी प्रस्ताव को वह डिस्क्रेज करेंगे. उन्होंने कहा कि यहां जो कपंनियां कार्यरत हैं या कारखाना खोलना चाहती हैं, उन्हें यह जान लेना चाहिए कि यहां नाममात्र की भी खपत नहीं होगी. उन्हें अपने कारोबार के बारे में खुद निर्णय लेना चाहिए.
हम थकने वाले नहीं हैं
मुख्यमंत्री ने शराबबंदी को लेकर आम आदमी लेकर खासकर महिलाओं और युवक समेत मीडिया को भी अपना अभियान जारी रखने की सलाह दी. उन्होंने कहा, ऐसा नहीं हो कि पांच-सात दिन बाद अभियान चला कर ब्रेक लगा दी जाये. उन्होंने कहा कि हम थकनेवाले नहीं हैं.
सीधे माॅनीटरिंग कर रहे हैं. इसे और मजबूत किया जायेगा. बुलंद आवाज निकल कर आयी है. हम हृदय से खुश हैं. बहुत जल्दी हम दूसरे फेज में पहुंच गये हैं. बिहार एक उदाहरण बनेगा. जो पैसा शराब पर खर्च किया जा रहा था, वह जीवन स्तर सुधारने में खर्च होगा. लोग कह रहे हैं, मत खोलिए. वातावरण बन गया है.
महज चार दिनों के अंदर पूर्ण शराबबंदी का बन गया माहौल : नीतीश
पूर्ण शराबबंदी के लिए एक साल का इंतजार क्यों नहीं?
सरकार ने पहले चरण में एक अप्रैल से गांवों में सभी तरह की शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था. शहरी इलाके में सिर्फ सरकारी एजेंसी की ओर से खोली जानेवाली सीमित दुकानों में विदेशी शराब की बिक्री की अनुमति थी. तीन हजार से अधिक दुकानों को बंद कर सिर्फ 656 दुकानें खोलने की योजना थी. सरकार की योजना दूसरे चरण में शहरी इलाके में भी पूर्ण शराबबंदी लागू करने की थी. इसके लिए वातावरण का इंतजार किया जाना था.
लेकिन, जब बिवरेज काॅरपोरेशन द्वारा नगर निगम और नगर पर्षद क्षेत्र में शराब की दुकानें खाेले जाने की प्रक्रिया शुरू हुई, तो अधिकतर जगहों पर नागरिकों ने विरोध किया. हमें लगा कि वह माहौल, जिसका हम दूसरे चरण के लिए इंतजार कर रहे थे, वह तो चार दिनों में ही बन गया. इसलिए सरकार ने तत्काल इस मौन क्रांति की आवाज को समझा और तत्काल प्रभाव से पूर्ण शराबबंदी लागू कर दी.
यह राजनीतिक फैसला या जनभावना का आदर?
यह जनभावना का आदर करनेवाला फैसला है. पूर्ण शराबबंदी के लिए जनजागरण अभियान चलाया गया. जबरदस्त वातावरण बना. महिलाओं व बच्चों ने इस अभियान में सक्रिय भूमिका निभायी. स्कूली बच्चों ने अभिभावकों से शपथ पत्र लिया कि अब हम शराब नहीं पीयेंगे. 1.17 करोड़ लोगों ने शपथपत्र जमा किया. 84 हजार नुकक्ड़ नाटक हुए. सात लाख से अधिक नारे लिखे गये. यह साबित करता है कि सरकार का यह फैसला जनभावना का आदर करनेवाला है.
कैसे होगी शराबबंदी से आर्थिक नुकसान की भरपाई?
पिछले आठ-नौ साल में उत्पाद नीति से सरकार की आय बढ़ी. लेकिन, वैसी आमदनी अब नहीं चाहिए. लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव ज्यादा कीमती है. हमें इसे लाॅस के रूप में नहीं, बल्कि बहुत बड़े सोशल गेन के रूप में देखना चाहिए.
नयी उत्पाद नीति से विदेशी शराब पर प्रतिबंध कैसे लगेगा?
बिहार उत्पाद संशोधन अधिनियम, 2016 की धारा 19(4) में सरकार को पूरे राज्य में विदेशी शराब के निर्माण, बाेतलबंदी, वितरण, बिक्री और उपभोग पर प्रतिबंध लगाने की शक्ति प्राप्त है.
इस अधिनियम को विधानमंडल ने सर्वसम्मति से पारित किया है और राज्यपाल की मुहर के बाद कैबिनेट की भी मंजूरी मिल गयी है. इसके बाद अधिसूचना भी जारी कर दी गयी. इस के तहत राज्य सरकार पूरे राज्य में विदेशी शराब को प्रतिबंधित कर सकती है. इसकी अधिसूचना जारी होने के प्रभाव से राज्य में विदेशी शराब की थोक और खुदरा बिक्री पर रोक लग गयी है.
ताड़ी की बिक्री पर रोक लागू नीरा के उपयोग की होगी छूट
सरकार ताड़ी की बिक्री पर 1991 में लगी रोक को ही फिर से अमल में लायी है. 1991 में तत्कालीन सरकार ने ताड़ी के व्यापार को लेकर सूचना निर्गत की थी. इसके अनुसार ग्रामीण इलाके में हाट-बाजार, हाट-बाजार के प्रवेश द्वार, गांव की आबादी वाली जगह और सार्वजनिक स्थान के 50 मीटर के दायरे में किसी भी हाल में ताड़ी की बिक्री नहीं होगी.
शहरी इलाके में स्नानागार, स्कूल, अस्पताल,, धार्मिक स्थल के इर्द-गिर्द का इलाका, रेलवे स्टेशन और यार्ड व इसके आसपास का इलाका, अनुसूचित जाति और जनजाति के टोले के अतिरिक्त मजदूरों की काॅलोनी में भी ताड़ी की बिक्री नहीं होगी. शहरों में सार्वजनिक स्थान के सौ मीटर में ताड़ी की दुकान नहीं खुलेगी.
मुख्यमंत्री ने कहा कि ताड़ के उत्पाद गुणकारी हैं और इसे प्रमोट किया जायेगा. अगले सीजन से इसके लिए व्यापक प्रबंध किये जायेंगे. सरकार नीरा को प्रोत्साहित करेगी. उन्होंने कहा कि खादी ग्रामोद्योग भी नीरा को प्रोत्साहित करता है. उन्होंने कहा कि सूर्योदय के पहले की ताड़ के उत्पादों के लाभकारी गुण हैं. सरकार दूध के तर्ज पर सेल्फ हेल्प ग्रुप बनायेगा और जिस प्रकार कॉम्फेड दूध का कलेक्शन करता है, उसी प्रकार नीरा का कलेक्शन किया जायेगा. उसे प्रसंस्करित कर बोतलबंद के रूप में बाजार उपलब्ध कराया जायेगा. इसके लिए सरकार के स्तर पर वित्तीय प्रबंध भी किया जायेगा.
उन्होंने यह भी कहा कि ताड़ के व्यवसाय में लगे लोगों को सम्मानजनक रोजगार के अवसर मुहैया कराने के लिए विकास आयुक्त की अध्यक्षता में एक स्पेशल टीम गठित की गयी है. टीम में कॉम्फेड के प्रबंध निदेशक के अलावा उद्योग, वन एवं पर्यावरण विभाग के सचिव उत्पाद, पशु संसाधन, सहकारिता विभाग के प्रधान सचिव सदस्य रहेंगे. उद्योग विभाग इसका नोडल विभाग हाेगा. सरकार पूर्व की तरह नीरा को बढ़ावा देगी.
मुख्यमंत्री ने तमिलनाडु का हवाला देते हुए कहा कि वहां देश में सबसे अधिक ताड़ के पेड़ हैं. वहां ताड़ के उत्पादों को लेकर गहन अनुसंधान हुआ है. आइसीएआर और वहां से जुड़े सबसे बड़े वैज्ञानिक से संपर्क किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि एक ताड़ के पेड़ से कोई भी आदमी सम्मानजनक तरीके से सालाना छह हजार रुपये से अधिक की कमाई कर सकेगा. ताड़ी के व्यवसाय में लगे लोगों को सम्मानजनक रोजगार के अवसर मिले, ऐसी व्यवस्स्था की जायेगी. एक साल मेहनत की जायेगी और अगले साल वैशाख महीने से इसे लांच किया जायेगा.
जागरूकता व कार्रवाई
यहां से निकली आवाज अन्य प्रदेशों में भी पहुंचेगी
नीतीश कुमार ने कहा कि पड़ोसी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को हमने पत्र लिख कर पूर्ण शराबबंदी के निर्णय से अवगत करा दिया है. यहां के मुख्य सचिव, डीजीपी और उत्पाद विभाग के सचिव भी लगातार उनके संपर्क में हैं.
यह पूछे जाने पर कि पड़ोसी राज्यों की सीमाओं पर शराब की दुकानें खुल रही हैं, नीतीश ने कहा कि वो गलफत के शिकार हैं. यहां से निकलनेवाली आवाज वहां भी पहुंचेगी.
उन्हें भी ऐसा निर्णय लेना ही होगा. वैसे हमने कोई लू-फाॅल्स नहीं छोड़ा है. मुख्यमंत्री ने कहा कि आठ-नौ वर्षों में उत्पाद नीति से राज्य की आमदनी बढ़ी है. लेकिन, हमें वैसी आमदनी नहीं चाहिए. लोगों के जीवन पर सकारात्मक प्रभाव पड़े, वह शराब की आमदनी से ज्यादा कीमती है. हम इसे लाॅस के रूप में नहीं देखते, यह बहुत बड़ा सोशल गेन है.
यह फैसला बिहार की तकदीर बदल देगा
पंकज मुकाती
राजनीति में दो तरह के लोग होते हैं, मैनेजर और लीडर. लीडर आदर्शवादी और भविष्य का चेहरा संवारना चाहते हैं. लीडर के सपने वक्त और आर्थिक हालात के साथ बदलते नहीं. एक तरह से वे समाज बदलने का काम करते हैं. मैनेजर वाले नेता दुनिया चलाना जानते हैं. ये आज में जीते हैं. कल के सपने दिखाते हैं.
मैनेजर के सपने आर्थिक हालात और वक्त के साथ बदल जाते हैं. वे मशीन प्रेरित व्यवस्था को तवज्जो देते हैं. कल-पुरजों को दुरुस्त कर उन्हें चालू रखते हैं. रफ्तार, वाहन, कल-पुरर्जों की मरम्मत, निर्माण पर ही इनका जोर रहता है. वे बदलाव के लिए रिस्क लेने के बजाय जो चल रहा है, उसी को रंगने की कोशिश करते हैं.
जबकि लीडर लोहे के इंजन के बजाय हाड़-मांस से बने मनुष्य के दिल, दिमाग, मन को दुरुस्त रखने की जिद में लगे रहते हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अब तक मैनेजर और लीडर के बीच की श्रेणी में थे. पांच अप्रैल, 2016 को पूर्ण शराबबंदी से वे पूरी तरह से लीडर की श्रेणी वाले नेताओं में शुमार हो गये. वैसे भी देश में इस वक्त मैनेजर श्रेणी वाले नेता ही ज्यादा है.
नीतीश कुमार ने हमेशा जनता के मन को पढ़ा है और वही फैसला किया, जो उन्हें भविष्य के लिए उचित लगा. लाभ-हानि से परे उन्होंने हमेशा वादा निभाया. विधानसभा चुनाव के पहले एक कार्यक्रम में एक अंजान महिला ने सवाल उछाला- शराब पर कुछ कीजिए. नीतीश ने तुरंत वादा किया, सरकार बनी, तो शराब बंद कर देंगे. एक साल से भी कम वक्त में यह वादा निभा दिया. यह एक महिला की नहीं, समाज की आवाज को समझने का नजरिया है. यही नजरिया नीतीश कुमार को देश के दूसरे नेताओं के सामने लीडर बनाता है.
नीतीश का यह फैसला बिहार जैसे राज्य के लिए साहसी कदम है. एक ऐसा राज्य, जो अपनी बड़ी आबादी, कमजोर आर्थिक हालात और केंद्र में हमेशा से दूसरे दलों की सरकार से अपने हक के लिए संघर्ष करता रहा है. विशेष पैकेज और विशेष राज्य के दर्जे की लड़ाई लड़ रहा है. ऐसे राज्य के लिए 5000 करोड़ का राजस्व खो देना आसान नहीं है. जयप्रकाश नारायण ने भी हमेशा पूर्ण शराबबंदी का नारा दिया. जेपी ने कहा था कि शराब गरीबों को बरबाद करती है और शराब से कमानेवाली सरकार अनैतिक है.
बिहार ने शराब की कमाई को खत्म कर जेपी के सपने को भी साकार किया. नीतीश कुमार ने खुद इसे सामाजिक बदलाव का एक टूल बताया. साथ ही कहा कि शराबबंदी एक तरह से बदलाव की क्रांति है. देशी शराब की बंदी के बाद मिली जनता की प्रतिक्रिया ने नीतीश को चार दिनों में ही पूर्ण शराबबंदी के लिए राजी कर लिया. आनेवाले वक्त में बिहार की छवि एक विकसित राज्य की होगी. इस फैसले पर एक सामान्य प्रतिक्रिया है, शराब तो बिकती ही रहेगी. गुजरात जैसे होम डिलीवरी होने लगेगी. संभव है कुछ फीसदी ऐसा हो. पर, इसका असली असर आनेवाले 10 सालों में दिखेगा.
10 साल बाद एक पूरी नयी पीढ़ी बिहार में होगी, जो शराबमुक्त होगी. वही पीढ़ी वाकई में बिहार की नयी परिभाषा गढ़ेगी. शराब से तीन पीढ़ियां प्रभावित होती हैं. शराबी अपने माता-पिता, पत्नी और बच्चों कई बार नाती, पोते तक की जिंदगी बरबाद कर देता है. शराबी अपने शरीर का तो नाश करता ही है. बच्चों की पढ़ाई, पत्नी के सुख, माता-पिता के अरमान को भी तबाह करता है. अपने जीवनकाल में वो कमाई शराब में लुटाता है.
बीमार होने पर बच्चे कर्ज लेकर इलाज कराते हैं, मौत के बाद बच्चे इसी कर्ज के चंगुल में अपना जीवन बरबाद कर देते हैं. नीतीश का यह फैसला चोरी, लड़कियों से छेड़छाड़, घरेलू हिंसा, अपराध और सड़क दुर्घटनाओं में भी कमी लायेगा. यह एक तीर से कई सुधारवाला मामला है.
नीतीश कुमार ने बिहार में महागंठबंधन बना कर नरेंद्र मोदी की जीत के रथ को रोका. उनका महागंठबंधन का आइडिया पहले मजाक बना, लेकिन आज कई राज्यों में छोटे दल इस पर काम कर रहे हैं. नीतीश कुमार ने शराबबंदी से कई और राज्यों को ऐसा करने का साहस दिया है.
वे राष्ट्रीय नेता के तौर पर स्थापित हो चुके हैं. उन्हें बिहार में अब कुछ साबित नहीं करना है. इसके पहले 21 अनुसूचित जातियों को साथ लेकर वे महादलित दर्जा बना चुके हैं, भ्रष्टाचार पर वार करते हुए अपराधियों की संपत्ति जब्त करके उन इमारतों में स्कूल-हॉस्पिटल खोल कर वे देश में नजीर बन चुके हैं. महिलाओं को पंचायत में 50 फीसदी आरक्षण औरलड़कियों के लिए साइकिल, स्कूल यूनिफाॅर्म जैसे बड़े कदमों की लंबी फेहरिस्त नीतीश के नाम है.
पर, शराब माफिया की मजबूत लॉबी से निबटना भी बड़ा टास्क है. उनकी ताकत किसी से छिपी नहीं है, कई राजनीतिक दलों का तो पूरा चुनाव खर्च ही ये माफिया उठाते रहे हैं. पुलिस और प्रशासन के साथ-साथ जनता को भी मुस्तैद रहना होगा. जनता यदि ठान लेगी और शराब और शराबियों के ठिकाने के पते बताने लगेगी, तो कोई ताकत बिहार में शराब को टिकने नहीं दे सकती. बिहार में शराबबंदी एक अच्छा कदम है, पर आर्थिक हालात और राजनीतिक तालमेल बनाये रखना भी बड़ी चुनौती होगी.
नीतीश कुमार का बढ़ता कद उन्हें कई नयी चुनौतियों से भी रू-ब -रू करायेगा. मैनेजर सोच वाले नेता का डिजाइन एक इंजीनियरिंग होती है, कोई परेशानी आने पर वो डिजाइन बदलने से भी नहीं चूकते, क्योंकि वो सिर्फ बाजार से जुड़े होते हैं, दिल से नहीं. असली लीडर दिल से सोचते हैं और उनके बनाये सामाजिक डिजाइन के लिए वे ईमानदार होते हैं.
अपने डिजाइन के लिए कुछ भी त्याग करने को राजी हो जाते हैं. इसीलिए लीडर कई बार एक्सिडेंट के शिकार भी हो जाते हैं, पर जब वे सफल होते हैं, तो समाज का एक सुंदर चेहरा सामने होता है. नीतीश इस शराबबंदी में सफल हो, इसलिए सभी बिहारियों को पक्का इरादा करना होगा.

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