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तीन साल से पहले लें जमीन के दस्तावेजों की मूल कॉपी

विभाग से स्वीकृति मिलते ही कर दी जाती है नष्ट पटना : बोरिंग रोड निवासी राजेश इन दिनों परेशान हैं. उनकी जमीन की रजिस्ट्री वर्ष 2002 में हुई थी. उसके बाद उन्होंने रजिस्ट्री की मूल कॉपी अब तक नहीं ली. अब वह मकान बनाने के लिए बैंक से लोन लेना चाह रहे हैं. पर, रजिस्ट्री […]

विभाग से स्वीकृति मिलते ही कर दी जाती है नष्ट
पटना : बोरिंग रोड निवासी राजेश इन दिनों परेशान हैं. उनकी जमीन की रजिस्ट्री वर्ष 2002 में हुई थी. उसके बाद उन्होंने रजिस्ट्री की मूल कॉपी अब तक नहीं ली. अब वह मकान बनाने के लिए बैंक से लोन लेना चाह रहे हैं. पर, रजिस्ट्री की मूल कॉपी नहीं होने के कारण उन्हें लोन नहीं मिल पा रहा है. मूल कॉपी के लिए वह इन दिनों वह रजिस्ट्री कार्यालय का चक्कर काट रहे हैं.
पर, रजिस्ट्री कार्यालय में तीन साल तक के ही रजिस्ट्री किये गये दस्तावेजों की मूल कॉपी रखी जाती है. इसके बाद उसे नष्ट कर दिया जाता है. इस तरह की समस्या से जूझने वाले राजेश अकेले नहीं हैं. ऐसे कई लोग हैं जो समय सीमा के अंदर मूल कॉपी लेने नहीं पहुंचते हैं और जब उन्हें इसकी जरूरत पड़ती है तब तक कॉपी नष्ट कर दी जाती है.
दो साल में भेजी जाती है सूची : निबंधन नियमावली के तहत रजिस्ट्री की गयी दस्तावेजों की मूल कॉपी तीन साल बाद नष्ट कर दी जाती है. दो साल बाद रजिस्ट्रार उन प्रतियों को नष्ट करने के लिए आइजी रजिस्ट्रेशन को स्वीकृति के लिए भेजते हैं.
आइजी रजिस्ट्रेशन की ओर से स्वीकृति मिलने पर उन प्रतियों का डीड नंबर नोट कर उन्हें जला दिया जाता है. उसकी बकायदा फाइल तैयार की जाती है, ताकि नष्ट की गयी प्रतियों की सूची रजिस्ट्री कार्यालय में उपलब्ध हो. यह प्रक्रिया प्रतिवर्ष दिसंबर माह में की जाती है. इसमें दो साल बाद उन दस्तावेजों की सूची आइजी रजिस्ट्रेशन को भेज दी जाती है. आइजी की स्वीकृति मिलते ही, रजिस्टर मेंटेन कर उसे तीसरे वर्ष नष्ट कर दिया जाता है.
पूर्व में मूल कॉपी के लिए करना पड़ता था इंतजार
पूर्व में रजिस्ट्री की मूल कॉपी के लिए महीनों तक इंतजार करना पड़ता था. रजिस्ट्री कार्यालय में ही लोगों की मूल कॉपी वर्षों तक रखी रहती थी. वर्तमान व्यवस्था के तहत लोगों को रजिस्ट्री के दो से तीन घंटे में मूल कॉपी भी उपलब्ध करा दी जाती है. इससे अब इससे लोगों को परेशानी नहीं हो रही है.
पर पूर्व में किये गये दस्तावेजों में कुछ मामले ऐसे हैं, जिनमें लोग मूल कॉपी नहीं ले जा सकें है. निबंधन कार्यालय के अनुसार कुछ दस्तावेज अभी भी निबंधन कार्यालय में रखे हुए हैं. जिन पर आइजी की स्वीकृति नहीं होने से नष्ट नहीं की जा सका है.

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