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शाही लेन के आस-पास ही कई अवैध निर्माण

मंत्री जी कब देंगे ध्यान. एसपी वर्मा रोड से महज एक किमी के दायरे में निगरानीवाद के बावजूद हुए कई अवैध निर्माण पटना : अवैध निर्माण की जांच के लिए विधान परिषद की कमेटी की घोषणा ने बिल्डरों की परेशानी बढ़ा दी है. ठीक से जांच हुई, तो दर्जन से अधिक ऐसे अवैध भवन सामने […]

मंत्री जी कब देंगे ध्यान. एसपी वर्मा रोड से महज एक किमी के दायरे में निगरानीवाद के बावजूद हुए कई अवैध निर्माण
पटना : अवैध निर्माण की जांच के लिए विधान परिषद की कमेटी की घोषणा ने बिल्डरों की परेशानी बढ़ा दी है. ठीक से जांच हुई, तो दर्जन से अधिक ऐसे अवैध भवन सामने आयेंगे, जिनका निर्माण निगरानीवाद चालू होने के बाद हुआ है. एसपी वर्मा रोड के शाही लेन के जिस अवैध भवन को लेकर सदन में हंगामा हुआ, उसकी परिधि के एक किमी के अंदर कई अवैध भवन पिछले एक-डेढ़ साल में तैयार हुए हैं. जबकि निगम ने जवाब दिया है कि हमने तो कोई नक्शा ही पास नहीं किया.
एसपी वर्मा रोड से महज 500 मीटर की दूरी पर ठीक डाकबंगला चौराहा के पास शॉपिंग कॉम्प्लेक्स बनाया जा रहा है. मेरिडियन कंस्ट्रक्शन व गणपति डेवपलर्स द्वारा बनाये जा रहे इस कॉम्पलेक्स पर वर्ष 2013 में निगरानीवाद केस दर्ज हुआ. इस केस की सुनवाई करते हुए तत्कालीन आयुक्त ने अगस्त 2014 में फैसला देते हुए इसके नक्शे को अवैध बताया व ऊपरी दो तल्ले व ग्राउंड फ्लोर के अवैध निर्माण को तोड़ने का आदेश दिया था. मामला ट्रिब्यूनल में लंबित होने के बावजूद इस डेढ़ साल में यह भवन पूरी तरह बन कर तैयार हो गया है. इसके निचले तल्ले की पार्किंग को तोड़ने की बजाय उसमें नया शोरूम भी खुल चुका है.
डाकबंगला चौराहा के ही बंदर बगीचा में संतोषा कॉम्प्लेक्स अपार्टमेंट के निवासी अवैध निर्माण के पीड़ित हैं. इसी अपार्टमेंट के सामने नूतन कॉम्प्लेक्स पर भी निगरानीवाद चल रहा है.
निगरानीवाद में आयुक्त कोर्ट से अवैध हिस्सा तोड़ने का आदेश मिलने के बावजूद यह भवन पूरी भव्यता के साथ बन कर तैयार है. हाइकोर्ट ने भी इस भवन के विरूद्ध आदेश दिया है, इसके बावजूद भवन में नाइट टू नाइन शॉपिंग मॉल के साथ ही बैंक्वेट हॉल व रेस्तरां भी चल रहा है. भवन की ऊंचाई व इसके सेट बैक को अवैध करार देते हुए इसको तोड़ने का आदेश दिया गया था.
आवासीय जमीन पर खड़ा किया होटल
एसपी वर्मा रोड से महज एक किमी की दूरी पर इंकम टैक्स चौराहा के पास तिरूपति बिल्डर द्वारा अवैध निर्माण किया गया है. यहां अावासीय भूखंड पर व्यावसायिक भवन निर्माण किये जाने का आरोप है.
इस पर वर्ष 2013 में निगरानीवाद दर्ज हुआ. वर्ष 2014 में तत्कालीन नगर आयुक्त ने इसके दो ऊपरी तल्ले व शेष फ्लोर के होटलनुमा संरचना को तोड़ने का आदेश दिया था. इसके विरोध में बिल्डर ट्रिब्यूनल गये, जहां पर नगर आयुक्त के आदेश को बरकरार रखा गया. अब मामला हाईकोर्ट में चला गया, जहां स्टे लगा हुआ है. लेकिन इस अवधि में बिल्डर ने पूरी संरचना खड़ी कर ली और फिलहाल यहां पर बड़ा होटल चल रहा है.
निगम-पुलिस की भूमिका संदिग्ध
अवैध निर्माण के मामले में नगर निगम व पटना पुलिस दोनों की भूमिका संदिग्ध है. इसको लेकर हमेशा आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहता है. निगरानीवाद में दर्ज मामलों पर कार्रवाई के मामले को लेकर नगर निगम के अधिकारी हमेशा पटना पुलिस पर सहयोग नहीं करने का आरोप लगाते हैं. निगम अधिकारियों का कहना है कि आदेश पारित होने के बाद अवैध निर्माण रोकने की जिम्मेवारी पुलिस की है. मगर वह अपनी भूमिका का निर्वाह नहीं करती. वहीं, पटना पुलिस खुद इस मामले से पल्ला झाड़ती नजर आती है.
उनका कहना है कि जब भी निगम प्रशासन अवैध निर्माण रोकने को सहयोग मांगता है, उसे दिया जाता है. पुलिस अधिकारी उल्टे नगर निगम अधिकारियों पर ही लापरवाही भरा रवैया रख कर अवैध निर्माण को प्रोत्साहित करने का आरोप लगाते हैं.
क्या है मामला
दरअसल विधान पार्षद नीरज कुमार ने 15 मार्च को विधान परिषद में पूछा था कि एक्जिबिशन रोड व फ्रेजर रोड में कितने अवैध निर्माण हो रहे हैं. इस पर नगर विकास मंत्री ने जवाब दिया कि एक भी अवैध निर्माण नहीं हुआ. मंत्री के इस जवाब पर उनके ही पार्टी के नेता पीके शाही ने सवाल उठाते हुए एसपी वर्मा रोड के शाही लेन में अवैध निर्माण की बात कही.
इसके बाद मंत्री ने नगर आयुक्त को गलत जवाब के लिए फटकार भी लगायी. फटकार के बाद आयुक्त ने पांच अभियंता व दो सफाई निरीक्षक सहित आठ लोगों की टीम बना कर इसकी जांच का आदेश दिया है. इस बीच 28 मार्च को दोबारा हुई चर्चा में विधान परिषद सभापति ने अवैध निर्माण मसले को गंभीर बताते हुए इसकी जांच के लिए विधान परिषद् कमेटी गठित करने का आदेश दिया है.
पटना : शास्त्रीनगर पोस्ट ऑफिस पथ पर सेवानिवृत आइएएस डॉ अभिमन्यु सिंह के भूखंड पर आरटेक इंजिनियर्स एंड कंस्ट्रक्शन प्रा लि द्वारा जी+4 तल्ला का भवन का बायलॉज का उल्लंघन कर निर्माण कार्य शुरू किया. इसको लेकर निगरानीवाद संख्या 177ए/14 दर्ज किया गया. नगर आयुक्त के कोर्ट में हुई सुनवाई में निर्माता ने पुख्ता साक्ष्य उपलब्ध नहीं कराये. मंगलवार को नगर आयुक्त ने अंतिम फैसला सुनाते हुए 30 दिनों के अंदर 1.76 लाख रुपये जुर्माने के रूप में जमा कराने का आदेश दिया.

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