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शिक्षा ने बदली तसवीर, नाबालिग बेटियों की शादी में 20% की आयी कमी

पटना: राज्य में शिक्षा का प्रसार-प्रसार हुआ, तो सामाजिक कुरीतियों पर अपने आप लगाम लगने लगी. बेटियों को साइकिल देकर स्कूल भेजने का असर यह हुआ है कि एक दशक में नाबालिग लड़कियों (18 साल से कम उम्र) की शादी में 21 फीसदी की कमी आयी है. वहीं, 21 वर्ष से कम उम्र के लड़कों […]

पटना: राज्य में शिक्षा का प्रसार-प्रसार हुआ, तो सामाजिक कुरीतियों पर अपने आप लगाम लगने लगी. बेटियों को साइकिल देकर स्कूल भेजने का असर यह हुआ है कि एक दशक में नाबालिग लड़कियों (18 साल से कम उम्र) की शादी में 21 फीसदी की कमी आयी है. वहीं, 21 वर्ष से कम उम्र के लड़कों की शादी में भी करीब सात फीसदी कमी आयी है. इसका खुलासा नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 (एनएफएचएस-4) में हुआ है.

सर्वे के अनुसार वर्ष 2005-06 में राज्य में 10 में छह (60%) लड़कियों की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती थी, जो 2015-16 में इसकी संख्या घट कर अब 39.1 फीसदी रह गयी है. शहरी क्षेत्र में तो नाबालिग लड़कियों की शादी महज 26.9 फीसदी रह गयी है. यह बदलाव महिलाओं की शिक्षा में 12 फीसदी वृद्धि होने से आया है. फैमिली सर्वे में उन महिलाओं का सर्वे किया गया, जिनकी शादी 18 वर्ष से कम में हुई थी.सर्वेक्षण के समय उनकी उम्र 20-24 वर्ष के बीच थी.


सर्वे के मुताबिक 2005-06 में नाबालिग लड़कों का आंकड़ा 47.2 फीसदी था, जो 2015-16 में घट कर 40 फीसदी रह गया है. कम उम्र में शादी कम होने का सकारात्मक असर आबादी नियंत्रण पर भी पड़ा है. राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक जीतेंद्र श्रीवास्तव ने बताया कि एक सप्ताह पहले एनएफएचएस-4 के आंकड़े प्राप्त हुए है. इसमें राज्य का सभी मानकों खासकर स्वास्थ्य मानकों में गुणात्मक बदलाव आया है. उन्होंने बताया कि वर्ष 2005-06 में एक दंपती औसतन चार संतानें पैदा करते थे. अब एक दंपती की औसतन संतानों की संख्या 3.4 हो गयी है. 15-19 वर्ष के बीच संतान पैदा करना या गर्भधारण करने की संख्या भी कमी आयी है. यह देखा गया है कि 10 वर्ष पहले जहां 15-19 वर्ष में मां बनने या गर्भधारण करनेवाली महिलाओं की संख्या 25 फीसदी थी, जो अब कम होकर आधी से भी कम 12.2 फीसदी रह गयी है.
कम उम्र में शादी की संख्या में कमी आने से नवजात मृत्यु दर में भी कमी आयी है. वर्ष 2005-06 एक हजार जीवित जन्म लेनेवाले कुल बच्चों में से 61 की मौत एक माह के अंदर हो जाती थी, जो घट कर प्रति हजार 48 रह गयी है. अपना पांचवां बर्थडे नहीं मनानेवाले बच्चों की संख्या एक दशक पहले जहां 84 होती थी, अब वह घट कर 58 रह गयी है. यह सभी परिवर्तन महिला साक्षरता में सुधार होने से हुआ है. सर्वेक्षण में पाया गया है कि 10वीं तक पढ़नेवाली लड़कियों की संख्या 10 वर्षों में 13.2 फीसदी से बढ़ कर 22.8 फीसदी हो गयी है.

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