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राज्य के सभी थानों में जल्द होगी उर्दू भाषा के जानकारों की नियुक्ति
घोषणा. तीन दिवसीय वीमेन उर्दू नेशनल कॉनक्लेव में मंत्री अब्दुल गफूर ने कहा पटना : राज्य के सभी पुलिस थाने में जल्द ही उर्दू जानकरों की बहाली होगी. सभी सरकारी व गैर सरकारी दफ्तरों में उर्दू अनुवादकों की बहाली प्रक्रिया शुरू हो गयी है. उर्दू की तरक्की के लिए सरकारी स्तर पर ही नहीं, बल्कि […]
घोषणा. तीन दिवसीय वीमेन उर्दू नेशनल कॉनक्लेव में मंत्री अब्दुल गफूर ने कहा
पटना : राज्य के सभी पुलिस थाने में जल्द ही उर्दू जानकरों की बहाली होगी. सभी सरकारी व गैर सरकारी दफ्तरों में उर्दू अनुवादकों की बहाली प्रक्रिया शुरू हो गयी है. उर्दू की तरक्की के लिए सरकारी स्तर पर ही नहीं, बल्कि हर मोरचे पर मुक्कमल कोशिश होगी. शुक्रवार को यह घोषणा प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री अब्दुल गफूर ने की. वे एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट में तीन दिवसीय वीमेन उर्दू नेशनल कॉनक्लेव में उद्घाटन भाषण दे रहे थे.
उन्होंने कहा कि उर्दू लिखने-पढ़ने और इसकी तरक्की के लिए सबको मिलजुल कर पहल करनी होगी. उर्दू बाहुल्य आबादीवाले गांवों में उर्दू अकादमी लाइब्रेरी खोले, यहां सरकार अपने स्तर पर उर्दू के अखबार मुहैया करायेगी. उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यक बच्चे-बच्चियों के लिए हर जिले में हॉस्टल खोलने वाला बिहार देश का पहला राज्य है, लेकिन अफसोस इस बात का है कि हॉस्टलों में बच्चे नहीं जुट रहे हैं. उन्होंने पूछा कि आखिर हम कहां खड़े हैं?
उर्दू को बिहार में दूसरा राजभाषा बनवाने के लिए गुलाम सरवर ने बड़ा आंदोलन किया. 1967 में उर्दू की खिदमत में पॉलिटकल अजेंडा बनाया. हर विधानसभा क्षेत्र में उर्दू का नुमाइंदा भी खड़ा किया, हालांकि सफलता नहीं मिली. वर्ष 1974-75 में उर्दू को दूसरी सरकारी जुबान का दर्जा मिला. उन्होंने कहा कि उन्हें यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि ऊर्दू की बदहाली के लिए उर्दू के नुमाइंदें ही जिम्मेवार हैं. इस मौके पर उन्होंने ‘कस्बेजात’ पुस्तक का विमोचन भी किया.
‘मुसलिम अौरतों को बराबरी का हक नहीं’
कर्नाटक उर्दू अकादमी की अध्यक्ष डाॅ फाजिया चौधरी ने कहा आज भी मुसलिम अौरतों को बराबरी का हक नहीं मिला है. कई मुल्कों में आज भी औरतों को कार चलाने की इजाजत नहीं है. औरतों को संपत्ति में एक, जबकि मर्दों को दो हिस्सा मिलता है. मजहब को छेड़ना मधुमक्खी के छत्ते को छेड़ने जैसा है, लेकिन हम कब तक खामोश बैठे रहेंगे? मर्दों ने हमें अब तक रुसवाई और गुलामी दी है. आज हमारे बच्चे बारूद की ढेर पर बैठे हैं.
मुसलिम औरतों को इंसान की हैसियत से जीने का मौका मिलना चाहिए. हमें मस्जिदों में इबादत करने का मौका मिलना चाहिए. कॉनक्लेव में बिहार उर्दू अकादमी के सचिव मुश्ताक अहमद नूरी और उपाध्यक्ष सुलतान अहमद ने भी अपने विचार रखे. कॉनक्लेव का संचालन शगुफ्ता यासमीन कर रही थीं.
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