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जीएम सरसों को बाजार में उतारने का किया विरोध

पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिख कहा है कि जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) बीज मामले में केंद्र सरकार को राज्यों से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेने के बाद ही इसका व्यावसायिक उपयोग की अनुमति देनी चाहिए. राज्यों से बिना पूछे इनका किसी स्थान पर फील्ड ट्रायल भी नहीं […]

पटना : मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर को पत्र लिख कहा है कि जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) बीज मामले में केंद्र सरकार को राज्यों से अनापत्ति प्रमाणपत्र लेने के बाद ही इसका व्यावसायिक उपयोग की अनुमति देनी चाहिए. राज्यों से बिना पूछे इनका किसी स्थान पर फील्ड ट्रायल भी नहीं होना चाहिए.
मुख्यमंत्री ने इस पत्र में मौजूदा संदर्भ में चल रहे सरसों की जीएम वेरायटी का विरोध करते हुए लिखा है कि देश में इसके व्यावसायिक प्रयोग की अनुमति कहीं से नहीं दी जानी चाहिए. केंद्रीय मंत्री को अपने स्तर से इसकी अनुमति देने से पहले राज्यों से इस मामले में उचित विचार-विमर्श कर लेना चाहिए. यह बहुत गंभीर मामला है, जिस पर राज्यों की राय-शुमारी बेहद जरूरी है. उन्होंने अंत में लिखा है कि इस मुद्दे पर उनके सकारात्मक जवाब का इंतजार रहेगा.
बिहार के लिए भी यह जरूरी : सरसों बिहार का सबसे प्रमुख तेलहन है और बिहार देश का प्रमुख मधु उत्पादक राज्यों में शामिल है. इन कारणों से जीएम सरसों का उपयोग राज्य के खेतों में नहीं होना चाहिए. राज्य सरकार सेऐसा करने के लिए किसी तरह का अनुरोध भी केंद्र को नहीं करना चाहिए. किसानों के हितों का ध्यान रखते हुए जीएम सरसो को अनुमति नहीं देनी चाहिए.
इसमें दिल्ली विश्वविद्यालय की भूमिका पर भी उठाया सवाल
मुख्यमंत्री ने पत्र की शुरुआत करते हुए लिखा है कि ऐसी जानकारी मिली कि सरसो की जीएम किस्म को देश में व्यावसायिक प्रयोग की अनुमति मिलने जा रही है. यह ज्यादा आश्चर्य की बात है कि दिल्ली विश्वविद्यालय इस तकनीक को बाजार में उतारने के लिए प्रयासरत है, जिसके लिए कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी प्रयास करती रही हैं. यह अभी तक समझ से परे है कि अगर दिल्ली विश्वविद्यालय ने इस तरह के किस्म को विकसित नहीं किया है, तो वह इसे किसानों के लिए क्यों उपलब्ध कराना चाहता है? जबकि वह एक पब्लिक संस्थान है. इससे तो यह प्रतीत होता है कि इस संबंध में जब इच्छुक पार्टियां किसानों का विश्वास जीतने में सफल नहीं हुईं, तो वे पब्लिक संस्थानों का सहारा लेकर देश के किसानों का विश्वास जीतने की कोशिश की जा रही है.
पौराणिक किस्म और जीएम में मतभेद
मुख्यमंत्री ने लिखा है कि पारंपरिक किस्मों की तुलना में जीएम किस्म को लेकर जो बढ़ा-चढ़ा कर दावे किये जा रहे हैं, उनमें भी बेहद मतभेद है. यह अप्रमाणिक तौर पर दावे किये जा रहे हैं कि इसकी उत्पादकता काफी ज्यादा और इसमें घास-फूस से लड़ने की भी क्षमता है. यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि मौजूदा आइसीएआर की किस्म की उत्पादकता 2.1 टन प्रति हेक्टेयर है. जबकि रेपसीड और सरसो की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 1.2 टन प्रति हेक्टेयर है. ऐसे में किसानों को उत्पादकता बढ़ाने के लिए उचित वेरायटी और तकनीक प्रदान करनी चाहिए.
रेपसीड और सरसो बहु उपयोगी फसल
रेपसीड और सरसो की महत्ता बताते हुए सीएम ने लिखा है कि यह एक बहु उपयोगी फसल है. जिसके पौधे का हर हिस्सा बेहद उपयोगी होता है. हरी पत्ती, बीज और पराग उपयोगी होते हैं. ताजी पत्तियां जहां साग खाने के काम में आती हैं, वहीं बीज से तेल और खल्ली निकलता है.
मधुमक्खी इसके पराग की मदद से बेहतरीन किस्म का मधु तैयार करती हैं. इस वजह से सरसो या रेपसीड के किसी किस्म से जुड़े अध्ययन को तब तक अंतिम मान्यता नहीं देनी चाहिए, जब तक इसका सही रूप से प्रभाव तेल और खल्ली में आने वाले बदलाव को ठीक से देख नहीं लिया जाता. पर्यावरण से जुड़े बदलाव का भी अध्ययन करना बेहद जरूरी है.
बिहार बीटी बैंगन का कर चुका विरोध
मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में बीटी बैगन की चर्चा करते हुए लिखा कि 2009 में फील्ड ट्रायल में इसे खारिज कर दिया गया था. कृषि वैज्ञानिकों एवं राज्य किसान आयोग ने भी इसे खारिज कर दिया था. 2011 में केंद्र सरकार ने बिना राज्य सरकार को सूचित किये बीटी बैगन का फील्ड ट्रायल करने का फैसला कर लिया.
बाद में मेरे द्वारा तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री से फोन पर बात किये जाने के बाद इसे रद्द किया गया. इसी तरह बीआरएल-2 बीज का ट्रायल करने को हमारी सरकार ने रद्द किया. कृषि विभाग 22 दिसंबर , 2011 को इसे खारिज किया था. इसके बाद मई, 2012 में एक गैर सरकारी एजेंसी के द्वारा बीटी मेज बीज का फील्ड ट्रायल की घोषणा की जानकारी मिली.

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