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इस ठंड में कम-से-कम एक झोंपड़ी तो बनाकर दे देते

पटना : चालीस साल की श्रद्धा देवी परेशान हैं. बिंद टोली में रहने वाली श्रद्धा की तीन बेटे और बेटियां हैं. उनका भी नाम यहां से कुर्जी में शिफ्टिंग वाली लिस्ट में है, उनकी सबसे बड़ी परेशानी है कि इस ठंड में सभी सामान ले जाना है और बच्चों को भी संभालना है. उनकी चाहत […]

पटना : चालीस साल की श्रद्धा देवी परेशान हैं. बिंद टोली में रहने वाली श्रद्धा की तीन बेटे और बेटियां हैं. उनका भी नाम यहां से कुर्जी में शिफ्टिंग वाली लिस्ट में है, उनकी सबसे बड़ी परेशानी है कि इस ठंड में सभी सामान ले जाना है और बच्चों को भी संभालना है. उनकी चाहत थी कि सरकार उन्हें नई जमीन पर झोपड़ी बना कर दे देती ताकि इस कड़ाके की ठंड में परेशानी नहीं हो.
उन्हीं की तरह नंदकिशोर महतो भी हैं जो ठंड से डरे हुए हैं.
सरकार चुपचाप बैठी हुई है : महिलाएं ज्यादा मुखर हैं, वे कह रही हैं कि वोट के दिनों में सब हाथ जोड़ने आते हैं लेकिन अभी कोई नहीं आ रहा है. सरकार चुपचाप बैठी हुई है और उन्हें कोई नहीं पूछ रहा है. पूर्व उपमुखिया शंभू महतो भी सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कह रहे हैं कि यहां 73 में बाढ़ आयी थी तो दस फीट से ज्यादा पानी था अब यही जमीन उन्हें दी गयी है. अब इस पर घर कैसे बनाएंगे, इस जमीन को भर देना चाहिए था और फिर हमें देना था. नंदकिशोर महतो, सुभाष महतो का भी यही कहना है कि यहां आशियाना बनाने में जद्दोजहद करनी होगी.
क्रांति महतो ने सबसे पहले लगायी झोंपड़ी : इन सबसे उलट जगरनाथ महतो का बड़ा बेटा क्रांति का कुछ और ही कहना है.
वह कहता है कि विरोध का भी अब क्या फायदा है? इसी जमीन पर हमें अब रहना है तो घर बनाने में देर नहीं करनी चाहिए. उसने सबसे पहले अपनी झोपड़ी यहां पर बनायी और कहने लगा कि इसी जमीन पर पहले बैंगन और गोबी उपजाते थे, अब यही जमीन उनकी अपनी हुई है लेकिन यहां शिफ्ट करने का समय बिल्कुल गलत है. गर्मी में यहां बसना होता तो इतनी परेशानी नहीं होती.

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