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बागी नरेंद्र व सम्राट की विप सदस्यता रद्द
बगावत पड़ी महंगी :विधान परिषद के सभापति कोर्ट का फैसला पटना : पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम राम मांझी के करीबी और आधिकारिक रूप से जदयू के बागी विधान पार्षद नरेंद्र सिंह और सम्राट चौधरी की बिहार विधान परिषद की सदस्यता समाप्त हो गयी है. लंबी सुनवाई के बाद बुधवार को विधान परिषद के सभापति अवधेश […]
बगावत पड़ी महंगी :विधान परिषद के सभापति कोर्ट का फैसला
पटना : पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम राम मांझी के करीबी और आधिकारिक रूप से जदयू के बागी विधान पार्षद नरेंद्र सिंह और सम्राट चौधरी की बिहार विधान परिषद की सदस्यता समाप्त हो गयी है. लंबी सुनवाई के बाद बुधवार को विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह के कोर्ट ने यह फैसला सुनाया. इस दौरान सदन में जदयू के मुख्य सचेतक संजय कुमार सिंह व पूर्व मंत्री पीके शाही और सम्राट चौधरी व नरेंद्र सिंह के वकील माैजूद थे. सम्राट चौधरी व नरेंद्र सिंह के खिलाफ जदयू के सदस्य होते हुए हाल ही संपन्न बिहार विधानसभा चुनाव में हिंदुस्तान अवाम मोरचा – सेक्यूलर (हम-एस) के लिए काम करने का आरोप था.
एक अन्य सदस्य शिवप्रसन्न यादव के खिलाफ भी सदस्यता समाप्त करने की सुनवाई चल रही है. फिलहाल श्री यादव बीमार चल रहे हैं और इसी आधार पर कारण बताओ नोटिस का जवाब देने के लिए मोहलत मांगी है. उनके मामले की सुनवाई 28 जनवरी को होगी. नरेंद्र सिंह का कार्यकाल 2018 में, जबकि सम्राट चौधरी का कार्यकाल 2020 में समाप्त होना था.
1974 के बिहार आंदोलन के नेता नरेंद्र सिंह पहली बार 2006 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के साथ विधान परिषद के सदस्य बने थे. इसके बाद 2012 में दूसरी बार जदयू के टिकट पर वह विधान परिषद के सदस्य निर्वाचित हुए. कभी नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के खास रहे नरेंद्र सिंह 2014 में जीतन राम मांझी की सरकार में भी मंत्री बने. इसके बाद उनकी गिनती मांझी खेमे के प्रमुख नेताओं में होने लगी. इस बार विधानसभा के चुनाव में उनके एक बेटे अजय प्रताप सिंह जमुई से भाजपा के टिकट पर, जबकि दूसरे बेटे सुमित कुमार सिंह चकाई से निर्दलीय लड़े. खुद नरेंद्र सिंह हम के प्रमुख प्रचारक रहे. इसी प्रकार िवधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष शकुनी चौधरी के बेटे सम्राट चौधरी राजद छोड़ कर जदयू में शामिल हुए थे. उन्हें मनोनयन कोटे से विधान परिषद का सदस्य बनाया गया. विधानसभा चुनाव में वह मांझी खेमें में रहे. इसी आधार पर जदयू ने उनकी सदस्यता समाप्त करने की अनुशंसा की थी.
महाचंद्र की सदस्यता पहले ही हो चुकी है रद्द
जदयू के मुख्य सचेतक संजय कुमार सिंह उर्फ गांधी जी ने सभापति सचिवालय को दो नवंबर, 2015 को लिखित रूप से नरेंद्र सिंह, सम्राट चौधरी, महाचंद्र प्रसाद सिंह, मंजर आलम और शिव प्रसन्न सिंह यादव की सदस्यता समाप्त करने का अनुरोध किया था.
इसके पहले सभापति सचिवालय ने पूर्व मंत्री महाचंद्र प्रसाद सिंह की सदस्यता समाप्त कर दी थी. उन्होंने थावे से हम के िटकट पर िवधानसभा चुनाव लड़ा था. दूसरी ओर सुनवाई के दौरान ही मंजर आलम ने सदन की सदस्यता से खुद ही इस्तीफा दे दिया था.
जदयू के अनुरोध पर सदस्यता हुई खत्म
इसके लिए सीएम को धन्यवाद : सम्राट
सदस्यता खत्म किये जाने की आधिकारिक फैसले के बाद सम्राट चौधरी प्रतिक्रिया जाहिर करने से बचते रहे. उन्हाेंने इतना भर कहा कि वह इसके लिए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को धन्यवाद देते हैं.
किसी पार्टी में रह कर उसके खिलाफ काम करने का यही नतीजा होता है. िवप कोर्ट का फैसला बिल्कुल सही है. सम्राट राजद में थे, तो विधायकों से जाली हस्ताक्षर करवाये थे. जदयू में वैसा ही किया.
तेजस्वी यादव,उप मुख्यमंत्री
सवा दो महीने की सुनवाई के बाद फैसला : सभापति
विधान परिषद के सभापति अवधेश नारायण सिंह ने कहा कि सवा दो महीने के करीब नरेेंद्र सिंह और सम्राट चौधरी मामले में सुनवाई चली. सुनवाई के बाद फैसला सुनाया गया है. दोनों के वकीलों को आदेश की प्रति भी उपलब्ध करा दी गयी है. शिव प्रसन्न सिंह यादव की ओर से सूचना आयी है कि वह अस्पताल में भरती हैं, इसलिए उन्हें मोहलत दी गयी है. स्वस्थ होने पर सुनवाई की जायेगी.
सभापति ने विधिसम्मत कार्रवाई की है. हमने संविधान की 10 वीं अनुसूची का हवाला देते हुए सदस्यता समाप्त करने का अनुरोध किया था.सभापति ने दोनों पक्षों की बातें सुनने के बाद फैसला सुनाया है.
संजय कुमार सिंह, जदयू के मुख्य सचेतक, विधान परिषद
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