अठारहवीं सदी का पटना बुकानन की नजरों मेंब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी ने जब हिंदुस्तान पर कब्जा जमाया, तो उनके यह लिए जरूरी हो गया था कि वे यहां के रीति-रिवाजों, सामाजिक व्यवस्थाओं, अनुष्ठानों, प्रथाओं को समझें. उनके लिए यह भी जरूरी था कि वे यहां की ऐतिहासिक विरासत, संस्कृति और शिल्प को जानें. दूसरी ओर इंगलैंड में रह रहे लोगों की भी उत्सुकता थी हिंदुस्तान के बारे में जानने की. इसी क्रम में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड वेलेस्ले ने बुकानन को इस्ट इंडिया कंपनी के अधीन इलाकों के इतिहास, कला-संस्कृति, व्यापार, सामाजिक तथा धार्मिक रिवाजों, कर्मकांडों, रीति -रिवाजों, कृषि, वास्तुशिल्प और प्राकृतिक संसाधनों के सर्वेक्षण के काम में लगा दिया. स्कॉटलैंड में पैदा हुआ पेशे से डॉक्टर रहे बुकानन 1794 में ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी में सर्जन के तौर पर शामिल हुआ था, लेकिन उसकी रुचि प्राकृतिक इतिहास और भूविज्ञान में थी. इसलिए हिंदुस्तान आते ही उसे सर्वेक्षण के काम में लगा दिया गया. इसी क्रम में 1811 में वह पटना आया. अपने सर्वेक्षण में उसने लिखा, पटना में 97,500 मुस्लिम और 214,500 हिन्दुओं का निवास है. एक वाणिज्यिक शहर होने के नाते यहां तरह-तरह के पेशे में लोग लगे हुए हैं. यहां 30,000 व्यापारी, 78,000 शिल्पकार, 66,000 मजदूर, जो खेतों और अन्य जगहों पर काम कर रहे थे. समाज पेशे के आधार पर विभिन्न वर्गों से बना था.बुकानन लिखता है, अन्य जिलों में यह तीन वर्गों सुखबास, खोशबाश और चास में सीमित था, लेकिन पटना में यह चार अलग श्रेणियों अशरफ, बुकल्, पौनिया और जोतिया में बंटा था. अशरफ भद्र लोगों का वर्ग था, जिसमें उच्च जातियों के मुसलमान और हिंदू शामिल थे. मुसलमानों में सैय्यद, पठान और मुगल थे. हिंदुओं में ब्राह्मण, क्षत्री, राजपूत और कायस्थ थे.बुकानन ने लिखा, कुछ निम्न जाति के समृद्ध धनी व्यापारी खुद को अशरफ की श्रेणी में मानते थे, लेकिन समाज में उन्हें मान्यता नहीं मिली हुई थी और उन्हें निम्न श्रेणी का ही माना जाता था. अशरफ समुदाय के लोग शारीरिक श्रम न करना गर्व की बात मानते थे. आमतौर पर उनके पास खेती योग्य काफी जमीन होती थी, जिसमें वे अपने नौकरों या गुलामों से खेती करवाते थे, लेकिन कुछ गरीब अशरफ भी थे जो अपने खेतों में खुद कुदाल चला कर खेती करते थे. वे खुद से अनाज बोते, उन्हें पानी देते और फसल काटते थे. कभी-कभी हल चलाने के लिए किराये पर मजदूर भी रख लेते थे.बुकानन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा, बुकल निम्न जाति के व्यापारी हुआ करते थे. ये आमतौर से खेतीबारी से दूर रहते थे. पौनिया शिल्पकार थे. उनके पास खेती योग्य जमीन भी होती थी, जिसमे आमतौर पर वे स्वयं खेती करते थे.बुकानन लिखता है, जब उनके पास पर्याप्त पेशेगत काम नहीं होता था तब एक भाई खेती करता था, दूसरा पेशेगत काम में लगा रहता. जोतिया मुख्य रूप से हरवाहे होते थे. इनके पास खुद की जमीन नहीं होती थी. ये दूसरों के खेतों में मजदूरी करते थे. इसके साथ ये घरों में नौकरों का काम, दैनिक मजदूरी इत्यादि भी करते थे. कुछ ऐसे भी उच्च जाति के गरीब थे जो अपने से निम्न जाति के लोगों के यहां नौकर का काम करते थे. मैंने स्वयं कई उच्च ब्राह्मणों को निम्न जाति के लोगों के यहां जूठे बर्तनों को धोते देखा. बुकानन अठरहवीं सदी के पटना को एक मिश्रित समाज के रूप में पाता है, जहां अमीर और गरीब, उच्च और निम्न जातियों के लोग अपने अपने आर्थिक और सामाजिक क्षमताओं के अनुसार मिल-जुल कर साथ रह रहे थे.
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अठारहवीं सदी का पटना बुकानन की नजरों में
अठारहवीं सदी का पटना बुकानन की नजरों मेंब्रिटिश इस्ट इंडिया कंपनी ने जब हिंदुस्तान पर कब्जा जमाया, तो उनके यह लिए जरूरी हो गया था कि वे यहां के रीति-रिवाजों, सामाजिक व्यवस्थाओं, अनुष्ठानों, प्रथाओं को समझें. उनके लिए यह भी जरूरी था कि वे यहां की ऐतिहासिक विरासत, संस्कृति और शिल्प को जानें. दूसरी ओर […]
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