पटना: बिहार के लोग साल भर में चार हजार करोड़ की दवा खा जाते हैं, जबकि यहां सौ करोड़ से भी कम की दवाएं बनती हैं. 3900 करोड़ रुपये राज्य के बाहर चले जाते हैं.
राज्य में महज 170 ड्रग इंस्पेक्टर हैं. और अधिक इंस्पेक्टरों की जरूरत है. भारत में बनी दवाएं दो सौ देशों में निर्यात की जाती हैं. देश में तीन हजार ड्रग इंस्पेक्टर हैं, जबकि जरूरत 15 हजार की है. ये बातें शनिवार को ऑल इंडिया ड्रग कंट्रोल ऑफिसर्स महासंघ की 15वें ऑल इंडिया कन्वेंशन में कही गयीं. ड्रग कंट्रोलर जेनरल ऑफ इंडिया डॉ जीएन सिंह ने कहा कि ड्रग इंस्पेक्टरों व कंट्रोलरों को पूरी ईमानदारी से दवाओं की गुणवत्ता की जांच करनी चाहिए, ताकि लोगों को सही दवाएं मिल सकें. नकली व गड़बड़ दवा बनानेवाली कंपनियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई विजिलेंस अधिकारी की तरह करें.
समय पर मिलनी चाहिए प्रोन्नति
उन्होंने कहा कि ड्रग जांच की व्यवस्था सुदृढ़ करने के लिए तीन हजार करोड़ रुपये की जरूरत है. इसमें 1200 करोड़ आवंटित हो चुके हैं. देश में साइंटिफिक ऑथोरिटी फाइनेंसियल रेगुलेटरी बनाने की प्रक्रिया चल रही है. देश में और अधिक फॉर्मेसी कॉलेज खोलने की जरूरत है. 2020 तक भारत दवा निर्माण के क्षेत्र में नंबर वन बन जायेगा. पूरे देश में मात्र तीन हजार ड्रग इंस्पेक्टर हैं, जबकि कम-से-कम 15 हजार होने चाहिए. ड्रग इंस्पेक्टर को सही समय पर प्रोन्नति मिलनी चाहिए.
जेनेरिक दवाओं की अधिक बिक्री हो
इससे पहले विधानसभा अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कन्वेंशन का उद्घाटन करते हुए कहा कि ड्रग इंस्पेक्टर व कंट्रोलर बिहार में दवा निर्माताओं को लाने में मदद करें. बिहार में दवा निर्माण कंपनी नगण्य हैं. ड्रग इंस्पेक्टर को भी कोशिश करनी चाहिए चाहिए कि जेनेरिक दवा अधिक बिक्री हों, ताकि गरीबों को भी आसानी से मिलें. आम लोगों के स्वास्थ्य की महत्वपूर्ण जिम्मेवारी ड्रग कंट्रोलर पर है. आद्री के सदस्य सचिव डॉ शैबाल गुप्ता ने कहा कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलने की स्थिति में दवा निर्माण कंपनी लगने में मदद मिलेगी. बिहार में पिछले सात वर्षो में योजना बजट काफी अधिक बढ़ गया है.
वार्षिक बजट चार हजार करोड़ से बढ़ कर 34 हजार करोड़ हो गया है. अलकेम दवा कंपनी के प्रबंध निदेशक बीएन सिंह ने कहा कि 14 प्रतिशत दवा उद्योग की ग्रोथ है. एक लाख 15 हजार करोड़ का बाजार है. 48 हजार करोड़ की दवा निर्यात होती है. दवा उद्योग से पांच लाख लोगों को रोजगार मिला है. दवा उद्योग मुख्य रूप से गुजरात व महाराष्ट्र में है. कर में छूट वाले हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड व सिक्किम में भी दवा निर्माण कंपनियां हैं. बिहार में दवा निर्माण कंपनी की स्थापना नहीं होने के लिए जमीन व बिजली उपलब्धता की कमी बड़ा कारण है. आयोजन समिति के अध्यक्ष हेमंत कुमार सिन्हा ने कहा कि बिहार में सालाना चार हजार करोड़ की दवा बिक्री होती है, लेकिन यहां 100 करोड़ की दवा का भी निर्माण नहीं होता है. महासंघ के अध्यक्ष दिलीप कुमार, महासचिव रवि उदय भास्कर, एसडब्ल्यू देशपांडे व राकेश नंदन सिंह ने भी संबोधित किया. बिहार के रंजीत कुमार सहित विभिन्न राज्यों के ड्रग इंस्पेक्टर को बेहतर काम के लिए सम्मानित किया गया. मौके पर एएन वर्मा, पीके बनर्जी, जी धर्मादत्ता आदि मौजूद थे.