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कॉरपोरेशन की सुस्ती बनी नैक में बाधक!

कॉरपोरेशन की सुस्ती बनी नैक में बाधक!- कॉलेजों व हॉस्टलों की मरम्मत का जिम्मा एजुकेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के पास- नैक में ग्रेडिंग नहीं मिली, तो रूसा और यूजीसी अनुदान लेने में भी होगी दिक्कतसंवाददाता, पटना बिहार एजुकेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की सुस्ती विश्वविद्यालय व कॉलेजों को नैक मान्यता में बाधक बनी हुई है. कॉलेजों व […]

कॉरपोरेशन की सुस्ती बनी नैक में बाधक!- कॉलेजों व हॉस्टलों की मरम्मत का जिम्मा एजुकेशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के पास- नैक में ग्रेडिंग नहीं मिली, तो रूसा और यूजीसी अनुदान लेने में भी होगी दिक्कतसंवाददाता, पटना बिहार एजुकेशनल इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन की सुस्ती विश्वविद्यालय व कॉलेजों को नैक मान्यता में बाधक बनी हुई है. कॉलेजों व हॉस्टलों की मरम्मती का जिम्मा कॉरपोरेशन को ही है और उनके द्वारा चल रहे ज्यादातर काम की गति काफी धीमी है. विवि व कॉलेजों की मरम्मत नहीं होने की वजह से कॉलेजों को यह समझ में नहीं आ रहा कि बेहतर इन्फास्ट्रक्चर को वे नैक में कैसे दिखाएं, क्योंकि ज्यादातर की हालत खराब ही है और इन्फ्रास्कट्रक्चर का बेहतर होना नैक मान्यता के लिए जरूरी हैं. नैक में ग्रेडिंग नहीं मिली तो रूसा और यूजीसी अनुदान में भी कॉलेजों को दिक्कत हो सकती हैं. काम करने की इच्छा नहींपटना विश्वविद्यालय में कई ऐसी योजनाएं हैं जो राज्य सरकार सीधे उस पर काम कर रही है. इसके पीछे का कारण पूर्व के अनुभव हैं जिस पर जब पैसा कॉलेज या यूनिवर्सिटी को काम कराने के लिए दिया गया तो काम उस लेवल का नहीं हुआ या फिर अटका तो अटका ही रह गया. दूसरा यह कि विवि में ज्यादातर प्राचार्य शिक्षक ही हैं और उनपर प्रशासनिक दायित्व के साथ पढ़ाने और पढ़वाने का जिम्मा है. वे भी इस काम को नहीं ही करना चाहते हैं. सरकार ने इसी वजह से काॅलेजों के काम को भी खुद करने का जिम्मा उठाया लेकिन उसकी लेटलतीफी की वजह से काफी दिक्कते हैं.टेंडर होकर भी काम नहींकॉलेज के लिए करीब 6 करोड़ रुपये सैंक्शन हैं. मिली जानकारी के अनुसार टेंडर भी हो चुका है लेकिन काम अब तक शुरू नहीं हुआ. अगर काम शुरू हो जाता तो उसे नैक में दिखा कर अच्छा ग्रेड मिल जाता. नैक अगर नहीं हुआ तो रूसा का भी करीब दो करोड़ रुपया कॉलेज को नहीं मिलेगा. वहीं यूजीसी से भी अनुदान रूक जायेगा. पहले से कॉलेज को सामान्य खर्च के लिए सोचना पड़ रहा है. अगर यह सब भी रूक गया तो काफी दिक्कत हो जायेगी. बीएन कॉलेज को एक उदाहरण हैं. कॉरपोरेशन के द्वारा पटना कॉलेज के दोनों हॉस्टलों की मरम्मती भी अब तक नहीं हो पाई है जबकि करीब दो वर्ष पहले ही इसकी मरम्मती का काम शुरू होना था. यहां करीब दो वर्ष से छात्रावासों का आवंटन इसी वजह से रूका है. सायंस कॉलेज में कुछ काम हुए हैं पर कुछ कुछ अभी बाकी हैं. हाॅस्टलों में अभी काम चल रहा है. रानीघाट के पीजी हॉस्टलों में भी काम होना है. कॉलेज के पास फंड नहींयदि कॉलेज की मरम्मती का काम हो जाता तो नैक में ग्रेड पाने में हमें आसानी हो जाती. नैक की मान्यता नहीं मिली तो रूसा का पैसा भी हमें नहीं मिल पायेगा. यूजीसी ने तो पहले ही अनुदान रोकने की धमकी दे दी हैं. कॉलेज के पास अपना फंड है नहीं तो इस दिशा में हम सरकार पर ही निर्भर करते हैं. प्रो राजकिशोर प्रसाद, प्राचार्य, बीएन कॉलेज

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