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आंगनबाड़ी केंद्रों को टैब, जिलों में खुलेंगे वृद्धाश्रम

मंजू वर्मा समाज कल्याण मंत्री पिछले कुछ सालों में राज्य सरकार ने लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण को अपना महत्वपूर्ण एजेंडा बनाया है. इसके िलए कई िवभागों की ओर से अलग-अलग योजनाएं चलायीं जा रही हैं. इसका असर भी िदख रहा है. हालांकि यह भी िचंता की बात है िक िबहार में िलंगानुपात एक दशक […]

मंजू वर्मा
समाज कल्याण मंत्री
पिछले कुछ सालों में राज्य सरकार ने लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण को अपना महत्वपूर्ण एजेंडा बनाया है. इसके िलए कई िवभागों की ओर से अलग-अलग योजनाएं चलायीं जा रही हैं. इसका असर भी िदख रहा है. हालांकि यह भी िचंता की बात है िक िबहार में िलंगानुपात एक दशक में घटा है.
नयी सरकार, नयी उम्मीदें की कड़ी में आज चर्चा समाज कल्याण की. एक अप्रैल, 2007 को समाज कल्याण विभाग को महिला एवं बाल विकास विषय का स्वतंत्र विभाग बनाया गया. इस विभाग की मुख्य जिम्मेवारी समाज के सीमांत तबकों पर ध्यान केंद्रित करते हुए महिलाओं, बच्चों, वृद्धजनों एवं नि:शक्तों के हितों और अधिकारों की रक्षा करना है. िवभाग की मंत्री मंजू वर्मा का कहना है िक योजनाओं को हर हाल तक उनके वास्तविक लाभुकों तक पहुंचाया जायेगा.
योजनाओं में गड़बड़ी दूर करने को मॉनिटरिंग जरूरी
पटना : लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार की महत्वपूर्ण िजम्मेवारी समाज के सीमांत तबकों, महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों के उन्नयन, उनका िवकास है. राज्य सरकार ने िपछले कुछ सालों में लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण को महत्वपूर्ण एजेंडा बनाया है. 2007 में समाज कल्याण िवभाग को पृथक िवभाग बनाना भी इसी पहल की कड़ी थी.
महागंठबंधन सरकार के सामने प्रमुख कार्यभार पहले से चल रही योजनाओं की सतत मॉनिटरिंग और इसे वास्तविक लाभुकों तक पहुंचाने की है.
समेकित बाल विकास योजना छह वर्ष तक की उम्र वाले बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए समेकित स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की एक महत्वपूर्ण योजना है. राज्य के सभी प्रखंडों में इसकी कुल 544 परियोजनाएं चल रही हैं. इसके तहत करीब 92 हजार आंगनबाड़ी केंद्र कार्यरत हैं. आंगनबाड़ी सेविकाओं और आंगनबाड़ी सहायिकाओं की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन महिला पर्यवेक्षकों की कमी है. आंगनबाड़ी केंद्रों को लेकर अक्सरहां शिकायतें मिलती हैं. इसकीकारगर मॉनिटरिंग बड़ा कार्यभार है.
बाल विवाह के खिलाफ कड़े कानून (बाल विवाह रोकथाम अधिनियम, 2006) के बावजूद राज्य में पूरी तरह इस पर रोक नहीं है. खास तौर पर बालिकाओं की शादी कम उम्र में किये जाने की परिपाटी कायम है.
समाज कल्याण विभाग ने मुख्यमंत्री भिक्षावृत्ति निवारण योजना की शुरूआत की है, जिसका उद्देश्य राज्य में भिक्षावृत्ति की कुप्रथा का उन्मूलन करना और भिखारियों का पुनर्वास करना है. इस योजना के अंतर्गत पटना में तो आश्रय गृह स्थापित किया गया है, लेकिन इसे राज्य के अन्य जिलों में लागू िकये जाने की जरूरत है. नयी व पुरानी योजनाओं को एकीकृत कर मुख्यमंत्री नि:शक्त सशक्तीकरण योजना (संबल) के जरिये नि:शक्त बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने की पहल भी हो रही है, लेिकन िन:शक्त नीित को मंजूरी िमलना बाकी है. मुख्यमंत्री कन्या िववाह योजना में गड़बड़ी को लेकर भी िशकायतें िमलती हैं. वैसे, समाज कल्याण मंत्री ने इसमें िबचौलियों की भूमिका को खत्म करने का वायदा िकया है.
इसके अलावा िबहार में िलंगानुपात का घटना एक अलग तरह की िचंता है. िबहार में िलंगानुपात (प्रति हजार पुरुषों के अनुपात में महिलाओं की संख्या ) 918 है. नीतीश सरकार ने महिला सशक्तीकरण नीित तैयार की है. अब इसे कारगर तरीके से लागू िकये जाने की बारी है.
– समाज कल्याण की योजनाओं को कैसे आम लोगों तक पहुंचायेंगी ?
समाज कल्याण के जरिये चलने वाली योजनाओं का मकसद मानव जीवन के उन्नयन और बेहतरी से है. इसके लिए कई योजनाएं हैं. बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक के लिए प्रोग्राम है. हमारी कोशिश इन योजनाओं को इसके लाभुकों तक ले जाना तो है ही, साथ ही यह बताना भी है कि सरकार उनके साथ खड़ी है. इस भावना को हम उनके भीतर बैठाना चाहते हैं. इस लिहाज से समाज कल्याण का दायरा काफी बड़ा है. पहले से इन योजनाओं को लागू करने वाली मशीनरी काम कर रही है. हम अलग-अलग योजनाओं की समीक्षा कर रहे हैं और देख रहे हैं कि उसे लाभुकों तक पहुंचने में कहां-कहां दिक्कत आ रही है.
– आंगनबाड़ी केंद्रों के बारे में कई शिकायतें मिलती हैं. वे कैसे दूर होंगी?
हमने तय किया है कि हर हाल में ये केंद्र काम करें. उन केंद्रों पर बच्चों को पोषाहार मिलने में कोई परेशानी नही हो. अगर कहीं परेशानी हो रही है, तो संबंधित प्रभारी फौरन उसे दूर करने के कदम उठायें. सीडीपीओ को इसकी निगरानी करनी है. इन केंद्रों के बारे में हमने भी कई बातें सुनी हैं. बहुत सारे केंद्रों पर बच्चों के नहीं आने, सेविका, सीडीपीओ वगैरह के एक्टिव नहीं रहने की बात सुनी है. हमारी कोशिश है कि ये केंद्र अपने लक्ष्य को हासिल करें.
राज्य में करीब 92 हजार आंगनबाड़ी केंद्र हैं. ऐसा नहीं है कि सभी केंद्रों से शिकायत है. शिकायत उन केंद्रों को लेकर है जो गाइड लाइन के हिसाब से काम नहीं कर रहे हैं. ये केंद्र कुपोषित बच्चों के लिए है. ऐसे में उन्हें पूरक पोषाहार उपलब्ध कराया जाये. दूसरा टास्क ऐसे बच्चों के मानसिक विकास का है. हमने तय कया है कि सभी आंगनबाड़ी केंद्रों को टैब दिया जायेगा. इससे इन केंद्रों की मोनिटिरंग बेहतर तरीके से हो पायेगी.
-वृद्धावस्था पेंशन व कन्या योजना की गति कैसे तेज करेंगी?
वृद्धावस्था पेंशन को रेगुलर करने का हमने लक्ष्य रखा है. इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि वृद्धावस्था पेंशन अभी काफी लेट है. दो महीने के अंतरात पर यह लाभुकों को मिल रहा है. हमने अधिकारियों को कहा है कि बुजुर्गों की हर योजना की मॉनिटिरिंग की जाये और उसे उन तक ससमय पहुंचाया जाये. पेंशन की राशि महीने के हिसाब से मिले, हम यह इंतजाम करने जा रहे हैं. जहां तक सवाल मुख्यमंत्री कन्या योजना का है, तो हमने इसकी समीक्षा की है. कुछ जगहों से अलग-अलग किस्म की समस्याएं सुनने को मिली हैं. इसके बारे में हमने अधिकारियों से बात की है. इस योजना में मुखिया का भी रोल होता है. हम उनकी भूमिका को ध्यान में रखते हुए योजना को उसके लाभुकों तक पहुंचाना चाहते हैं.
– कन्या विवाह योजना की स्थिति क्या है?
खासतौर से इस योजना के बारे में हमने विभाग के सेक्रेटरी से बात की है. इसमें भी मुखियाओं की भूमिका है. कई जिलों में कोई समस्या नहीं है. कुछ जगहों से लोगों ने परेशानी की बात कही है. हम इस बात पर गौर कर रहे हैं कि कन्या विवाह योजना से लेकर दूसरी योजनाओं में सरकार और लाभुकों के बीच कौन-कौन लोग आ रहे हैं. उसकी प्रक्रिया सरल हो, तो उसका लाभ भी उन तक आसानी से पहुंचेगा. हम यह भी विचार कर रहे हैं कि कन्या विवाह योजना की राशि सीधे लाभुकों को कैसे मिले.
– बुजुर्गों के लिए आपकी प्राथमिकता क्या है?
पहली बात तो हमने बतायी कि उनकी पेंशन को लेकर कोई परेशानी न हो. दूसरी बात, वृद्धावस्था आश्रम को लेकर है. समाज में बुजुर्गों की दशा से सब वाकिफ हैं. हम चाहते हैं कि हमारे जो बुजुर्ग हैं, उन्हें गरिमापूर्ण जीवन मिले. पटना में वृद्ध आश्रम है. हम सभी जिलों में ऐसा आश्रम खोलना चाहते हैं.
बाल विवाह पर रोक
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, बिहार में बाल विवाह की दर 49 फीसदी है. 15 से 18 साल की आयुवर्ग की 44 फीसदी किशोरियां मां बन जाती हैं. इसका प्रतिकूल प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है. बाल विवाह रोकथाम अधिनियम, 2006 के लागू होने के बावजूद ऐसी नौबत है. अब तक का अनुभव है कि समाज की सहभागिता के बगैर ऐसी बुराइयों पर काबू नहीं पाया जा सकता.
कन्या विवाह योजना
इस योजना के तहत बीपीएल परिवार तथा 60 हजार रुपये वार्षिक से कम आय वाले परिवारों की कन्या को विवाह के समय पांच हजार रुपये दिये जाने का प्रावधान है. इस योजना के कार्यान्वयन में पंचायतों के मुखिया की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इस योजना में लेटलतीफी या गड़बड़ी की शिकायतों को दूर कर इसे पारदर्शी बनाने का कार्यभार नयी सरकार के सामने है.
नि:शक्तता सशक्तीकरण नीति
वर्ष 2011 में हुए जनगणना के मुताबिक बिहार में करीब 19 लाख नि:शक्त हैं. नि:शक्तजनों के विकास एवं उन्हें समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए बिहार राज्य नि:शक्त व्यक्ति सशक्तीकरण नीति का प्रारूप तैयार हो चुका है. इसे कैबिनेट की स्वीकृति का इंतजार है. इसमें नि:शक्त जनों के रोजगार के लिए प्रावधान किये गये हैं. इसे लागू किये जाने का इंतजार नि:शक्तजनों को है.
कुपोषण का खात्मा
राज्य में करीब 92 हजार आंगनबाड़ी केंद्र हैं, जहां छह वर्ष तक की उम्र के बच्चों को पूरक पोषाहार दिया जाता है. इस साल इस पर 590 करोड़ रुपये खर्च होने हैं. दूसरी तरफ वार्षिक हेल्थ सर्वे की ताजा रिपोर्ट बताती है कि राज्य में 52 फीसदी बच्चों में कुपोषण है. पूरक पोषाहार कार्यक्रम की सतत मॉनिटरिंग और इसकी गड़बड़ियों को दूर करने की दरकार है.
समय पर पेंशन
समाज कल्याण विभाग के तहत राज्य और केंद्र सरकार की पेंशन की कई योजनाएं संचालित हैं, जो बेसहारा व वृद्धों के िलए हैं. इनके साथ मुख्य समस्या समय पर पेंशन का भुगतान करने की है. सरकारी दफ्तरों की लेटलतीफी की वजह से समय पर इसका लाभ नहीं मिल पाता है. इसमें िबचौलियों की भूमिका को खत्म करने के िलए मैकेनिज्म बनाना होगा.

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