कालजयी फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ से फिल्मोत्सव के दूसरे दिन की हुई शुरुआत – कश्मीर के लोगों की व्यथा और सांप्रदायिक उन्माद भड़काने की साजिशों को महसूस किया दर्शकों ने- कास्ट आॅन मेन्यू कार्ड फिल्म भी दिखायी गयी लाइफ रिपोर्टर. पटना सातवें पटना फिल्मोत्सव, प्रतिरोध का सिनेमा के दूसरे दिन की शुरुआत महान कथाकार प्रेमचंद की कहानी पर आधारित मशहूर फिल्मकार सत्यजीत रे की फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ के प्रदर्शन से हुई. यह सत्यजीत रे द्वारा निर्देशित पहली हिंदी फिल्म है, जिसमें संजीव कुमार, अमजद खान, शबाना आजमी जैसे मशहूर अभिनेताओं ने भूमिकाएं की थीं. इसी फिल्म में प्रख्यात अभिनेता सईद जाफरी ने मीर रोशन अली की भूमिका निभाई थी. हाल ही में सईद जाफरी का निधन हुआ है. सातवां पटना फिल्मोत्सव उनकी स्मृति को भी समर्पित है. बता दें कि इस फिल्म में सत्यजीत रे ने खुद संगीत दिया था. फिल्म में एक ठुमरी है, जिसे बिरजू महाराज ने निर्देशित किया था. इस फिल्म को तीन फिल्मफेयर अवार्ड मिले थे. फिल्म का परिचय देते हुए पटना सिने सोसाइटी के वरिष्ठ सदस्य आरएन दास ने बताया कि सत्यजीत रे ने इस फिल्म के लिए बहुत शोध किया था. प्रेमचंद ने पहले इस कहानी को उर्दू में लिखा था. 1856 की पृष्ठभूमि पर यह कहानी है. इसे देखते हुए समझा जा सकता है कि क्यों अवध 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का केंद्र बना. क्षत्रप: मनुष्य के अस्तित्ववादी तनावों की अभिव्यक्तियुवा फिल्मकार सजल आनंद निर्देशित फिल्म ‘क्षत्रप’ एक बुजर्ग सिद्धहस्त पखावज वादक और उनके शिष्य की कहानी है. पखावज वादक जिसने शतरंज में घोड़े की चालों और पखावज बजाने के हुनर के बीच के संबंधों पर एक किताब लिखी थी, वह अपने उम्र के अंतिम पड़ाव में है. उसकी इच्छा है कि उसके हुनर को उसका शिष्य आगे बढ़ाए, लेकिन वह शिष्य पखावज बजाना छोड़कर जिंदगी के दूसरे रास्तों पर जा रहा है. जाहिर है इससे पखावज वादक निराश है. लंबे अरसे बाद शिष्य बाद जब अपने गुरु के पास लौटता है, दोनों की भेंट होती है. दोनों की मुलाकात के जरिए यह फिल्म मनुष्य के अस्तित्ववादी तनावों को अभिव्यक्त करने की कोशिश करती है. गुरु की भूमिका बांग्ला रंगमंच और फिल्मों के अभिनेता कल्याण चटर्जी ने निभाई है. प्रदर्शन के पूर्व संतोष झा ने इस फिल्म का परिचय दिया. कश्मीर के लोगों की व्यथा को दर्शाया ‘खून दिय बराव’ ने चर्चित डॉक्यूमेंटरी फिल्मकार इफत फातिमा फिल्म ‘खून दिय बराव’ ने कश्मीर के राजनैतिक उथल पुथल के आम लोगों पर पड़ते प्रभावों को दर्शाया. इफत फातिमा पिछले एक दशक से ‘एसोसिएशन आॅफ पैरेंट आॅफ डिसअपियर्ड पर्सन्स’ के साथ जोड़कर मुख्यतः कश्मीर में गुमशुदा लोगों के परिवारों की व्यथा कथा को दर्ज कर रही हैं. कश्मीर हो या उत्तर-पूर्व, इन इलाकों की समस्याओं और जनसंघर्षों को अंधराष्ट्रवादी नजरिये से नहीं समझा जा सकता. संजय काक की ‘जश्ने आजादी’ और इफत फातिमा की ‘ह्वेयर हैव यू हिडेन माई न्यू क्रिचेन्ड मून’ (तुमने मेरे चांद के टुकड़े को कहां छिपाया) और ‘खून दिय बराव’ जैसी फिल्में कश्मीर की उन हकीकतों से रूबरू कराती हैं, जिन्हें कश्मीर के बाहर की जनता आम तौर पर नहीं जानती. कास्ट आॅन मेन्यू कार्ड: बीफ उद्योग से जुड़े लोगों की जिंदगी का सच बीफ खाने को लेकर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के मकसद से जिस तरह कुछ आतंकी हिंदू गिरोहों ने बावेला मचाया, दादरी में अखलाक की हत्या कर दी, उस सांप्रदायिक उन्माद के माहौल में यह फिल्म जबर्दस्त तरीके से हस्तक्षेप करती है. इसे टाटा इंस्टीट्यूट आॅफ सोशल साइंसेज, मुंबई के पांच छात्र-छात्राओं- अनन्या गौर, अनुरूप खिलाड़े, अतुल आनंद, रीतिका रेवती सुब्रमण्यम और वसीम चैधरी ने बनाया है. अगस्त से सितंबर 2014 के दौरान इस फिल्म की शूटिंग हुई थी. बीफ उद्योग में मिलने वाले काम और उसमें काम करने वालों की जाति और जेंडर की भूमिका पर यह फिल्म केंद्रित है. सांप्रदायिक दंगा भड़काने वाली दक्षिणपंथी ताकतों का पर्दाफाश किया ‘कर्फ्यू’ ने फिल्मोत्सव के दूसरे दिन की आखिरी फिल्म ‘कर्फ्यू’ थी. बिहार विधानसभा चुनाव के पहले झारखंड के रांची और जमशेदपुर में दंगा भड़काने कोशिश की गयी थी. नौजवान फिल्मकार कुमार गौरव निर्देशित फिल्म ‘कर्फ्यू’ में यह नजर आया कि जमशेदपुर में दंगा भड़काने वाली राजनीतिक ताकतें कौन थीं. इस फिल्म का परिचय सुधीर सुमन ने दिया। ———————जनसंहार को सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक बदलाव को रोकने की कोशिश के रूप में देखना चाहिए‘लक्ष्मणपुर बाथे’ के निर्देशक ओमप्रकाश दास का प्रेस कॉन्फ्रेन्स‘लक्ष्मणपुर बाथे’ फिल्म के निर्देशक ओमप्रकाश दास ने शनिवार को पटना फिल्मोत्सव तैयारी समिति द्वारा आयोजित प्रेस कान्फ्रेन्स में बताया कि 2002 में वे मध्य बिहार के इलाके में नरसंहार पीड़ितों से मिले थे. जब 2013 में हाकोर्ट का फैसला आया, तो इतने बड़े जनसंहार के दोषियों को सजा न मिलने से वे बेचैन हो उठे. उन्हें लगा कि पूरे न्याय तंत्र, पुलिस और नौकरशाही के भीतर जाति को लेकर पूर्वाग्रह मौजूद है. इसके बाद उन्होंने इस मसले पर फिल्म बनाने का निर्णय लिया. फिल्म बनाने के क्रम में पीड़ितों के अलावा हत्या के आरोपियों, वकीलों, पटना-दिल्ली के बुद्धिजीवियों और उन राजनेताओं से भी मिले और उनका बयान लिया, जिन पर हत्यारों को संरक्षण देने का आरोप लगा था. उन्होंने कहा कि यह मसला जितना सामाजिक है उतना ही राजनीतिक और आर्थिक भी है. जो राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक बदलाव हो रहे हैं, उन्हें रोकने की एक कोशिश के तौर पर भी इसे देखना चाहिए, क्योंकि जनसंहार और हत्याएं सिर्फ बिहार में नहीं हुईं, बल्कि हरियाणा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु जैसे राज्यों में भी हुई हैं. एक सवाल के जवाब में ओमप्रकाश दास ने कहा कि सामाजिक न्याय की धारा ने जो प्रतीकों की राजनीति की है, सिर्फ उससे बुनियादी बदलाव संभव नहीं है. उनमें अगर राजनीतिक इच्छाशक्ति होती, तो इन जनसंहारों पर काबू पाया जा सकता था. पुलिस और प्रशासन में भी मजबूत इच्छा शक्ति का नहीं होना, एक गंभीर सवाल तो है ही. ओमप्रकाश दास ने कहा कि उनकी अगली फिल्म इलेक्ट्रानिक मीडिया में काम करने वाले लोगों की बुरी दशा पर केंद्रित होगी, जिसके लिए वे शोध कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि पटना फिल्मोत्सव जैसे प्रयासों से एक जागरूक दर्शक वर्ग का निर्माण हो रहा है. हमारे सामने यह चुनौती है कि गंभीर तथ्य को भी किस तरह कहा जाये कि वह दर्शकों तक संप्रेषित हो जाये. तमिलनाडु के बाढ़ पीड़ितों को सहयोग करेगी फिल्मोत्सव आयोजन समिति मीडिया प्रभारी रोहित ने बताया कि पटना फिल्मोत्सव की आयोजन समिति ने तमिलनाडु के बाढ़ पीड़ितों के सहयोग के लिए दस हजार रुपये का सहयोग भेजने का निर्णय लिया है. दर्शक भी सहयोग में अपनी हिस्सेदारी कर सकें, इसके लिए सहयोग का डिब्बा भी कालिदास रंगालय के प्रांगण में रखा गया है.
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कालजयी फल्मि ह्यशतरंज के खिलाड़ीह्ण से फल्मिोत्सव के दूसरे दिन की हुई शुरुआत
कालजयी फिल्म ‘शतरंज के खिलाड़ी’ से फिल्मोत्सव के दूसरे दिन की हुई शुरुआत – कश्मीर के लोगों की व्यथा और सांप्रदायिक उन्माद भड़काने की साजिशों को महसूस किया दर्शकों ने- कास्ट आॅन मेन्यू कार्ड फिल्म भी दिखायी गयी लाइफ रिपोर्टर. पटना सातवें पटना फिल्मोत्सव, प्रतिरोध का सिनेमा के दूसरे दिन की शुरुआत महान कथाकार प्रेमचंद […]
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