पटना: पटना हाइकोर्ट ने बिहार विधानसभा सचिवालय में 10 साल से कार्यरत 89 चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों की नियुक्ति को रद्द कर दिया है. न्यायाधीश नवनीति प्रसाद सिंह और न्यायाधीश नीलू अग्रवाल के खंडपीठ ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया. कोर्ट ने अब इन पदों पर विधानसभा सचिवालय को तीन माह के अंदर नये सिरे से बहाली […]
पटना: पटना हाइकोर्ट ने बिहार विधानसभा सचिवालय में 10 साल से कार्यरत 89 चतुर्थवर्गीय कर्मचारियों की नियुक्ति को रद्द कर दिया है. न्यायाधीश नवनीति प्रसाद सिंह और न्यायाधीश नीलू अग्रवाल के खंडपीठ ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया. कोर्ट ने अब इन पदों पर विधानसभा सचिवालय को तीन माह के अंदर नये सिरे से बहाली का आदेश दिया है.
विधानसभा सचिवालय ने इसके लिए मई, 2001 में विज्ञापन जारी किया था. 17 सितंबर, 2004 को आवेदकों की परीक्षा ली गयी और इसके बाद रिजल्ट जारी कर दिया गया. परीक्षा में असफल आवेदक लालू मंडल और विजय मंडल ने कोर्ट से पूरी नियुक्ति प्रक्रिया को रद्द करने की गुहार लगायी थी. एकलपीठ ने बहाली प्रक्रिया की निगरानी जांच के आदेश दिया था. लेकिन, आवेदकों की याचिका पर शुक्रवार को दो सदस्यीय खंडपीठ ने पूरी नियुक्ति प्रक्रिया को ही रद्द कर दिया. कोर्ट के फैसले के मुताबिक पूर्व में जारी विज्ञापन के आधार पर नये सिरे से बहाली प्रक्रिया शुरू की जायेगी.
इसलिए रद्द हुई नियुिक्त
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि विज्ञापन में उन्ही लोगों की स्थायी नियुक्ति करने की बात कही गयी थी, जिनकी सेवा 15 सितंबर, 2004 तक तीन साल पूरी हो गयी हो. लेकिन, विधानसभा सचिवालय ने उनलोगों की भी नियुक्ति कर दी, जिन्हें तदर्थ रूप से बहाल किया गया था और दैनिक वेतन भोगी के रूप कार्यरत थे.
बिहार स्टेट हाउसिंग फेडरेशन को भंग करने का आदेश रद्द
पटना. पटना हाइकोर्ट ने बिहार स्टेट हाउसिंग फेडरेशन को भंग करने के राज्य सरकार के आदेश को रद्द कर दिया है. न्यायाधीश ज्योति शरण के एकलपीठ ने शुक्रवार को यह आदेश दिया. कोर्ट आदेश के बाद फेडरेशन के 54 कर्मियों की नौकरी बच गयी है. राज्य सरकार ने 2012 में फेडरेशन बंद करने का निर्णय लिया था. सरकार के आदेश में फेडरेशन की संपत्ति की बिक्री कर कर्मियों के बकाये के भुगतान की बात कही गयी थी.
इस आदेश के खिलाफ फेडरेशन कामगार संघ ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. काेर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि बिहार राज्य कॉपरेटिव फेडरेशन का गठन अविभाजित बिहार में किया गया था.
इसकी संपत्ति झारखंड में भी है, इसलिए बिहार सरकार के काॅपरेटिव रजिस्ट्रार को इसे खत्म करने का अधिकार नहीं है. यदि केंद्र सरकार इसे खत्म करने का इरादा रखती है, तो वह ऐसा कर सकती है. कोर्ट के इस फैसले से फेडरेशन के कर्मियों को राहत मिली है.