निशक्त होने के बावजूद खास हैं ये बच्चेलाइफ रिपोर्टर पटनाजब कोई महिला मां बनने वाली होती है, तो उसके दिमाग में अपने बच्चे के लिए कई तरह के ख्याल आते हैं, जैसे वह शरारती होगा या शांत स्वभाव का होगा? पढ़ाई में अच्छा होगा या अन्य चीजों में नाम कमायेगा? जन्म से पहले ही मां की ममता बढ़ने लगती है. 15 साल पहले कंकड़बाग की मनीषा कृष्णा के मन में भी कुछ ऐसे ही ख्याल आये थे. आखिरकार इंतजार की घड़ियां खत्म हुई और उनके बेटे का जन्म हुआ. घर में किलकारी गूंज उठी. एक साल तक सब कुछ सही रहा, लेकिन जब वे पटना से बेंग्लुरु गयीं, तो उनके मन में कई तरह के ख्याल आने लगे. मन में एक डर-सा बैठ रहा था कि आखिर उनका बच्चा अन्य बच्चों से अलग क्यों है? दो साल हो गये थे, लेकिन बच्चे में कोई बदलाव नहीं आया था. ऐसे में उन्हें समझ आ गया कि उनका बच्चा नॉर्मल नहीं है. इस बात को जानकर मां पर क्या बीत रही होगी, शायद यह शब्दों में कह पाना मुश्किल है. अपनी इसी कहानी को बताते हुए मनीषा थोड़ी भावुक हो गयी. आंखों की आंसुओं को रोकते हुए उन्होंने बताया कि उस समय मैं टूट चुकी थी. समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं? उस वक्त मैं दिल्ली में टॉपर थी. मेरे पति कैनेडा में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. मैंने पीएचडी करने के बाद आगे जॉब नहीं की, क्योंकि बेटे को समय देना ज्यादा जरूरी था. इसके लिए देश के हर कोने में गयी. यूके से लेकर लंदन तक के डॉक्टर्स को दिखाया, लेकिन अपने बेटे शिवम को नॉर्मल नहीं कर पायी. आखिर में 12 साल के शिवम को लेकर मैं पटना आ गयी. तब मेरे दिल में ख्याल आया कि शिवम की तरह कई बच्चे इस शहर में भी होंगे, जिनके मां-बाप पर यही बीत रही होगी. ऐसे में दो साल पहले मैंने ‘उत्कर्ष ए स्पेशल नीड्स इंस्टीच्यूट’ खोला, जिसमें नि:शक्त बच्चे सुबह से शाम तक रहते हैं. मैं यहां सभी बच्चों को शिवम की तरह समझाती हूं. इसलिए मेरा अब इसी काम में मन लगता है. आपको जानकर खुशी होगी कि अब शिवम 14 साल का हो गया है और दीया बनाने और उसे डिजाइन करने में उसे बड़ा मजा आता है. संस्था में और भी बच्चे हैं, जो अन्य चीजों में माहिर हैं. आरव को स्केटिंग करने में आता है मजा गायत्री नगर में रहने वाला आरव महज आठ साल का है. दो साल की उम्र में पता चल गया था कि वह मानसिक रूप से सामान्य नहीं है. पैरेंट्स दुखी जरूर हुए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और अपने बेटे को उसी समय से स्पेशल ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया. फिलहाल वह उत्कर्ष संस्थान में है. उसे स्केटिंग करने में बहुत मजा आता है. स्केटिंग के प्रति उसके शौक को देखते हुए उसे स्पेशल ओलंपिक में भाग लेने के लिए ट्रेनिंग दी जा रही है. आरव हर्षवर्धन को पढ़ाई करने का शौक नहीं, लेकिन स्केटिंग में ही वह अपना कैरियर बनाना चाहता है. इसके लिए स्पेशल फैकल्टी भी रखे गये हैं. कंप्यूटर में माहिर है हातिमहातिम अन्य बच्चों से अलग है. उसे भले ही मानसिक और शारीरिक कष्ट है, लेकिन वह भी अन्य लोगों की तरह कंप्यूटर में माहिर होना चाहता है इसलिए वह अभी से एमएस ऑफिस के एक्सेल में काम करता है. इस बारे में उसके ट्रेनर कहते हैं कि हातिम जमाल रोड अपनी ज्वाइंट फैमिली के साथ रहता है. घर में एक बहन है, जो सामान्य है. पापा बिजनेस करते हैं इसलिए हातिम कंप्यूटर में बहुत कुछ सिखना चाहता है, ताकि वह बड़े हो कर अपने पिता के बिजनेस में हाथ बंटाये. हातिम के पैरेंट्स बहुत सपोर्ट करते हैं इसलिए वह इस जगह पर पहुंचा है. क्योंकि हातिम के इंट्रेस्ट को जज करने में संस्था के अलावा पैरेंट्स का भी सहयोग है.कलाकारों की तरह काम करता है आयुषहाथों से मोती की माला को बनाते हुए इस बच्चे को देख कोई नहीं बता सकता कि यह सामान्य बच्चों से अलग है. बच्चे की कला देख कर यह जरूर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह सामान्य बच्चा नहीं, बल्कि खास है. यहां बात हो रही है कंकड़बाग में रहने वाले आयुष का, जिसकी उम्र 10 साल है, जो संस्था में रह कर ट्रेनिंग ले रहा है. इस दौरान उसका मन कलाकारी करने का होता है. ऐसे में मोती की माला बनाना हो या कोई ज्वेलरी, आयुष इन सब कामों में आगे रहता है. इसलिए उसके इंट्रेस्ट के अनुसार यहां उसे फैकल्टी द्वारा इसी काम की ट्रेनिंग दी जाती है, जिसमें उसका मन लगे. आयुष के पिता नहीं है. घर में सिर्फ मां है, जो इसी संस्था से जुड़ कर अपने बच्चे के अलावा दूसरों की भी देख-रेख करती हैं.मोनिका को पेंटिंग करना है पसंदबोरिंग रोड की रहनेवाली मेखला ज्यादा हंसती नहीं है. वह गुमसुम ही रहती है, क्योंकि वह न ही सुन सकती है और न ही बोल सकती है. इसलिए वह अपनी बातों को पन्नों में लिख कर कहती है. इसके अलावा उसे पेंटिंग करने का शौक भी शुरू से है. दस साल की मेखला एक साल से ही अपनी जिंदगी सामान्य बच्चों से अलग जी रही है, लेकिन बिना हार माने वह अपने टैलेंट को कम नहीं होने देती है. यही वजह है कि सामने सादा कागज और कलर रहे, तो वह नये-नये डिजाइन बनाने लगती है और अपनी पेंटिंग बनाते समय वह काफी सीरीयस रहती है. मेखला का एक बड़ा भाई भी है, जो पढ़ने में बहुत तेज है. इसलिए मेखला को घर में भी अच्छा सहयोग मिल जाता है.साइकलिंग करना है आरव का शौक आरव राज की उम्र 8 साल है, लेकिन शौक किसी बड़े लोगों से कम नहीं है. इसलिए आरव को साइकलिंग करने में मजा आता है. वह कम उम्र से ही साइकलिंग करता है. साथ ही मोबाइल में गेम के अलावा फेसबुक और व्हट्सएप युज करता है. इस बारे में ट्रेनर कहते हैं कि आरव बहुत शरारती है. आरव अपने घर में इकलौता है. उसे खेलने के लिए तरह-तरह की गेम है, लेकिन उसे साइकलिंग और मोबाइल गेम खेलने में ही ज्यादा मजा आता है. इसलिए उसके शौक को नहीं मारा जाता है. आरव के पिता उसे वही करने देते हैं, जिसमें उसका दिल लगता है.कोटअब इन्हीं बच्चों में ही मेरी जिंदगी है. मेरे पति ज्यादातर शहर से बाहर रहते हैं, लेकिन मेरे काम में वह पूरा सहयोग देते हैं. मेरी पूरी फैमिली मुझे इस संस्था को खोलने में मदद की. मुझे मेरे बेटे शिवम के होने के बाद पता चला कि, जिनके बच्चे सामान्य नहीं होते हैं. वे अपने बच्चों को कैसे पालते हैं. इसलिए मैंने एक संस्था खोल दी, जिसमें सभी बच्चे एक तरह के हैं. सब की कमियां एक जैसे है, लेकिन उनकी आदत अलग-अलग है. ऐसे बच्चों को हम स्पेशल बच्चे कहते हैं. इन्हें प्यार की जरूरत है. इनकी फिलिंग को समझना हमारा काम है.डॉ मनीषा कृष्णा, डायरेक्टर उत्कर्ष सस्थान
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निशक्त होने के बावजूद खास हैं ये बच्चे
निशक्त होने के बावजूद खास हैं ये बच्चेलाइफ रिपोर्टर पटनाजब कोई महिला मां बनने वाली होती है, तो उसके दिमाग में अपने बच्चे के लिए कई तरह के ख्याल आते हैं, जैसे वह शरारती होगा या शांत स्वभाव का होगा? पढ़ाई में अच्छा होगा या अन्य चीजों में नाम कमायेगा? जन्म से पहले ही मां […]
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