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कृतज्ञ मत हो मोइन जी के लिए

कृतज्ञ मत हो मोइन जी के लिएआज (वर्तमान) ईश्वर से मिला उपहार है-इसीलिए इसे प्रेजेंट (उपहार) कहते हैं.सावधान ! यह ज्ञान-पत्र विस्फोटक है. यह तुम्हारे दिल या दिमाग का विस्फोट कर सकता है. यदि ह्दय के टुकड़े हो जायें-कुछ नहीं बचता. यदि तुम्हारे दिमाग के टुकड़े कर दे-समझो सबकुछ मिल गया.श्री श्री : यहां तुम […]

कृतज्ञ मत हो मोइन जी के लिएआज (वर्तमान) ईश्वर से मिला उपहार है-इसीलिए इसे प्रेजेंट (उपहार) कहते हैं.सावधान ! यह ज्ञान-पत्र विस्फोटक है. यह तुम्हारे दिल या दिमाग का विस्फोट कर सकता है. यदि ह्दय के टुकड़े हो जायें-कुछ नहीं बचता. यदि तुम्हारे दिमाग के टुकड़े कर दे-समझो सबकुछ मिल गया.श्री श्री : यहां तुम में से कितने व्यक्ति कृतज्ञ हो(सभी ने हाथ उठाया)अगर तुम कृतज्ञ हो, तो तुम मेरे नहीं हो !(सब स्तब्ध रह गये)यदि कोई तुम्हें कुछ देता है और तुम आभारी होते हो, इसका मतलब तुम स्वयं को उनसे अलग समझते हो. तुम अपने प्रति कभी आभार नहीं प्रकट करते. आभार दर्शाने का अर्थ हुआ कि तुम अपने आपको गुरु का अंश नहीं समझते.माइक : हां, हम जिस हाथ से खाना खाते हैं, उस हाथ के प्रति तो आभारी नहीं होते.ऐंजेलिका : बच्चे जब तक अपनापन अनुभव करते हैं, तब तक कृतज्ञ नहीं होते. वे सब चीज पर अपना हक समझते हैं.श्री श्री : कृतज्ञता से भी आगे जाने पर एक मेल होता है. न ”मैं ” रहता है. न ”तुम”. तुम गुरु के हिस्से हो. सब एक ही हैं, एक ही आत्मा जिसके हजारों सिर, हजारों हाथ हैं, पर ह्दय एक ही है.इस पथ पर कृतज्ञ तो होना ही है, कृतज्ञता अनिवार्य है, लेकिन तुम्हें कृतज्ञता से भी आगे बढ़ना है. अच्छा यही है कि तुम कृतज्ञ न बनो (हंसी)जब तुम कृतज्ञ होते हो, तुम केंद्र बन जाते हो, तुम महत्वपूर्ण महसूस करने लगते हो. जब तुम किसी भी खुबसूरत वस्तु के लिए ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होते हो-जैसे तुम्हारी आंखों की दृष्टि-कौन ज्यादा महत्वपूर्ण हुआ ? तुम या ईश्वर ? तुम तो तुम्हारी कृज्ञता अहंकारी दरसाती है.रिचर्ड : आप कृतज्ञ नहीं है ?श्री श्री : मैं महान (ग्रेट) भी हूं और पूर्ण (फुल) भी-(हतंजमनिस). कृतज्ञ मत बनो. महान बनो और पूर्ण बनो. श्रद्धा के बिना यह ज्ञान खतरनाक हो सकता हैजब तुम गुरु के अंश हो, तुम्हें खुश रहने का पूरा अधिकार है, ज्ञान, आनंद और समस्त सृष्टि पर तुम्हारा पूरा अधिकार है.बाल्डर : क्या आप मित्रों के साथ हमारे संबंध और गुरु के साथ हमारे संबंध की तुलना कर सकते हैं ?श्री श्री : तुम्हारे मित्र तुम्हें संसारिकता से, वस्तु-विषयों से बांधते हैं, गुरु तुम्हें ईश्वर से, आत्मा से जोड़ते हैं.

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